Discovery of Hidden Treasure in Bandhavgarh: समन्वय और टीम भावना का उत्कृष्ट उदाहरण
शहडोल संभाग के उमरिया ज़िले में आने वाला बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान अपने बाघों के लिये विश्व विख्यात है। कभी यह दुर्ग बाँधव साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था किंतु जब महाराजा रीवा अपनी राजधानी यहाँ से हटाकर रीवा ले गये तो यहाँ जंगल और जंगली प्रणियों का राज हो गया। महलों में चमगादड़ और मंदिरों में सन्नाटा रहने लगा .शेषशायी विष्णु प्रतिमा पर काई की परत जम गई ,साधुओं की गुफाओं में जंगली भालू और कन्दराओं में बाघों ने डेरा जमा लिया। ख़ज़ाने के लालची लोगों ने सोने चाँदी हीरा जवाहरात के चक्कर में महल का हर कमरा खोद डाला। फिर मंदिरों की बारी आई पर गुप्त ख़ज़ाना किसी की पकड़ नहीं आया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के क्षेत्रीय अधीक्षक श्री वाजपेयी को कंकाली मंदिर के पीछे टीलों के उत्खनन के लिये,जब मैं शहडोल कमिश्नर था,शहडोल बुलाया .वाजपेयी जी उत्साह पूर्वक जबलपुर से आये .उन्होंने बताया -सर कई वर्षों से हम वन विभाग से लिखा पढ़ी कर रहे हैं पर वे हमें बान्धवगढ़ में छिपे अमूल्य ख़ज़ाने को खोजने की अनुमति नहीं दे रहे। ज़िला प्रशासन भी कोई मदद नहीं कर पा रहा। 1938 में भारतीय पुरातत्व ने बान्धवगढ़ का सर्वे किया था यानि लगभग एक सदी पहले ,तब से वहाँ कोई खोज खबर नहीं ली गई जबकि पुरातात्विक विरासत का अमूल्य ख़ज़ाना यहाँ है। मैंने फील्ड डायरेक्टर बान्धवगढ़ श्री अन्नागिरी और कलेक्टर उमरिया श्री संजीव श्रीवास्तव से बात कर एक संयुक्त बैठक बान्धवगढ़ में रखी। सभी के सहयोग से पुरातत्व ने सर्वे संपन्न किया।
पुरातत्व और संस्कृति विभाग भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री ने दिल्ली में प्रेस वार्ता कर देश -दुनिया को बताया कि बान्धवगढ़ के सर्वे में जो एक माह तक चला उन्हें अदभुत पुरातात्विक ख़ज़ाना मिला है। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय चैनलों और अख़बारों में बान्धवगढ़ सुर्ख़ियों में था। मैं आयुक्त कार्यालय में बैठकर यह सोच रहा था कि समन्वय और टीम भावना उलझे हुए मुद्दों को कितनी सहजता से सुलझा सकती है। यह सरल मंत्र कुछ लोगों को समझ कब आयेगा।