जाने क्यों लगता है भय….

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जाने क्यों लगता है भय….

कवि की कलम जो रचती है, उसकी प्रासंगिकता सर्वकालिक होती है। ऐसी ही एक रचना है, जिसका शीर्षक है ‘लौटना’…

दिन भर की थकान के बाद

घरों की तरफ़ लौटते हुए लोग

भले लगते हैं ।

दिन भर की उड़ान के बाद

घोंसलों की तरफ़ लौटतीं चिड़ियाँ

सुहानी लगती हैं ।

लेकिन जब

धर्म की तरफ़ लौटते हैं लोग

इतिहास की तरफ़ लौटते हैं लोग

तो वे ही

धर्म और इतिहास के

हत्यारे बन जाते हैं ।

ऐसे समय में

सबसे ज़्यादा दुखी और परेशान

होते हैं सिर्फ़

घरों की तरफ़ लौटते हुए लोग

घोंसलों की तरफ़ लौटती हुई

चिडि़याँ।

यह कविता मध्यप्रदेश के कवि ‘भगवत रावत’ की है। कविता जो कह रही है, वह वर्तमान में भी प्रासंगिक है और भविष्य में भी रहेगा। इन दिनों पूरा देश इतिहास और धर्म को लेकर दो खेमों में बंटा नजर आ रहा है। भगवत रावत ने इसे भले ही दशकों पहले लिखा हो, पर आज भी यह कविता प्रासंगिक है। आज हम भगवत रावत को इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि आज उनका जन्मदिन है। यह विशेष है कि वह मध्यप्रदेश के थे और बुंदेलखंड में जन्मे और पले-बढ़े थे।

भगवत रावत के जीवन को संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं। भगवत रावत (जन्म: 13 सितंबर, 1939; मृत्यु: 25 मई, 2012) एक प्रगतिशील कवि एवं निबन्ध लेखक थे। भगवत रावत मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष और ‘वसुधा’ पत्रिका के संपादक भी रहे। भगवत रावत समकालीन हिन्दी कविता के शीर्षस्थ कवि, साहित्यकार और मेहनतकश मज़दूरों के प्रतिनिधि कवि के रूप में प्रसिद्ध रहे। भगवत रावत का जन्म 13 सितंबर 1939 को टेहेरका, टीकमगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ। भगवत रावत की शिक्षा एम.ए. बी.एड है।1983 से 1994 तक हिन्दी के रीडर पद पर कार्य के बाद दो वर्ष तक ‘मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी’ के संचालक रहे। 1998 से 2001 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, भोपाल में हिन्दी के प्रोफेसर तथा समाज विज्ञान और मानिविकी शिक्षा विभाग के अध्यक्ष रहे। भगवत रावत साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश परिषद् के निदेशक भी रहे एवं मासिक पत्रिका ‘साक्षात्कार’ का संपादन भी किया।

रावत के कविता संग्रहों में समुद्र के बारे में (1977), दी हुई दुनिया (1981), हुआ कुछ इस तरह (1988), सुनो हिरामन (1992), सच पूछो तो (1996), बिथ-कथा (1997), हमने उनके घर देखे (2001), ऐसी कैसी नींद (2004), निर्वाचित कविताएं (2004), आलोचना

में कविता का दूसरा पाठ (1993) शामिल है। उन्हें कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया। इनमें दुष्यंत कुमार पुरस्कार (1979), वागीश्वरी पुरस्कार (1989), साहित्य शिखर सम्मान (1997–98), भवभूति अलंकरण सम्मान प्रमुख हैं।भगवत रावत का निधन 25 मई, 2012 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ।

भगवत रावत की एक और कविता पर नजर डालते हैं, जिसका शीर्षक है ‘ऐसे घर में’

सब कुछ भला-भला

सब तरफ़ उजियाला

कहीं न कोर-कसर

सब कुछ आला-आला

सब कुछ सुथरा-साफ़

सभी कुछ सजा-सजा

बोली बानी मोहक

अक्षर-अक्षर सधा-सधा

सब कुछ सोचा-समझा

सब पहले से तय

ऐसे घर में

जाने क्यों लगता है भय।

कवि की यह बात घर की चहारदीवारी तक ही प्रासंगिक नहीं है। यह बात पूरे समाज, राष्ट्र और पूरी धरा तक विस्तार लिए है। पर बात वही है कि लोग घरों तक ही सीमित नजर आ रहे हैं और इससे समाज और राष्ट्र गौण होकर सिमटे-सिमटे उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। घरों को सजाने-संवारने में क्या-क्या चौपट हो रहा है, यह सब समझा जा सकता है।और फिर वही बात कि ऐसे घरों में जहां सब कुछ व्यवस्थित लग रहा हो, वह कवि को भय से भर देता है। वैसे घरों को लेकर कवि भी

सशंकित है, हो सकता है आप भी हो …।