
Discussion on Book : ‘मेरा आकाश-मेरे धूमकेतु’ के विमर्श में जुटे दिग्गज, कुमार प्रशांत ने कहा ‘भाषा दिल से निकलती है, भाव मन से!’
Mumbai : जब मन में ईमानदारी हो तो भाषा भी दिल से निकलती है। दिल से निकली भाषा में जो आत्मीयता होती है, वह पाठकों को जोड़ती है। भाव मन से निकलते हैं। इस किताब में 49 लोगों पर लिखे संस्मरण पूरी ईमानदारी से लिखे गए हैं। यह विचार प्रख्यात गांधीवादी व गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने ‘शोधावरी’ द्वारा मुंबई विश्वविद्यालय के जेपी नायक भवन में कथाकार, पत्रकार हरीश पाठक की किताब ‘मेरा आकाश-मेरे धूमकेतु’ (प्रभात प्रकाशन) पर आयोजित विमर्श में व्यक्त किए। वे समारोह के अध्यक्ष थे।
समारोह के मुख्य आतिथि ‘नवनीत’ के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि पठनीयता किसी भी किताब की पहली शर्त है। यह पठनीय किताब है। भाषा इस किताब की ताकत है’। पूर्व सांसद व वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने कहा कि यादें इस किताब के केंद्र में है और हरीश पाठक की याददाश्त ऐसी है कि सब सामने आ जाता है। कथाकार, पत्रकार सुदर्शना द्विवेदी ने कहा कि सकारात्मकता ही इस किताब की पूंजी है।
गुजराती के प्रख्यात कवि उदयन ठक्कर, उर्दू के प्रख्यात कथाकार रहमान अब्बास, प्रो सत्यदेव त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार विवेक अग्रवाल ने भी अपने विचार रखे। अभिनेत्री चारुल मलिक व फिल्मकार पवन कुमार ने अंश पाठ किया। कमलेश पाठक ने किताब की रचना प्रक्रिया पर अपनी बात रखी।

‘मनोगत’ के अंतर्गत हरीश पाठक ने कहा कि ‘धर्मयुग’ ने जो संस्कार दिए वे मेरी पूंजी है। सकारात्मकता का बीज मंत्र डॉ धर्मवीर भारती और गणेश मंत्री जैसे सम्पादकों से मिला।वही संस्कार इस किताब का आधार बीज है। इस आयोजन का संयोजन डॉ हूबनाथ पांडेय ने, संचालन डॉ रीता दास राम व आभार द्विजेंद्र तिवारी ने व्यक्त किया।
इस मौके पर डॉ राम बक्ष, सुरेश शर्मा, फ़ौजिया अर्शी, सुमंत मिश्र, विमल मिश्र, विनीत शर्मा, सुनील मेहरोत्रा, प्रमिला शर्मा, ममता झा, डॉ अंजु शर्मा, अलका पांडेय, कमलेश गुप्ता, शराफत खान, चेतन माथुर, कुमार पार्थसारथी, सुलेखा बाजपेयी, हौशला अन्वेषी, पवन सक्सेना, अनिल गौर, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, कमर हजीपुरी, शकुंतला पंडित सहित कला, साहित्य, संस्कृति के कई लोग उपस्थित थे।





