Dog Cotroversy: कटखना कुत्ता,समझदार श्वान

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Dog Cotroversy: कटखना कुत्ता,समझदार श्वान

रमण रावल

इन दिनों देश में दो ही मुद्दे प्रुमखता से चर्चा में है। वोटों की चोरी और कुत्तों के काटने की। वोटों की चोरी तो राजनीतिक शिगूफा है, जिस पर कभी-भी बात हो सकती है, लेकिन कुत्तों का मसला बेहद संवेदनशील और जन-जन से पल-पल जुड़ा हुआ है । तो यहां बात करते हैं कुत्तों की, लेकिन केवल उनके काटने पर ही इसे केंद्रित नहीं रख सकते। आखिरकार, कुत्ता मनुष्य का सबसे अधिक समय से साथी रहा है। वह जानवरों में अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय भी माना गया है। वह अपने मालिक से लेकर तो मोहल्ले की सुरक्षा के लिये भी जाना जाता है। वह सीमा की सुरक्षा में भी उपयोग किया जाता है और पुलिस को अपराधी तक पहुंचने में भी मददगार रहता है। आज भी जब अनेक तकनीक आधारित व्यवस्थायें हो गई हैं, तब भी पुलिस दस्ते में कुत्ते का सम्मानजनक स्थान है। आखिरकार,देश में इस समय कुत्ता पुराण इतनी प्रबल चर्चा में क्यों है ?

दरअसल, 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि वह 6-8 सप्ताह में दिल्ली के आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेज दे, ताकि लोगों को उनके काटने से राहत मिले। इस पर देशव्यापी व्यापक बहस प्रारंभ हो चुकी है। अदालत की मंशा साफ होते हुए भी इसके व्यावहारिक स्वरूप पर खासा विरोध है। कुत्ता प्रेमी या पशु प्रेमी, पेटा संगठन,निजी तौर पर भी कुत्ते-बिल्ली-गाय के पालनहार इसे पशु विरोधी,अव्यावहारिक,बेतुका और जल्दबाजी में लिया गया फैसला बता रहे हैं। वे तर्क दे रहे हैं कि अकेले दिल्ली के ही हजारों कुत्तों को शेल्टर होम भेजने की व्यवस्था है कहां ? फिर यह तो देश की समस्या है तो अकेले दिल्ली के लिये कहने से क्या होगा ? साथ ही यह भी कि ऐसे हर शहर,नगर,गांव में शेल्टर होम बनाने जायेंगे तो हजारों करोड़ रुपये की जरूरत होगी, जो कहां से आयेगा?

सारी बातें सोलह आने सच है, किंतु हम अभी इस मुद्दे पर नहीं जाकर कुत्तों के अतीत,इतिहास,परवरिश,उपयोगिता,आवश्यकता और महत्व पर बात कर लेते हैं। हम भारतीय कुत्तों को भी अन्य बेहद सारे पशुओं की तरह सम्मानजनक और भारतीय सामाजिक जीवन का अनिवार्य अंग मानते हैं। यह काफी हद तक सही भी है। हमें सबसे ज्यादा वह पौराणिक प्रसंग प्रभावित करता है, जब अपना जीवनकाल पूरा कर पांडव बंधु स्वर्गारोहण कर रहे थे तो एक कुत्ता भी उनके साथ था। इस कथा का चरम आश्चर्यजनक बिंदू यह है कि युधिष्ठिर के शेष चारों भाई किसी न किसी कारण से धरती पर ही काल के गाल में समा गये, लेकिन कुत्ता उनके साथ स्वर्ग जाने में सफल रहा। इस पुराण कथा के सच-झूठ,कल्पना को छोड़ दीजिये तो भी इस लोक कथा का सार तो यही है कि कुत्ता मनुष्य का सर्वाधिक विश्वसनीय साथी रहा है अनादिकाल से ।

यही कुत्ता भगवान शिव के भैरव रूप का साथी भी है। भगवान दत्तात्रय के साथ भी तस्वीरों में हमें चार कुत्ते नजर आते हैं , जो चार वेदों के प्रतीक माने गये हैं। इतना ही नहीं तो यमराज का दूत भी कुत्ते को माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जब शरीर से आत्मा बाहर निकलती है तो वह कुत्तों को नजर आती है। इसीलिये कई बार हमने कुत्तों को विचित्र आवाज में भौंकते या उसे रोना कहना ज्यादा सही है,सुनते हैं। किंवदंती तो यह है कि कुत्तों को यमदूत दिखते हैं,इसलिये वे अलग तरह से आवाज करते हैं।

मनुष्य सभ्यता के विकास के प्रत्येक क्रम में हम कुत्तों के बारे में जानते आये हैं। जब मनुष्य शिकार आधारित भोजन व्यवस्था पर निर्भर करता था, तब भी उसके साथ कुत्ते अवश्य होते थे। वे शिकार करने,शिकार को घेरने और अपने मालिक की सुरक्षा में लगे रहते थे। उसी दौर से वे शाकाहार व मांसाहर दोनों पर निर्भर रहने लगे। मनुष्य द्वारा किये गये शिकार के बचे हिस्से पर उनका ही अधिकार होता था। फिर से स्वयं भी शिकार करने लगे । एक अनुमान के अनुसार वे 27 हजार से 40 हजार साल से धरती पर हैं। उत्तरी यूरेशिया में उनकी उपस्थिति 14 हजार से 29 हजार वर्ष पहले मानी गई है।

मूलत: भेड़िये की संतान माने जाने वाले कुत्ते का स्वरूप भी परिस्थिति,काल के हिसाब से बदलता रहा। मनुष्य के सामाजिक होने का असर कुत्तों पर भी हुआ । पहले तो कुत्ते शिविर और जंगलों में हुआ करते थे, धीरे-धीरे वे मानव जीवन का हिस्सा बनते गये। मनुष्य ने जिस तरह से संसार की अनेक वस्तुओं व जीवों को अपने हिसाब से उपयोग करना प्रारंभ किया,उसी तरह से उन्होंने कुत्तों का भी उपयोग किया । वह विश्वस्त सहयोगी बना, पालतू बना,शौक बना और समृद्धि व पशु प्रेम का प्रतीक भी बना ।