चौँकिये मत,फेरबदल लाजमी था
सुरेंद्र बंसल
क्यों चौंक रहे हैं आप सब यह तो कोई चौकनें वाली बात नहीं है. मध्य प्रदेश में फेरबदल होना लाजिमी था, शिवराज सिंह चौहान 18 साल तक मुख्यमंत्री बने रहे तो यह कहना गलत है कि यह उनका कोई राजनीतिक प्रताप था..अक्सर पद की प्रतिष्ठा योग संयोग से अधिक होती है, तब किसने सोचा था कि वह मुख्यमंत्री होंगे और उमा भारती को हटाकर जब पद पर आसीन हुए तब उन्होंने भी नहीं सोचा था कि इतने सालों तक उनका राज मध्य प्रदेश में स्थापित रहेगा,लेकिन यह सब हुआ. बीच में ऐसे कई मौके आए जब लगता था कि वह वह पद्चयुत कर दिए जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 2018 का चुनाव हारने के बाद भी संयोगों के चलते हुए पुनः मुख्यमंत्री स्थान पर स्थापित हो गए राजनीति है भाई इसमें कब क्या हो कुछ कहीं नहीं कहा जा सकता.
लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट थी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कोई मुख्यमंत्री का चेहरा भाजपा ने प्रकट नहीं किया था और उससे भी अधिक यह बात थी दो तिहाई बहुमत आने के बाद भी भाजपा ने मुख्यमंत्री चयनित करने में अधिक समय लिया. जब तत्काल मुख्यमंत्री घोषणा नहीं की जा रही थी तब ही साफ हो गया था कि मध्य प्रदेश में बदलाव निश्चित है.
विधानसभा चुनाव में जब अनेक कद्दावर नेताओं को उतार दिया गया तब भी यह स्पष्ट था कि भाजपा हर हालत में चुनाव जीतना चाहती है और जीत के लिए वर्तमान शासन पर उसका कोई भरोसा नहीं है इसलिए भाजपा ने अपनी संपूर्ण राजनीतिक वरिष्ठता की शक्ति को इस बार चुनाव में झोंक दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि भोपाल के लिए केंद्रित होने वाली सारी राजनीतिक ताकते विकेंद्रित होकर अपने-अपने इलाकों में भाजपा को संपूर्ण ताकत से जिताने में जुट गई. भाजपा ने अपनी हारी हुई सीटों पर विजय प्राप्त की तो यह किसका योग था.. केंद्र का राजनीतिक योग था जिसके चलते अपनी खोई हुई सीटों को भाजपा ने प्राप्त किया. यह बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का सूझबूझ का निर्णय था. लाडली बहन योजना का संपूर्ण श्रेय भी कोई शिवराज सिंह चौहान के अकेले का नहीं था इसमें भी केंद्रीय नेतृत्व की सहमति थी तब ही यह योजना लागू की गई. यह निम्न मध्यवर्गीय महिलाओं को पार्टी वोट में तब्दील करने की सफल केंद्रीय नीति थी और इसके परिणाम भी अच्छे आए.
18 साल शासन करने के बाद शिवराज सिंह चौहान मामा और भाई के रिश्ते बनाने में तो सफल रहे लेकिन प्रदेश के विकास के लिए वे नरेंद्र मोदी नहीं बन सके और ना ही नितिन गडकरी… यह शिवराज सिंह चौहान का सबसे माइनस पॉइंट है मुझे लगता है केंद्रीय नेतृत्व ने इसका भी आकलन किया है. और इसके लक्षण काफी पहले से राजनीतिक तौर पर देखे जा रहे थे यह समझ और भनक भी शिवराज सिंह चौहान को थी इसलिए वह अंतिम दौर पर ज्यादा तेज और मुखर हो चले थे. ऐसे में वह मुख्यमंत्री नहीं बनाए गए तो यह कोई चौंकाने वाली घटना नहीं है… यह फैसला किया गया कि तीन पर्यवेक्षकों को मध्य प्रदेश भेजा जाएगा इससे यह स्पष्ट था कि मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश का बदला जाएगा.
अब रही बात जितने वरिष्ठ नेताओं के रहते जो विधानसभा में जीते हैं उन्हें इस पद पर क्यों नहीं मौका दिया गया जबकि पहला हक उनका ही था. सबसे पहला नाम मेरी नजर में ज्योतिरादित्य सिंधिया का था जो कांग्रेस की संपूर्ण सरकार को पलटकर मध्य प्रदेश में बीजेपी की पुनः सरकार बनाने में मुख्य किरदार में रहे. दूसरा नाम भाजपा के महासचिव और इंदौर जैसे बड़े शहर से कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय का है . उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अनेक जिम्मेदारियां मिलती रही उन्हें मध्य प्रदेश से सत्ता से उतारा गया और संगठन में भेजा गया इस बीच कई चुनाव मध्य प्रदेश के हो गए लेकिन वह सत्ता में नहीं लौटे. इस बार कैलाश विजयवर्गीय भी बहुत मुखर थे और जब से उन्हें टिकट मिला आपसे ही वह बयान बड़ी मुखरता से दे रहे थे लिहाज़ा यह जाहिर हो रहा था कि वे भी मध्य प्रदेश में बदलाव चाहते हैं और अपनी दावेदारी को भी कमजोर नहीं होने देना चाहते.. तीसरा नाम प्रहलाद पटेल का था जिसे बदलाव के परिपेक्ष में एक मजबूत नाम समझ जा रहा था और इसका उन्हें भी भान था चुनाव के चलते उनकी भी राजनीतिक रंगत एक मुख्यमंत्री की तरह हो चली थी. चौथा बड़ा नाम केंद्रीय मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर का है माना जा रहा था कि इस बार मौका मिलेगा पांचवा नाम प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का था जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मुख्यमंत्री पद मिल सकता है ऐसी आशा चल पड़ी थी. लेकिन इनमें से कोई भी नाम तय नहीं हुए उसकी एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है इनमें से अगर किसी एक बड़े नेता को मुख्यमंत्री बना दिया जाता तो मध्य प्रदेश में भाजपा के भीतर गुटीय राजनीति को और बढ़ावा मिलता 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते लिए हुए बीजेपी के लिए एक नई मुश्किलें खड़ा करने वाला निर्णय हो जाता. इस दृष्टि से मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलाव का निर्णय एक दूर दृष्टि वाला राजनीतिक निर्णय है इसमें कोई भी चौंकाने वाली बात नहीं है. महाराष्ट्र में जब देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया तब भी एक नया नाम था ऐसे निर्णय राजनीतिक हालातों पर लिए जाते रहे हैं चूंकि नए नाम और नए चेहरे होते हैं इसलिए चौंकना लाजिमी है लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों को समझना भी उतना ही जरूरी है