

नामी होने के फेर में मत पड़िए!
मुकेश नेमा
यक़ीन मानिये।आपको कोई नही जानता।कोई नही पूछता।क्यों पूछे ? पूछे भी कैसे। किसी के पास वक्त ही नहीं दूसरे के लिये।सब अपने अपने में मगन।मरने तक की फ़ुरसत नही।सब जुटे पड़े है अपनी अपनी शक्ल चमकाने में।ऐसे में यह ग़लतफ़हमी तो पालिये मत कि कोई आपको गहराई से जानता है।जानना चाहता है।आपके बारे में अपनी राय ज़ाहिर करने के लिये व्याकुल है।ये हिंदुस्तान है भैया।यहां पता नहीं कितने पैदा होकर मर गये।भीड़ है लोगों की फिर भी मैयत तक में जाने वालों का टोटा पड़ जाता है यहाँ आदमी को। किसी हीरो की गिनती से लगातार चार फ़िल्में पिट जाएँ ,किसी हीरोईन का ब्याह हो जाए,कोई धेले भर भी नहीं पूछता फिर उन्हें।राजधानी जाए मंत्री तो रेल्वे स्टेशन पर छोड़ने वालों की चार सौ लोगों की भीड़ ,सरकार गिर जाने पर जब वो ही बंदा अपने इलाक़े में लौटे तो उसे रिसीव करने स्टेशन पर चार कुत्ते भी नहीं।ऐसे में आप कहाँ और हम कहाँ।
और काहे का नाम आपका।कैसा नाम।ऐसे कौन से तीर मार लिये आपने जो आपके बारे में विचार रखे भी जायें और व्यक्त भी किये जायें।ऐसा क्या अनोखा कह दिया आपने जो पहले नहीं सुना गया।कौन से दुर्गम इलाक़े में ऐसे कौन से झंडे गाड़ दिये आपने। ऐसा क्या कर गये आप जो पहले कोई कर नहीं चुका।
आप चाहते ही क्यों हैं कि आपको कोई जाने ? जानने से बचना चाहिए। हम जैसे हैं वो वाकई जान जाए कोई तो मरण ही समझिए। वो नेताजी वाला किस्सा सुना ही होगा आपने। विधायक थे जनाब और जब फिर से चुनाव के आए तो उन्होंने हाई कमान से रिक्वेस्ट की कि उनका चुनाव क्षेत्र बदल दिया जाए। टिकट बाँटने वालो ने हैरानी जताई। आपको तो सब जानते हैं वहाँ। नेताजी ने मायूस होकर कहा ,यही तो दिक्कत है कि मुझे वहाँ सब जानते हैं। सो हम चाहते है कि लोग हमें जाने पर उस तरीके से तो हरगिज़ नही जैसे हम वाकई मे हैं।
लोग हमें जाने ,या सच मे न जान जाएं इस कोशिश में बहुत बार हम नकली हो जाते है। नकली होना बहुत मुश्किल काम। आप हमेशा डरे होते हैं ,आपको हर वक्त एक्टिंग की मुद्रा में रहना पड़ता है और जब कभी आप इससे चूक जाते है तो फिर आसमान गिरता है सर पर। सर बचाना सबसे ज़रूरी इसलिए जानने के चक्कर से बचे रहना ही अच्छा है।
और फिर जिन्हें जान चुकी दुनिया या जो ये भ्रम पाले बैठे हैं कि लोग मुझे जानते हैं , उनका जीवन मुहाल ही हुआ है। आए दिन फ़िल्मों के एक्टर रोना रोते मिल जाएँगे। हाय अब फुटपाथ पर खड़े होकर गोलगप्पे नही खा सकते। यदि आपको गोलगप्पे का दोना थामने के पहले सौ बार सोचना पड़े तो जीवन तो निरर्थक ही हुआ फिर। सो जानने के फेर मे मत पड़िये। ये विचार ही जी का जंजाल है। मस्त रहिए। कोई हमें नही जानता ये ख्याल आपको स्वतंत्र करता है और स्वतंत्रता से बड़ा दूसरा कोई सुख नही है।