
मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज न दो…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
दिल भी तेरा हम भी तेरे फिल्म का यह गीत ‘मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज न दो’ मुकेश की आवाज में धर्मेंद्र पर फिल्माया गया था। धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नहीं हैं। और आज उनके सभी प्रशंसकों का दिल यही कह रहा है कि ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’। अब यह बात सुनने के लिए धर्मेंद्र नहीं हैं बस अब उनकी यादें उनके प्रशंसकों के जेहन में रह गई हैं। समीम जयपुरी के इस गीत को कल्याणजी आनंदजी की जोड़ी ने संगीत दिया था। पहले यह गीत ही पढ़ लेते हैं जिसकी हर पंक्ति आज धर्मेंद्र को आंखों के सामने खड़ा कर देती है।
मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज न दो…
जिसकी आवाज रुला दे मुझे वो साज न दो आवाज न दो…
रौशनी हो न सकी लाख जलाया हमने तुझको भूला ही नहीं लाख भुलाया हमने
मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो आवाज न दो…
किस कदर जल्द किया मुझसे कनारा तुमने
कोई भटकेगा अकेला ये न सोचा तुमने छुप गए हो तो कभी याद ही आया न करो आवाज न दो…
धर्मेंद्र फिल्मफेयर पत्रिका के राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नए प्रतिभा पुरस्कार के विजेता थे और पुरस्कार विजेता होने के नाते, फिल्म में काम करने के लिए पंजाब से मुंबई गए, लेकिन फिल्म कभी नहीं बनी। बाद में उन्होंने 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ के साथ अपनी शुरुआत की थी।
तो बॉलीवुड के ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र अब हमारे बीच नहीं रहे। सोमवार, 24 नवंबर 2025 को वह इस दुनिया को विदा कह गए। 89 साल की उम्र में धर्मेंद्र ने अपने जुहू स्थित घर पर ही अंतिम सांस ली। लंबे समय से उनकी तबीयत नाजुक थी। उन्हें 12 नवंबर को ही ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल से परिवार के कहने पर डिस्चार्ज किया गया था। इसके बाद से घर पर ही उनका इलाज चल रहा था। धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार विले पार्ले स्थित पवन हंस श्मशान भूमि में किया गया है। इस दौरान पूरा देओल परिवार और कई सिनेमाई दिग्गज नजर आए। हेमा मालिनी, सनी देओल, बॉबी देओल, ईशा देओल से लेकर अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, संजय दत्त, अनिल कपूर, आमिर खान, सलमान खान, सलीम खान भी इस दौरान आंखों में आंसू समेटे मौजूद रहे। धर्मेंद्र को मुखाग्नि उनके बड़े बेटे सनी देओल ने दी है। उनके निधन ने पूरे देश को शोक की लहर में डुबो दिया है।
यह भी एक संयोग है कि सोमवार को ही उनकी अगली फिल्म ‘इक्कीस’ का मोशन पोस्टर रिलीज हुआ है। और 90वां जन्मदिन मनाने से ठीक 14 दिन पहले ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके फैन्स और अपनों को ये उम्मीद थी कि वो ठीक होंगे और अपना ये बर्थडे भी सेलिब्रेट करेंगे। पर यह संभव नहीं हो सका।
धर्म सिंह देओल (जन्म 8 दिसम्बर 1935, मृत्यु 24 नवम्बर 2025), जिन्हें धर्मेंद्र के नाम से जाना जाता है। धर्मेंद्र का जन्म 8 दिसम्बर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के साहनेवाल गांव में एक जाट सिख परिवार में किशन सिंह देओल और सतवंत कौर के घर हुआ था। वह एक भारतीय अभिनेता, निर्माता और राजनीतिज्ञ थे वो लोकसभा क्षेत्र बीकानेर के सासंद रहे हैं। धर्मेंद्र हिंदी फिल्मों में अपने काम के लिए जाने जाते थे। बॉलीवुड के “ही-मैन” के रूप में जाने जाने वाले धर्मेंद्र ने पांच दशकों के करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया है। 1997 में, उन्हें हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला। वह भारत की 15 वीं लोकसभा के सदस्य थे, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से राजस्थान में बीकानेर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे। 2012 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
उनकी सबसे सफल जोड़ी हेमा मालिनी के साथ थी, जो आगे चलकर उनकी दूसरी पत्नी बनीं। इस जोड़ी ने राजा जानी, सीता और गीता, शराफत, नया जमाना, पत्थर और पायल, तुम हसीन मैं जवान, जुगनू, दोस्त, चरस, मां, चाचा भतीजा, आजाद और शोले सहित कई फिल्मों में एक साथ काम किया। उनके सबसे उल्लेखनीय अभिनय प्रदर्शनों में हृषिकेश मुखर्जी के साथ सत्यकाम और शोले शामिल हैं, जिसे इंडियाटाइम्स द्वारा “सभी समय की शीर्ष 25 बॉलीवुड फिल्मों को देखना चाहिए” में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 2005 में, 50वें वार्षिक फिल्मफेयर पुरस्कारों के न्यायाधीशों ने शोले को 50 वर्षों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के फिल्मफेयर के विशेष सम्मान से सम्मानित किया।
1997 में, उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार मिला। दिलीप कुमार और उनकी पत्नी सायरा बानो से पुरस्कार स्वीकार करते हुए, धर्मेंद्र भावुक हो गए और उन्होंने टिप्पणी की कि इतनी सारी सफल फिल्मों और लगभग सौ लोकप्रिय फिल्मों में काम करने के बावजूद उन्होंने कभी भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में कोई फिल्मफेयर पुरस्कार नहीं जीता। इस अवसर पर बोलते हुए दिलीप कुमार ने टिप्पणी की, “जब भी मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर से मिलूंगा, मैं उनके सामने अपनी एकमात्र शिकायत रखूंगा – तुमने मुझे धर्मेंद्र की तरह सुंदर क्यों नहीं बनाया?”।
तो दिलीप कुमार से सबसे ज्यादा प्रभावित धर्मेंद्र अब खुद भी उनसे मिलने उस लोक में चले गए हैं जहाँ से कोई लौटकर नहीं आता। शोले का यह गीत ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, छोड़ेंगे सब मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे…’ आज भी सबकी जुबां पर है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र पर यह गीत फिल्माया गया था। पर यह दोस्ती छोड़कर अब धर्मेंद्र इस दुनिया से विदा हो गए हैं। मन को समझाइश देने के लिए यही कहा जा सकता है कि ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना’। धर्मेंद्र के जाने के साथ ही फिल्मी दुनिया का ‘धर्मेंद्र युग’ खत्म हो गया है। अब जहां धर्मेंद्र छुप गए हैं, तब यह नहीं कहा जा सकता कि याद आया न करो… अब तो बस उनकी यादें ही उनके करोड़ों प्रशंसकों का सहारा रहेंगी।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





