गुड़ी पड़वा-सर्वकालिक शुभ दिन

मान्यता आज से नहीं अनादिकाल से है कि ब्रह्मांड रचयिता ब्रह्माजी ने इस दिन से सृष्टि की रचना की ।
अब वही दिन सनातन हिंदू धर्म के अनुसार नववर्ष का प्रथम दिन माना जाने लगा है । यह निर्विवाद है कि सर्वाधिक प्राचीन और अकाट्य , सत्य सनातन धर्म ही इस धरा पर प्रचलित है ।

कालांतर में विभिन्न वर्गों और धर्मों को मानने – जानने और चलाने वाले आये और गये । सर्व समावेशी हिंदू धर्म अनवरत बना रहा । वैश्विक संदर्भों में भी आज यह प्रबलता और प्रखरता के साथ स्वीकार्यता से ग्राह्य है ।
न केवल भारत में अपितु अन्य देशों में भी इसकी मान्यताओं को महत्व देकर सम्मान दिया जारहा है ।
चैत्र कृष्ण अमावस्या की कालिमा दूर कर संवत 2079 शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा ( एकम ) के साथ समुन्नति का नूतन वर्ष आरम्भ होरहा है ।

मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि आरम्भ , चेटीचंड उत्सव , उगादि और युगादि त्यौहार भी इस दिन मनाये जाते हैं । इसी दिन सतयुग आरम्भ का प्रथम दिवस भी माना जाता है ।
ब्रह्म पुराण में भी गुड़ीपड़वा का संदर्भ मिलता है ।
वरेण्य गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वारा इस दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त , दिन – रात , महीना – तिथि और वर्ष कालखंड अनुसार पहले भारतीय पंचांग की रचना की थी ।

ज्योतिष विज्ञान के जानकारों , खगोलशास्त्र के विद्वानों ने ग्रहों , नक्षत्रों , सूर्यग्रहण , चंद्रग्रहण , मल मास , क्षय तिथि आदि के संचरण , जातकों पर प्रभाव , नेष्ट और अनिष्ट की क्रमबद्ध सूचनाएं लिपिबद्ध की हैं जो आधारभूत बन गई हैं ।
यही नहीं भारतीय नववर्ष गुड़ीपड़वा पूर्णतः वैज्ञानिक भी माना गया है ।

कालगणना में नववर्ष प्रतिपदा का बड़ा महत्व है । राजकाज जनवरी से दिसंबर चलते हैं परन्तु आमजनमानस और सामाजिक – धार्मिक व्यवस्था में विक्रम संवत की मान्य है । बताते हैं कि प्राचीन हिंदू धर्म पांच हजार वर्ष से अधिक समय से प्रचलित है ।

मान्यताओं के साथ आस्थाएं जुड़ती चली गई हैं । कहते हैं भगवान श्रीराम की महाविजय का पर्व भी है गुड़ीपड़वा ।

🔸 गुड़ीपड़वा क्या ?

गुड़ी का शाब्दिक अर्थ झंडा होता है वहीं पड़वा को प्रतिपदा कहा गया ।
सुख समृद्धि और खुशहाली के लिए शुभकामनाओं के साथ नववर्ष प्रतिपदा को झंडा फहराना भी गुड़ीपड़वा है ।
भगवान ब्रह्मा का ध्वज अर्थात गुड़ी प्रतीक है और चंद्रदर्शन में चंद्र चरण का प्रथम दिवस अर्थात प्रतिपदा , पड़वा कहा गया है ।

ज्योतिष विज्ञान में भी शुद्ध भाव से गुड़ी फहराने को सुख शांति का सूचक माना है ।
महाराष्ट्र में मराठा क्षत्रप शिवाजी की युद्ध में विजय का दिन भी गुड़ीपड़वा माना है । यूं तो देश – विदेश में बसे भारतवंशी उत्साह और उल्लास से यह दिवस पर्व के रूप में मनाते हैं ।
विशेष रूप से महाराष्ट्र , गोआ , कोंकण , दक्षिण भारत , उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में यह ख़ास त्यौहार है ।
स्वस्तिक , शुभंकर , रंगोली बनाने का चलन है । नई फ़सल कटाई का मुहूर्त भी माना जाता है ।

🔸 इस बार अतिरिक्त उत्साह हर वर्ग में वर्ष प्रतिपदा ” गुड़ीपड़वा ” का देखा जारहा है । विगत दो वर्षों में वैश्विक कोरोना संक्रमण के चलते सब कुछ थम सा गया था , अब कुछ राहत मिलते ही सेतुबंध हटने के साथ उत्सव प्रिय सामान्य जन त्योहारों में संलिप्त नज़र आने लगा । होली के रंग बहुत खुल कर बिखरे , ऊंच नीच मिटाकर रंग गुलाल के साथ घुल मिल गये ।
यही तर्ज़ गुड़ीपड़वा पर भी लक्षित है ।

इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ गुड़ीपड़वा की अनंत शुभकामनाएं ।