Brahma Kamal:दिव्य-देव एवं अमृत पुष्प ब्रह्मकमल ( गणेश जी के धड़ पर हाथी का मुख, शिवजी ने इसी फूल के अमृत से लगाया था)
महेश बंसल की एक ख़ास रिपोर्ट
सृष्टि रचयिता का प्रिय दिव्य पुष्प ब्रह्मकमल को माना जाता है। कमल होने पर भी यह पानी में नहीं, जमीन में खिलता है। जमीन भी हरियाली से आच्छादित नहीं, अपितु जहां पेड़ पौधे आक्सीजन की कमी से पहाड़ों पर नहीं होते , वहां पाषाण युक्त जमीन में बरसात के मौसम में जुलाई से सितम्बर के मध्य हिमालय की चोटियों पर 3000 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर यह खिलता है। नाम के अनुरूप भगवान ब्रह्मा का यह सबसे पसंदीदा फूल है , क्योंकि ब्रह्मा जी ने इस फूल को उत्पन्न करने के साथ ही अपना नाम भी इसे दिया है।
उत्तरकाशी के श्री लोकेंद्र सिंह बिष्ट का कहना है कि अदभुत,आलौकिक, भब्य और दिव्य पुष्प को स्वयं देवों के देव ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था। इसीलिए इसका नाम है “ब्रह्मकमल” है। इस फूल को ब्रह्मा जी ने इसलिए उत्पन्न किया क्यों कि जब भगवान शिव ने भूलवश गणेश जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया था। तब पुनः भगवान शिव जी को गणेश जी के धड़ पर हाथी का मुख लगाना था, इसके लिए अमृत की आवश्यकता थी। इसी समय ब्रह्मा जी ने ब्रह्मकमल को उत्पन्न किया और इस ब्रह्मकमल फूल से उत्पन्न हुआ था अमृत .. और इसी अमृत से श्री गणेश को पुनः जीवित किया गया था, इसी कारण इसे ब्रह्मकमल भी कहा जाता है ।
ब्रह्मकमल को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है। भगवान शिव ने ब्रह्मकमल से जल छिड़ककर भगवान गणेश को पुनर्जीवित किया था, इसलिए इस पुष्प को जीवनदायी माना जाता है।ब्रह्मकमल भारत के हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि दुर्गम स्थानों पर ही मिलता है।
यह मां नन्दा का प्रिय पुष्प है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितंबर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है। इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है । जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा।
किंवदंती अनुसार इसी पुष्प के पीछे भीम का गर्व चूर चूर हो गया था। जब द्रौपदी ने भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्मकमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमानजी ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्मकमल लेकर गए।
ब्रह्मकमल का फूल उत्तराखंड का राज्य पुष्प हैं। इसे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस तथा स्थानीय भाषा में ब्रह्मकमल को कौंलु भी कहते हैं।
उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से भी जानते हैं। उत्तराखंड में ब्रह्मकमल की 24 प्रजातियां मिलती हैं । ब्रह्मकमल के खिलने का समय जुलाई से सितंबर है ब्रह्मकमल, फैनकमल कस्तूराकमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं उत्तराखंड की फूलों की घाटी में केदारनाथ में पिंडारी ग्लेशियर में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित करने के बाद विशेष प्रसाद के रूप में इसे बांटा जाता है। ब्रह्मकमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है ,बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंध से भर जाता है ।
हिमालय परिक्षेत्र में बरसों बाद इस वर्ष इतनी बड़ी संख्या में ब्रह्मकमल का खिलना वाकई सुखद है। चमोली, रुद्रप्रयाग से लेकर पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों रूपकुण्ड, भगुवासा से लेकर बद्रीनाथ-नीलकंठ, चिनाप फूलों की घाटी, हेमकुण्ड, नंदीकुड, सप्तकुंड, छिपलाकेदार में इस बार ब्रह्मकमल 3 हजार से लेकर 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर खिला है, जिससे पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमी बेहद खुश नजर आ रहें हैं।
जन्माष्टमी से लेकर नंदाष्टमी के दौरान पहाड़ में मनाये जाने वाले सैलपाती कौथिग और नंदा अष्टमी कौथिग में मां नंदा की पूजा इसी दिव्यपुष्प से की जाती है । पंच केदारो में भी इन्हीं देवपुष्पों से भगवान शिव की पूजा होती है और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है ।
अल्मोडा़, उत्तराखण्ड के हिमालयन जेफर, श्री जयमित्र सिंह बिष्ट बताते है कि – ब्रह्मकमल नंदा जात यात्रा के दौरान पूरा उत्तराखंड अपनी आराध्य देवी नंदा देवी की भक्ति में मग्न हो जाता है। दक्ष प्रजापति की पुत्री और देवभूमि उत्तराखंड की आराध्य राजराजेश्वरी माँ नंदा देवी के प्रति अपार श्रद्धा और आस्था के लिये उत्तराखण्ड के दूरस्थ लीती गाँव के लोग पिछले सैकड़ों सालों से एक अनूठी परंपरा को निभा रहे हैं जिसमें वो हिमालय के दुर्लभ ब्रह्मकमल को नंदा देवी को अर्पित करते हैं, कांवड़ यात्रा की तर्ज पर लीती,विचला दानपुर, बागेश्वर के निवासी कोरंगा लोग अपने पुरखों के समय से नंदा देवी के लिए हर 3-4 साल में एक दुर्गम और थका देने वाली यात्रा करते हैं जिसमें वो अपने गाँव लीती से नंदा कुंड जो उच्च हिमालय में स्थित है वहाँ तक नंगे पैर जा कर व कठिन नियमों का पालन कर पवित्र ब्रह्मकमल को लाते हैं। ये कठिन हिमालय यात्रा कुल 4-5 दिन की होती है । ब्रह्मकमलों को लाकर रिंगाल के डंडों पर लगाया जाता है व लाटू और बजैयण देवता की पूजा अर्चना कर नंदा कुंड यात्रा में गए लोग अपने परंपरागत वस्त्र पहन कर एवम् अन्य गाँववासी एक पंक्ति में नाचते गाते माँ भगवती मंदिर तक जाते हैं और इन ब्रह्मकमलों को देवी मंदिर में अर्पित करते हैं।
कुशीनगर के मेरे मित्र 38 वर्षीय मनीष गोयल ने गत वर्ष श्रीखंड महादेव की यात्रा की थी। मनीष की यात्रा के चित्रों ने ही इस आलेख को लिखने के लिए प्रेरित किया है। वह बताते है कि श्रीखंड महादेव की यात्रा शासन द्वारा जुलाई में आयोजित की जाती है वर्ष 2023 में हमने भी रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन प्राकृतिक आपदा के कारण यात्रा निरस्त हो गई थी। एक वर्ष तक फिर इंतजार करना पड़ता। लेकिन सितंबर में तीन स्थानीय एवं सात अन्य स्थानों के मित्रों संग हम दस पर्यटकों ने निजी यात्रा पोर्टल को लेकर की थी। 15000 फीट पर पार्वती बाग से 18000 फीट पर स्थित श्रीखंड महादेव तक के रास्ते में एवं दूर पहाड़ियों पर असंख्य ब्रह्मकमल एवं कुछ फेनकमल देखने, स्पर्श करने एवं दिव्य सुगंध लेने का अप्रतिम अवसर प्राप्त हुआ था। केदारनाथ से और ऊपर वासुकी ताल में भी ब्रह्मकमल बहुत होते हैं , जिसे स्थानीय लोग केदारनाथ में बेचते है, इसी तरह बद्रीनाथ धाम में भी बेचते हुए स्थानीय लोग मिल जाते हैं।
मैंने जब ब्रह्मकमल देखा तो देखता रह गया हजारों हजार की संख्या में खिले थे जैसे लगता हो किसी ने कालीन बिछा दी हो । पार्वती बाग … अपने नाम के अनुरूप वाकई में वो जगह थी, सच में इतना सुंदर स्थान देवी देवता का ही हो सकता है, और रात में तो दृश्य देखने लायक था चंद्रमा की जो चमक थी मैंने अपने जीवन में नही देखा वैसे चंद्रमा
इतना बड़ा और चमकीला दिख रहा था, जैसे उछल के छू लूं तो हाथ में आ जाए । लगभग 15000 फिट की ऊंचाई से मिलना शुरू हो गया था ब्रह्मकमल । हमारे पोर्टल ने अनेक फेनकमल तोड़ कर रख लिए थे। बता रहा था कि अस्थमा रोग की औषधियां इससे बनाते है।
अभिषेक चौधरी बताते है कि वह
६ दोस्तों के साथ फूलों की घाटी गये थे। फूलों की घाटी में पहाड़ के एक-एक किनारे पर एक-एक रंग के फूल भरे हुए। अगले दिन हम लोग फिर से घांघरिया से चलते हुए पहुंचे हेमकुंड साहिब। इस जगह पर दुनिया का एक मात्र लक्ष्मण मंदिर है । फूलों की घाटी में मुश्किल से 1-2 ब्रह्मकमल दिखाई दिए थे । मगर हेमकुंड साहिब तो और भी ज्यादा ऊंचाई में है। वहां पर ब्रह्मकमल 400-500 दिखे । सच कहूँ तो पहले उसका हरा रंग देख के समझ नहीं आया था कि वह फूल है। लगा कोई पत्ता है
उस रास्ते पर कुछ जगह पर छोटीे दुकान में ब्रह्मकमल की फोटो थी। मगर देखने पर समझ नहीं आया
फिर जब करीब पहुंचा, तभी समझा के ये कुछ अलग है। उस जगह के वाइब्रेशन ही अलग थे । हम लोगों को वहां हर चीज उस समय पर दिव्य लग रही थी। जगह ऐसी थी जैसे के सच में वहां भगवान साल में एक दिन आते हो। वह जगह स्वयं भगवान की बनाई ही हो सकती थी।
मैं बंगाल की सर्दी में हमेशा बीमार रहता हूं, मगर हेमकुंड के पानी में जब नहाया था, हड्डियां तो शायद जाम हो गयी थी, मगर वहां तबियत बिल्कुल खराब नहीं हुई, ऊर्जा महसूस हुई ।
जब एक फूल को खोलकर अंदर का फोटो खींचा, तब एक गुरुद्वारे वाले से दांट भी पड़ी थी। गुरुद्वारा में गमलों में भी यह फूल खिल रहे थे।
इंदौर की मेघा नांदेड़कर बताती है कि एक साल पहले 2.8.23 को हेमकुंड साहीब के मार्ग पर पवित्र पुष्प ब्रह्मकमल के मुझे दर्शन हुए थे।एक दिन पहले प्रसिद्ध valley of flowers से रुबरु हुई थी। ब्रह्मकमल मुझे दिख जाए यह मेरी दिल से तमन्ना थी। साथ जो चल रहे थे सबको मैंने बारबार बोला था कि ब्रह्मकमल दिखे तो मुझे जरुर आवाज देना। उस दिन हलकी सी बारीश हो रही थी। रेनकोट पहने और हाथ में छाता लिए जबरदस्त चढ़ाई चढ़ रही थी। हेमकुंड साहीब 15000 फिट उंचाई पर स्थित धरती का स्वर्ग है। चढ़ाई में oxygen कि कमी होती है। वही राह में चलते तीन ब्रह्मकमल के एकसाथ दर्शन हो गए। ऊंचे पहाड़ पर दूर होने के कारण मैं पास जाकर उनका स्वर्गीय सुवास नहीं ले सकी। सिर्फ फोटो खिंचकर और दूर से देखकर समाधान करना पड़ा। मैं यह यात्रा स्वयं कि बड़ी उपलब्धी मानती हूं। यह कठिन यात्रा उम्र के इस पड़ाव पर सफल होने पर भगवान को नमन करती हूं। हेमकुंड साहिब में गमलों में भी यह खिलता है।
ब्रह्मकमल को Saussurea obvallata कहते है , लेकिन EPIPHYLLUM OXYPETALUM जो कि एक कैक्टस है, उसे ही ब्रह्मकमल मानकर घर के बगीचे में बागवान लगाते है, नर्सरी वाले बेचते है एवं गुगल पर भी बहुतायत में इस कैक्टस को ब्रह्मकमल बताया जाता है। रात्रि में खिलने एवं सुगंधित होने के साम्य के कारण गलत प्रचारित कर दिया गया। आश्चर्य तो तब होता है जब किसी के यहां यह कैक्टस खिलता है तो इसकी आरती की जाती है , ईश्वर को धन्यवाद दिया जाता है कि उनके आंगन में ब्रह्मकमल खिल गया। यही नहीं अखबारों में भी अज्ञानता के कारण ब्रह्मकमल के रूप में प्रचारित किया जाता है। इस आलेख का उद्देश्य भी असली ब्रह्मकमल से परिचित करवा कर भ्रांति को दूर करना भी है। किसी एक आलेख में नंदा देवी यात्रा एवं श्रीखंड महादेव से ब्रह्मकमल के चित्र एक साथ प्रकाशित हो रहे है।
नकली ब्रह्मकमल से बागवानों को परिचित कराने की मेरी मुहिम के दौरान ही असली ब्रह्मकमल पर विस्तार से आलेख लिखने का विचार दो साल पहले आया था। तब से ही ऐसे श्रृद्धालुओं की खोज कर रहा था, जिन्होंने प्रत्यक्ष इसे देखा है। अनेक व्यक्तियों से संपर्क हुआ, लेकिन मनीष गोयल के चित्रों एवं अनुभवों ने इस आलेख को उर्जा प्रदान की है। लेखन के दौरान ही मां नंदा देवी यात्रा के चित्रों ने मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर यह महसूस कराया कि जैसे मैंने भी साक्षात दिव्य पुष्प ब्रह्मकमल के दर्शन कर लिए।