शास्त्रार्थ की परंपरा वाले देश में असहमति का अनादर उचित नहीं है – चिन्तक साहित्यकार श्री हरनाम सिंह

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शास्त्रार्थ की परंपरा वाले देश में असहमति का अनादर उचित नहीं है – चिन्तक साहित्यकार श्री हरनाम सिंह

प्रलेस एवं विषपायी फाउंडेशन द्वारा साहित्य संवाद व्याख्यान आयोजित

मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट

मंदसौर। अपने लेखन के माध्यम से बेबाक टिप्पणी कर जन चेतना को जगाने वाले लेखक साहित्यकार, समालोचक श्री बाबूलाल माली “विषपायी” की बहुआयामी पहचान थी। उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम पोस्टकार्ड को बनाया था। उनकी वैचारिकी को संग्रहित करने की जरूरत है। शास्त्रार्थ की परंपरा वाले देश में असहमति का अनादर उचित नहीं है।
ये विचार चिन्तक, साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री हरनाम सिंह ने व्यक्त किये। वे प्रगतिशील लेखक संघ एवं विषपायी फाउंडेशन द्वारा “साहित्य संवाद और स्मृति में विषपायी” विषय पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि समाजवादी राज्य व्यवस्था के पक्षधर श्री विषपायी वंचित वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्षों में सदैव शामिल रहते थे। पिछली शताब्दी के 70- 80 के दशक में मंदसौर में गोष्ठियों के माध्यम से बहस होती थी। असहमति को भी धैर्य पूर्वक सुना जाता था। श्री विषपायी जी की स्मृति में पूर्व में चार आयोजन हो चुके हैं। उसी श्रृंखला का यह पांचवा आयोजन है।

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आपने बताया कि श्री बाबूलाल माली भारतीय रेलवे में सेवारत रहे पर साहित्य संस्कृति और रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय रहे और मार्गदर्शन किया साथ बेबाक अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते थे ।

शिक्षाविद एवं पूर्व प्रिंसिपल डॉ रविंद्र कुमार सोहोनी ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु वह समाज की दशा और दिशा को भी तय करता है। वाद- संवाद प्रतिवाद के बिना मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। साहित्य समाज और स्मृतियां एक दूसरे को गढ़ती है। विषपायी जी को याद करते हुए डॉ सोहोनी ने कहा कि उनमें जोश था जो सदैव दूसरों को प्रेरित करता था। सच के लिए वह किसी से भी टकराने में संकोच नहीं करते थे। वे उन आवाजों में एक थे जिन्होंने समाजवादी विचारधारा को जिंदा रखा।

बार एसोसिएशन पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अभिभाषक श्री प्रकाश रातड़िया ने अपने संबोधन में कहा कि विषपायी जी नीराभिमानी, निश्छल व्यक्ति थे।वे न केवल अच्छे अध्येता थे अपितु उनकी अभिव्यक्ति भी सशक्त होती थी। वे उन्मुक्त विचारधारा वाले चिंतक थे। उनका मानवीय व्यक्तित्व सहज ही आकर्षित करता था। रचनात्मकता में उनका भरोसा था। श्री रातड़िया ने कहा कि जब तक व्यक्ति संवाद में रुचि नहीं रखेगा तब तक उसमें बौद्धिकता के गुण नहीं आ सकते।

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प्रख्यात छाया चित्रकार श्री बंशीलाल परमार के अनुसार विरासत केवल धन संपदा की ही नहीं होती है वह विचारों की भी होती है। प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर के एक संवाद बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात न कहोगे को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि विषपायी जी ईमान के पक्के थे। वर्तमान में समय में इस गुण की कमी देखी जा रही है। अनेक कारणों से लोग सच बोलने से कतराते हैं। विषपायी जी निर्भीक होकर लिखते थे।

कार्यक्रम के संचालक एवं प्रगतिशील लेखक संघ प्रांतीय सचिव मंडल के सदस्य असअद अंसारी ने विभिन्न अवसरों पर कहा कि विषपायी ज़हर पीकर अमृत लिख गए,वो सादगी की मिसाल थे। वो ऐसे शख़्स थे जो सच्चाई के लिए भरी महफ़िल में खड़े हो कर आवाज़ बुलंद करते थे। साहित्य जगत में बुलंद शख्सियत और पत्र लेखक के रूप में हमेशा ज़िंदा रहेंगे।

कार्यक्रम का प्रारंभ इप्टा की सचिव हूरबानो द्वारा दुष्यंत कुमार की गजल के गायन से हुआ। स्वागत उद्बोधन विषपायी फाउंडेशन के सचिव मुकेश माली ने दिया।

अतिथियों का स्वागत चित्रा माली, प्रकाश गुप्ता, श्यामलाल माली,भुवनेश माली, कैलाश सैनी,दिनेशबसेर,अकरम खान, कला माली,अज़ीज़ उल्लाह खान,अरुणा माली,लोकेश शर्मा,आशा माली,शुभम जैन नीलम माली,अशांशु संचेती,ज्योति सैनी,हूर बानो सैफ़ी ,रचना सैनी,नरेंद्र अरोरा, साक्षी माली,संतोष सैनी किया। श्री बंशीलाल परमार ने श्री विषपायी जी का चित्र एवं लेखक साहित्यकार लाल बहादुर श्रीवास्तव में अपनी पुस्तक शब्द शिल्प मंच पर वक्ताओं को भेंट की। कार्यक्रम में पूर्व मंत्री नरेंद्र नाहटा ,ब्रजेश जोशी रफ़तपयामी,ब्रजेश आर्य, मदनलाल राठौर, नंद किशोर राठौर, नरेंद्र भावसार रमेश चंद्र चंद्र प्रदीप शर्मा संजय भारती आनंद श्रीवास्तव डॉ घनश्याम बटवाल मधुरिमा शर्मा सुनील व्यास रूपल संचेती चंदा अजय डांगी डॉ दिनेश तिवारी राव विजयसिंह कन्हैया लाल भाटी आदि उपस्थित थे। आभार माना कनुप्रिया माली ने।