परिचर्चा भाग -3 : रक्षाबंधन की वर्तमान में प्रासंगिकता ?
आज के आधुनिक युग में भले बहुत-सी चीजों में परिवर्तन आ गया हो लेकिन भाई-बहन के प्रेम का त्योहार रक्षा बंधन आज भी उसी स्वरूप में मनाया जाता है। भाई और बहन, दोनों ही बेसब्री से इस दिन का इंतजार करते हैं। बाजारवाद के इस दौर में भाई का प्रयास रहता है कि वह बहन के लिए अच्छे से अच्छा उपहार लाये, कई बार बहनें भी भाई से रक्षा बंधन पर किसी खास चीज की फरमाइश कर देती हैं जिसे भाई खुशी-खुशी पूरा करता है। पिछले दो साल कोरोना के दौर में निकले और पहली बार वीडियो कॉल के जरिये रक्षा बंधन का पर्व मनाया गया लेकिन अब जबकि सब कुछ सामान्य हो चुका है तो लोगों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह अभी से दिख रहा है।आधुनिक तकनीकी के विकास का असर रक्षाबंधन पर भी पड़ा है
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है इसके अतिरिक्त भारत में राखी के अवसर पर इस पर्व से सम्बन्धित एक एनीमेटेड सीडी भी आ गयी है जिसमें एक बहन द्वारा भाई को टीका करने व राखी बाँधने का चलचित्र है। यह सीडी राखी के अवसर पर अनेक बहनें दूर देश में रहने वाले अपने भाइयों को भेज सकती हैं।……तब इस पर्व की प्रासंगिकता पर हमने विचार आमंत्रित किये ,आइये देखते है समाज का बुद्धिजीवी वर्ग क्या कहता है ———–
संयोजन -ममता सक्सेना/ मुन्नी देवी गर्ग
“इसकी सामयिकता को, अपनी आने वाली पीढ़ि के लिए सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है”
राखी का त्यौहार का नाम सुनते ही, दिल एक अलग ही अनुभूति से आल्हादित हो उठता ही पता नहीं क्या दिमाग में क्या-क्या विचारों का आरोह-अवरोह बिना सुरतान के उठने गिरने लगता है और उन सुर तालों के बीच की अनुभूति एक अलग ही अपने अन्दाज में आकलन करने लगती है, क्योंकि त्यौहार की मिठास में कब कड़वाहट घुल गई पता ही नहीं चला। अपवाद स्वरूप बात अलग है। राखी का स्वरूप अब सिर्फ रस्म बनकर रह गया है। सबका नजरिया बदल गया है राखी के प्रति। पुरान स्वरूप को देखे तो, जब बहन बेटियों के लिए मायके के द्वार घर-द्वार खुल मन से स्वीकार जाते थे। प्रतिपल आँखों में स्नेह की डोर लिए माँ, भाई, पिता सब राह तका करते थे। और अब, नौकरी, आर्थिक मजबूरियां आदि के लेखा-जोखा स्नेह, विश्वास की डोर का टूटना, सम्बन्धों की अहमियत का अपने उत्तर पर आंकलन करना, संस्कृति का स्वरूप, समय के साथ कहे बदलाव के साथ बिखरता जा रहा है। भाई बहन के रिश्ते के विश्वास को थामने के अलग मायने है, प्रास्पर्ट तो साथ ही संस्कृति को बचाने की कोशिश भी जारी है। वास्तव में हमे इसे फिर से इन रिश्ते को के धागों को, इन भावनाओं को इसकी सामयिकता को, अपनी आने वाली पीढ़ि के लिए सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। क्योकि एक मायका ही तो वह सुरक्षित एहसास है, बहन बेटियों के लिए जहाँ वह अपने सुख, दुख साझा करती है। उसके सुकून की वही तो एक देहरी बचती है, जीवन में। उस देहरी के अन्दर उसका सब कुछ था। और उसे छोड़कर उसके दूसरी दुनिया मे प्रवेश किया था। उस दूसरी दुनिया को सँवा मा निबाहना, उस देहरी से ही उसने आत्मसात किया था। अब जरूरत है इस त्यौहार को अलग नजरिये से देखने का। जहाँ भाई बहन सही सोच के साथ एक दूसरे के हितेषी बने। रिश्तो की अहमियत का नया अध्याय शुरू करे। और नयी पीढ़ि को भावनात्मक पहलू से अवगत कराये।
शोभा दुबे
समाज सेविका इन्दौर लेखिका संघ
“रक्षाबंधन का पर्व भाई के फर्ज की याद दिलाता है”
भावात्मक एकता के सूत्र में बंधे भारतीय, पर्वों के सांस्कृतिक महत्व, को जानते हैं। हमारे त्यौहार हमारी लोक परम्परा को जीवित रखते हैं। भारतवर्ष के निवासी अपने तीज-त्यौहार और परम्पराओं को पूरी आस्था से मनाते हैं। यही भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। प्रकृति में ईश्वर की कल्पना, वैदिक संस्कृति की देन है। प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए विभिन्न धर्मों में कुछ परम्पराएँ, त्योहार और उत्सवों का आयोजन करने की अलग-अलग प्रथाएँ होती हैं। सामूहिक रूप से आनन्द मनाने का उद्देश्य ही इन रीति-रिवाजों का मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। नए वर्ष का आरंभ, नई फसलों का स्वागत, ऋतुओं का परिवर्तन आदि से जुड़े कई त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान बन गए हैं।
दीपावली, होली, गुड़ी पड़वा, दशहरा, रक्षाबंधन, जैसे त्यौहार हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्व हैं, जिन्हें धर्म और आध्यात्म से जोड़ा गया है| भारतीय ग्रंथों में देव और दानवों में संघर्ष सदैव चलता रहा, यह वर्णन मिलता है वयज्ञ अनुष्ठान में रक्षा सूत्र बाँधे जाने का उल्लेख भी मिलता है। इसी परम्परा में रक्षाबंधन को भाई बहन के पवित्र बंधन से जोड़ कर देखा जाने लगा और यह पर्व प्रमुखता से श्रावन मास में मनाया जाने लगा। वर्तमान समय में जबकि रिश्तों में स्वार्थ और लालच ने संघ लगानी शुरू कर दी है, इस पर्व की पवित्रता का महत्व समझना जरूरी है। रक्षाबंधन का पर्व भाई के फर्ज की याद दिलाता है। बहन की रक्षा करना भाई का फर्ज है और बहन भाई के लिए अपने हितों का त्याग करे, यही इस पर्व का संदेश है। परिवार की एकता, सुरक्षा और उन्नति के लिए परस्पर स्नेह और त्याग की भावना होना आवश्यक है। जीवन मूल्यों को बचाने के लिए वर्तमान युग में रक्षाबंधन जैसे त्यौहार की प्रासंगिकता बढ़ गई है। रिश्तों का मूल्य समझने के लिए भाई-बहन का पवित्र सम्बंध नई पीढ़ी को समझाना बहुत जरूरी है। नारी का सम्मान करना युवकों को सीखना होगा। यदि पुरुष माँ, बहन, बेटी जैसे सम्बंधों का निर्वाह करने लगेगें तो महिला उत्पीड़न, यौन शोषण जैसे घिनौने अपराधों पर नियंत्रण लग सकता है। वर्तमान समय की मांग है, कि हम अपने भारतीय आदर्शों की पुनर्स्थापना करें। हमारे त्यौहारों को मूल स्वरूप में मनाएँ ताकि हमारी परम्पराएँ लोक संस्कृति और धार्मिक आस्थाएँ बची रह सकें और इंसानियत सुरक्षित रह सके।
डॉ. पदमा सिंह
पूर्व प्राचार्य एवं निदेशक तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति- विभाग
देव. अ. वि. वि. इंदौर
“पर्व रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम के प्रतीक का त्योहार”
रक्षाबंधन का त्योहार सदियों से भारतीय जनमानस का हिस्सा रहा है। यहां रक्षा बंधन का तात्पर्य बांधने वाले एक ऐसे धागे से है, जिसमें बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर जीवन के हर संघर्ष तथा मोर्चे पर उनके सफल होने तथा निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। भाई इसके बदले अपनी बहनों की हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करने का वचन देते हैं और उनके शील एवं मर्यादा की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।पर्व रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम के प्रतीक का त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर और उसके माथे पर तिलक लगाकर उसकी विजय की कामना करती हैं। इस दिन भाई प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति मैं अपनी बहन की रक्षा करूंगा। रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है.इसकी प्रासंगिकता कभी ख़त्म नहीं हो सकती .
आशा बागडदेव
हेदराबाद ,तेलंगाना
“रक्षाबंधन ही है जो भाई बहनों को जोड़े रखता है”
रक्षा बंधन जीवन को प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र त्योहार है। रक्षा का अर्थ है बचाव। मध्यकालीन भारत में जहां कुछ स्थानों पर, महिलाएं असुरक्षित महसूस करती थीं, वे पुरुषों को अपना भाई मानते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती थीं। इस प्रकार राखी भाई और बहन के बीच प्यार के बंधन को मजबूत बनाती है, तथा इस भावनात्मक बंधन को पुनर्जीवित करती है। धार्मिक ग्रंथो में बहुत जगह उल्लेख आया है कि देवता भी इस पर्व को हर्ष उल्लास के साथ मनाते है। मान्यता है कि सावन माह की पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में बाँधा गया रक्षासूत्र का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है।बहनो द्वारा अपनी भाइयों की कलाई में बाँधी गयी इस राखी के प्रभाव से भाइयों की हर संकटो से निश्चय ही रक्षा होती है , उन्हें देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। विभिन्न युगो, कालखंडो में भी इस पर्व के मनाये जाने के बारे में पता चलता है।रक्षाबंधन ही है जो भाई बहनों को जोड़े रखता है। रक्षाबंधन के दिन दोनो मिलते हैं। कई बाते होती हैं। अगर कोई गिला शिकवा है तो वो भी दूर हो जाता है। सारा परिवार इकट्ठा होता है और आज के दौर में परिवार अगर इकट्ठा होकर खुश है तो वही सबसे बड़ी खुशी है।