Dowry Mental Cruelty : हाई कोर्ट की टिप्पणी ‘दहेज के लिए पत्नी को मायके में रहने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता!’

परिवार के खिलाफ दर्ज FIR खारिज करने की मांग को कोर्ट ने नामंजूर किया!

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Dowry Mental Cruelty : हाई कोर्ट की टिप्पणी ‘दहेज के लिए पत्नी को मायके में रहने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता!’

Jabalpur : दहेज की मांग करने और पत्नी के मायके जाने पर एमपी हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने शादीशुदा जिंदगी बचाने पर भी अहम टिप्पणी की। शहडोल निवासी एक परिवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की एकलपीठ ने ये टिप्पणी की। इसी के साथ जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने परिवार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने की मांग को भी नामंजूर कर दिया।

इस मामले में पत्नी ने अपने पति के परिवार पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया था। इससे परेशान होकर वह मायके चली गई। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि दहेज की मांग करते हुए पत्नी को मायके में रहने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पत्नी की चुप्पी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वैवाहिक जीवन बचाने के लिए चुप रहना नेक काम है।

शहडोल के नीरज सराफ, पंकज सराफ और उसकी पत्नी सीमा सराफ ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें रीवा महिला थाने में उनके खिलाफ दहेज प्रकरण में दर्ज एफआईआर को खारिज किए जाने की मांग की गई। आरोपियों का दावा था कि उनके छोटे भाई सत्येंद्र की पत्नी शिल्पा ने शादी के साढ़े 4 साल बाद दहेज प्रताड़ना की झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई थी।

एकलपीठ ने शिल्पा की शिकायत सही पाई। शिल्पा ने स्पष्ट आरोप लगाए कि शादी के चार महीने बाद से ही पति और उसके परिजन 20 तोला सोना तथा फॉर्च्युनर कार के लिए उसके साथ मारपीट करने लगे थे। मांग पूरी नहीं होने पर ससुराल से निकाल दिया तो वह माता-पिता के पास मायके आकर रहने लगी।

सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि तलाक का नोटिस मिलने के बाद शिल्पा को लगा कि अब समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए उसने पुलिस में दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज करवाई। कोर्ट ने यह भी कहा कि दांपत्य जीवन को बचाने के लिए चुप रहना अच्छा है। इसे तलाक का नोटिस मिलने के बाद की प्रतिक्रिया नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने दहेज की मांग करते हुए पत्नी को मायके में रहने के लिए मजबूर करने को मानसिक क्रूरता बताया है। इसी के साथ कोर्ट ने एफआईआर को खारिज करने की मांग नामंजूर कर दी।

जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने अपने आदेश में अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि शादीशुदा जिंदगी बचाने के लिए पत्नी का चुप रहना नेक काम है। इसे पति द्वारा तलाक के लिए दायर आवेदन की प्रतिक्रिया नहीं माना जा सकता।