परिचर्चा: रक्षाबंधन की वर्तमान में प्रासंगिकता ?

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परिचर्चा: रक्षाबंधन की वर्तमान में प्रासंगिकता?

हमने इस विषय पर विचार अमंत्रित किए हैं, विषय यूं तो एक पर्व त्यौहार पर केंद्रित है लेकिन हमें उम्मीद से कहीं ज्यादा पत्र / विचार प्राप्त हुए हैं – कुछ चुनिंदा पत्र / विचारो को हम प्रकाशित कर रहे हैं, सुविधा के लिए इन्हें चार भागो में धारावाहिक किश्त की तरह पोस्ट कर रहे हैं –

संयोजन -ममता सक्सेना

39970283 1910878295663455 197967528142569472 nरक्षा बंधन महज भाई बहन तक ही सीमित नहीं रहा गुरु-शिष्य, प्रतिष्ठित जन और प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी आज यह पर्व सामूहिक रूप से मना रक्षा का वचन देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता जन जेल वृद्ध आश्रम अनाथालय आदि में जा रक्षासूत्र बांध उनकी सुरक्षा का संकल्प लेते हैं।यहां तक कि सीमा पर तैनात जवानों को स्वनिर्मित राखियां भेजने की परिपाटी प्रारम्भ की गई है कई सामाजिक संगठनों द्वारा।
आधुनिक तकनीकी के विकास का असर रक्षाबंधन पर भी पड़ा है
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है इसके अतिरिक्त भारत में राखी के अवसर पर इस पर्व से सम्बन्धित एक एनीमेटेड सीडी भी आ गयी है जिसमें एक बहन द्वारा भाई को टीका करने व राखी बाँधने का चलचित्र है। यह सीडी राखी के अवसर पर अनेक बहनें दूर देश में रहने वाले अपने भाइयों को भेज सकती हैं।…….
आज समाज में फैले जघन्य अपराधों अविश्वास से सुरक्षा हेतु और आज अगर जीवन बचाना है और प्रदूषण रहित पर्यावरण सहेजना है और जीवन और स्वास्थ्य संजोकर रखनाहै तो हर एक नागरिक को एक वृक्ष को रक्षा सूत्र बाध कर उसको सहेजने का उसकी देखभाल का संकल्प लेना होगा तभी रक्षा बंधन की प्रासंगिकता परिपूर्ण हो सकेगी

बंगाल में रबीन्द्रनाथ दादा को याद कर भाईचारे और एकता के लिए धागा बांधना शुरू किये..”  

रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जो भाई और बहन के प्यार को दर्शाता है। इस त्यौहार से भाई और बहन अपने बचपन के प्यार, दोस्ती याद दिलाता है। देखिये कितने अनोखे त्यौहार है – हर साल आप को वो प्यार, वो प्रथम दोस्ती याद दिलाते है। भाई, बहन एक दूसरे के प्रथम दोस्त होते है, चाहे कितने दूर कार्य के लिए चले जाते हों लेकिन एक दिन ऐसा होता है पुरे वर्ष में जिस दिन दोनों एक दूसरे को याद करते है। उनके प्यार को याद करते हैं और ये याद करते हैं की एक दूसरे के लिए वो पहले भी थे, अभी भी हैं और हमेशा रहेंग। ये त्यौहार हम सब के जीवन में ऐसे एक नीव है हमारी संस्कृति की जो सिखाती हैं की प्यार कितना अनमोल है।हम बंगाल में रबीन्द्रनाथ ठाकुर दादा को याद कर भाईचारे और एकता के लिए धागा बांधना शुरू किये..

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आर्यमा सान्याल
एयरपोर्ट डायरेक्टर वाराणसी

“वो प्रेम जो हमें ऊर्जा दे और उस प्रेम से उत्पन्न रक्षा का भाव हमें हमारी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाये”

रक्षाबंधन एक बहुत ही खूबसूरत त्यौहार है, हमें इस तरह के प्रयास करने चाहिए की हम जिसे भी छुएं या स्पर्श करें उसी से हमें मोहोब्बत हो जाये, उसको हम अपने सच्चे प्रेम से, अच्छी भावना के साथ महसूस करें और यही प्रेम हमारे संबंधों को रक्षा कवच के रूप में सुरक्षित रखने के काम आये |
हमारे मन में पूरी मानवता के लिए एक सकारात्मक सहयोग का भाव मन में जाग्रत हो| वो प्रेम जो हमें ऊर्जा दे और उस प्रेम से उत्पन्न रक्षा का भाव हमें हमारी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाये, मैं इसे इसी तरह से देखता हुं की एक प्रेम पूर्ण बंधन जिससे सम्पूर्ण समाज और जगत की रक्षा हो सके और इस तरह का दायित्व हमारे मन में रहे कि हम किसी की रक्षा के लिए तत्पर हो सकें
मेरी दृष्टि में एक दूसरा पक्ष स्वस्थ्य को लेकर भी हो सकता है, क्या अच्छा हो की परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के स्वस्थ्य के प्रति सजग हो कर एक दूसरे को स्वस्थ्य रहने की प्रेरणा दें और रक्षाबंधन के दिन हम सब एक दूसरे के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक सबल लाने की कोशिश करें जिससे एक सुकून भरे समाज में हमारे दिल चैन से स्पंदित हों सके.

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डाक्टर भरत रावत
हृदय रोगी विशेषज् सर्जन
“जिस त्योहार में स्नेह, आत्मीयता  का भाव संगम हो उसकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहती है”

भारत तीज, त्योहारों और उत्सवों का देश है। हमारे यहां जितने और जिस पवित्र भावना के साथ तीज, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं दुनिया के दूसरे किसी देश में शायद ही मनाए जाते हों। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के बीच पवित्र स्नेह की डोर और विश्वास का त्योहार है। इसमें आत्मीयता है, अटूटता है। जिस त्योहार में स्नेह, आत्मीयता और अटूटता का भाव संगम हो उसकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहती है। तो भाइयों की कलाई पर बहनें स्नेह और विश्वास की रेश्मी डोर बांधती आई हैं आगे भी बांधती रहेंगी। रक्षाबंधन का त्योहार मनता आया है और मनता रहेगा।

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– मुकेश तिवारी(-लेखक/ पत्रकार, इन्दौर)

“भाई की कलाई में बंधा रक्षासूत्र बहन के स्नेह और आशीष से पगा होता हैं”

भारत एक ऐसा देश है जहाँ रिश्ते केवल निभाए ही नही, जिये जाते हैं । रिश्तों के प्रति एक मौन समर्पण होता है। यह पावन भाव पर्व-त्योहारों, व्रत और उत्सवों में छलक कर दिखाई देता है।

कभी मां अपने बच्चों की खुशहाली के लिए संतान सप्तमी का व्रत करती है; तो कभी स्त्रियाँ परिवार की सुख शांति का भाव लिए; शीतल सप्तमी की पूजा करती हैं। करवा चौथ, वट पूर्णिमा, हरताली तीज आदि के व्रत से जहाँ पत्नियां पति की दीर्घायु की मंगल कामना करती हैं वहीं एक अनोखा और मधुर रिश्ता भाई-बहनों का भी देखने मिलता है।

ये एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जिसमें छल और स्वार्थ की कहीं कोई गुंजाइश नहीं । है तो केवल प्रेम, खुशी और शुभेच्छा– ।
बचपन से लेकर बूढ़े होने तक भाई बहन का रिश्ता स्नेह और मीठी शरारतों से भरा रहता है। बहनें मीलों दूर रहकर भी भाई की कुशलक्षेम चाहती हैं । भाई भी अपनी हर परेशानी को नजरअंदाज कर बहन के लिए उपस्थित रहता है। भारतीय समाज में जिस तरह स्त्रियों को कमजोर समझा जाता है; तब भाई ही है, जो बहन की ढाल बनकर खड़ा होता है। भले ही भाई व्यक्त न करे पर उसके हृदय में बहनों के लिए जो सम्मान, स्नेह, त्याग और समर्पण के निस्वार्थ भाव होते हैं, उन भावों को बहन भी मन ही मन पढ़ लेती है ; और यही भाव उसे रक्षाबंधन पर भाई के पास खींच ले जाते हैं। भाई से मिलने की खुशी में रह-रह कर उसकी आँखे नम हो जाती हैं, गला रुंध आता है, पर उत्साह! उत्साह जो कभी कम नहीं होता ।

भाई की कलाई में बंधा रक्षासूत्र बहन के स्नेह और आशीष से पगा होता हैं ।

यूँ तो हर दिन बहनें भाई की उन्नति, भाई की समृद्धि, भाई के उत्तम स्वास्थ्य की हृदय से कामना करतीं हैं; किन्तु पर्व विशेष रक्षाबंधन पर वह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बंधन को ढीला करके, मीलों दूर से भाई से मिलने को व्याकुल रहती हैं।

कई बहनें दूर परदेस में भाई से मिलने को असमर्थ रहतीं हैं । भाईदूज पर चंद्रमा की पूजा करने का भी शायद यही प्रयोजन रहा होगा कि भाई भी उस चंद्रमा को तो निहार ही रहा होगा,चंद्रमा के माध्यम से अपना संदेश भाई तक पहुँचाने के पीछे बहन के मन उतराते सुकोमल पवित्र भाव अन्यत्र कहाँ ?

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वंदना दुबे, साहित्यकार
धार , मध्यप्रदेश

सुनिए एक युवा महिला को खुद से कितनी शिकायतें हैं ,खुद बयां कर रही है इस वीडियो में 

“रेशम की डोर के दोनो सिरे भाई और बहन का प्रतीक है” 

रिश्ते की सुकून भरी गर्माहट उस हरियाली छाव की तरह होती है जो मौसम के गर्म ,सर्द, या गिले मौसम में सुरक्षा प्रदान करती है। भाई बहन के अटूट रिश्ते की नीव ही प्रेम और संबल पर टिकी है जहा भाई अपने बल से तो बहन अपने प्रेम से एक दूसरे का साथ ताउम्र और जीवन के उपरांत तक देते है। अब बहन वो अबला नहीं रही लेकिन फिर भी भाई का साथ उसके लिए वो रक्षा कवच है जिसके अहसास मात्र से बहन अपनी सारी शक्ति सहेज विपरीत परस्थियों में भी परचन लहरा देती है। भाई सदियों से परंपरा का निर्वाह करते हुए बहन को आर्थिक सुरक्षा भी प्रदान करते रहे है पर अब बहन भी भाई के प्रति अपने कर्तव्य का पालन कर आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा दे रही है। इस बदलते परिदृश्य में भाई बहन का प्यार और भी प्रघाड़ हो चला है।
रेशम की डोर के दोनो सिरे भाई और बहन का प्रतीक है जो मिलकर एक ऐसी सुंदर गांठ बन परिवार की बानगी को जन्मदायी मातापिता के उपरांत भी जोड़े रखती है।

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डॉ विम्मी मनोज,इंदौर

                                     आगे पढ़िए शेष भाग -2 में—————–

रक्षाबंधन पर विशेष: लोकगीतों में पिरोया हुआ राखी का त्योहार 

धीरे धीरे सधे कदम, पहुंच गए चांद पर हम।

अनुपम उदाहरण: भारत में सेवा से रिटायर के बाद प्रोफ़ेसर को अमेरिका में 102 साल की उम्र में मिला नोबेल पुरस्कार