

Dr Mohan Yadav: मुदित करने वाला जिद, जज्बा और जुनून
जयराम शुक्ल की खास रिपोर्ट
मध्यप्रदेश की भाजपा को धार देने वाले यशस्वी नेता और भूतपूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से एक बार मैंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों की कार्यशैली व व्यक्तित्व लेकर कुछ सवाल किए तो उन्होंने उसका जवाब वस्तुनिष्ठ किन्तु दार्शनिक शैली में दिए। कहा- शुकल जी(मुझे यही कहते थे) सबका अपना-अपना प्रारब्ध होता है। किसी की तुलना किसी से नहीं की जा सकती, सबका अपना-अपना वैशिष्ट्य होता है। लोग नाहक ही एक मुख्यमंत्री की छवि दूसरे में तजवीजते रहते हैं। ये बात तब की है जब शिवराज सिंह चौहान जी ने सांसदी छोड़ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
मीडिया का एक बड़ा वर्ग उन्हें मुख्यमंत्री जैसे खांचे में फिट नहीं मानता था। एक साल तक ख़बरें निकलती रहीं बस आज गए-कल गए। हुआ क्या? शिवराज सिंह चौहान ने बतौर मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश में कीर्तिमान कायम किए और सोशल इंजीनियरिंग के ऐसे नायाब फार्मूले दिए कि केन्द्र सरकार से लेकर अन्य राज्य सरकारें(गैर भाजपाई भी) उनके फार्मूले में सत्ता में बने रहने के समीकरण साधती नजर आ रही हैं।
विक्रमादित्य की नगरी उज्जयिनी के सुपुत्र डा.मोहन यादव(60वर्ष) ने जब 12 दिसंबर 2023 के दिन मध्यप्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री की शपथ ली उस दिन मीडिया से लेकर भाजपा के नेताओं का भी वर्ग असहज था कि यह कैसा हो रहा है। डा.मोहन यादव के एक वर्ष का कार्यकाल व्यंग, तंज और चला चली की खबरों के बीच बीता। इसी फरवरी में जब भोपाल में सफलतम ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट संपन्न हुआ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह ने जब उनके आयोजन के सफलता की मुक्त कंठ से सराहना की तो व्यंग और तंज कसने वालों को जवाब मिल गया कि डा.मोहन यादव पर शीर्ष नेतृत्व ने यूं ही नहीं दांव खेला है।
अनुभवी पटवा जी ठीक ही कहते थे कि सबका अपना-अपना प्रारब्ध होता है और काम करने का वैशिष्ट्य। शिवराज जी का अपना प्रारब्ध था मोहन जी का अपना है, बिल्कुल अतुलनीय।
देसी दिखने और उसी अंदाज में जीने वाले डा. मोहन यादव की सोच और सपनों की उड़ान प्रदेशवासियों ने तब देखी जब वे इन्वेस्टर्स समिट के सिलसिले में विदेश यात्राएं शुरू कीं, राष्ट्राध्यक्षों व कारपोरेट जगत की हस्तियों मिलने पहुंचे।
भगवान कृष्ण की दीक्षा नगरी का बेटा जब जर्मनी के म्यूनिख में मैक्समूलर की बात करता है तब यह अहसास होता है कि डा.मोहन यादव महज मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं भारत के सांस्कृतिक दूत भी हैं। डा.यादव जर्मनी और इंग्लैंड के प्रवास पर थे। प्रयोजन था वहां के निवेशकों को मध्यप्रदेश में उद्योग लगाने के लिए न्योतना।
25 मार्च को डाक्टर यादव के जीवन के साठ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। वे विद्यार्थी परिषद से सामाजिक जीवन में आए। उनके अतीत के वर्षों की पृष्ठभूमि पर देखें तो उनके व्यक्तित्व की एक समन्वित छवि उभर कर सामने आती है। मध्यप्रदेश को देश में नंबर एक बनाने की ललक रखने वाले एक अनथक परिश्रमी नेता की, सनातन से चली आ रही अध्यात्मिक सांस्कृतिक थाती को सहेजने और उसके आलोक को विस्तारित करने की चाह रखने वाले सांस्कृतिक पुरुष की, प्रदेश को एक कुटुम्ब की भांति जीवंत एकजुट बनाए रखने की जतन करने वाले सपूत की।
यह सही है कि जब 13 दिसंबर 2023 के दिन मुख्यमंत्री पद के लिए डा.यादव का नाम उभरा तो प्रायः प्रत्येक वर्ग के लोगों को अप्रत्याशित लगा। मीडिया में एक से एक कथाएं तैरती रहीं। लेकिन जो लोग डा.यादव की राजनीति के उद्भव व विकास की यात्रा जानते हैं उनके लिए यह अवश्यंभावी जैसे था।
डा. यादव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से कार्यकर्ता के रूप में जुड़े रहे। 1982-84 के समयकाल में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस अपनी प्रबल प्रचंडता पर थी तब वे विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी के तौरपर अपने माधव कालेज के छात्रसंघ के पदाधिकारी भारी मतों से चुने जाते रहे। 84 में वे छात्रसंघ के अध्यक्ष बने।
परिषद के बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा फिर भारतीय जनता पार्टी के ब्लाक स्तर के पदाधिकारी से प्रदेश और राष्ट्रीय प्रतिनिधि तक पहुंचे। इसी के समानांतर उज्जैन नगर में राष्ट्रीय स्वयं संघ के दायित्वों का निर्वहन करते रहे। उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट 2008 में तब आया जब उन्होंने मिली हुई विधानसभा टिकट को विनम्रता पूर्वक लौटाते हुए प्रदेश नेतृत्व से निवेदन किया कि इस टिकट के अधिकारी उनसे भी वरिष्ठ और कर्मठ कार्यकर्ता हैं। मोहन की यह सदाशयता संघ और संगठन दोनों के कर्ताधर्ताओं को मोहित कर गई। 2008 में जब मध्यप्रदेश में दोबारा भाजपा की सरकार बनी तो डा. यादव को उज्जैन विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया गया। छह वर्ष का यह कार्यकाल इसलिए भी चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि तब उज्जैन में ‘सिंहस्थ 2016’ की योजनाएं आकार ले रहीं थीं। 2013 में विधायक चुने जाने कुछ कुछ महीने बाद ही राज्य पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष का दायित्व दे दिया गया। पहली बार के विधायक को कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ स्थापित किया जाना बड़ा संकेत था। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी। अपने ही बोझ से जब वह 2020 में औंधे गिरी तब कई दिग्गजों को दरकिनार करते हुए मोहन यादव कैबिनेट में शामिल किए गए और उन्हें उच्च शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया। उच्च शिक्षा में नई शिक्षा नीति और मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिन्दी माध्यम से आरंभ करने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
इसलिए मैं कहता हूं कि डा.यादव की राजनीतिक यात्रा के वृत्तांत को जो सूक्ष्मता से जानता रहा उन्हें वह क्षण कतई अप्रत्याशित नहीं लगा जब – ‘मध्यप्रदेश के अगले मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव होंगे’ की घोषणा हुई। आप कह सकते हैं कि संघ और संगठन ने योजनाबद्ध तरीके से कार्यकर्ता मोहन यादव को मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव के रूप में गढ़ा।
डा. यादव से मेरा परिचय दीनदयाल विचार प्रकाशन संस्थान की पत्रिका ‘चरैवेति’ के संपादन काल(2013-16) में हुआ। वे प्रायः चरैवेति के कार्यालय आते किसी न किसी विषय पर अपने लेख के साथ। चुनाव लड़ने व पद धारण करने वाले नेता पढ़ने- लिखने वाले भी होते हैं, मोहन जी ने इस धारणा को मजबूत किया। उज्जैन में कृष्ण के गुरुकुल संदीपन आश्रम, विक्रमादित्य की विरासत, कालिदास के विपुल साहित्य और वाराह मिहिर की ज्योतिषीय विद्वता की चर्चा करते। दो वर्ष ‘चरैवेति’ का वार्षिक पंचांग मोहन जी के ही सौजन्य से निकला। उन्हें महाकाल की नगरी उज्जयिनी का निवासी होने की गर्वानुभूति प्रतिक्षण रहती। हर किसी को वहां आने का न सिर्फ आमंत्रण देते बल्कि उसका आतिथ्य भी करते। तब उन्होंने मुझे अपनी लेखकीय कृति ‘विश्व काल गणना का केंद्र डोंगला’ की पुस्तक भेंट की। विक्रमादित्य शोधपीठ की स्थापना उन्हीं की कल्पना रही और अब मध्यप्रदेश में रामवनगमन पथ के साथ कृष्ण पाथेय की योजना पर काम चल रहा है।
विशाल जनसमूह में परिवार के सदस्य की भांति घुलने मिलने का उनका अपना अंदाज है। रीवा उनकी ससुराल है। 1992 में जब वे परिषद के कार्यकर्ता थे तब यहां के कर्मठ स्वयं सेवक और सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य ब्रह्मानंद जी यादव ने मोहन जी को अपने दामाद के रूप में पसंद किया। बतौर मुख्यमंत्री मोहन जी जब-जब भी रीवा आते हैं यह बताने -जताने से नहीं चूकते कि वे रीवा के दामाद हैं इसलिए यहां के लिए कुछ विशेष, कुछ ज्यादा करने की विवशता भी है और यहां के लोगों का अधिकार भी। डाक्टर यादव ने लोकपर्वों के लोकव्यापीकरण का काम शुरू किया। जन्माष्टमी, गोवर्धन पूजा, रक्षाबंधन और भी कई पर्वों का स्वरूप व्यापक किया। मध्यप्रदेश के प्रायः सभी धर्मस्थल सांस्कृतिक केन्द्रों के रूप में विकसित होने शुरू हुए हैं। मोहनजी के नेतृत्व में गोवंश संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश अग्रणी है।
अधोसंरचना, ऊर्जा, कृषि, सिंचाई, समाज कल्याण, शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में बराबर की दृष्टि है। मेडिकल कालेजों की संख्या 20 तक पहुंच गई, 12 जनभागीदारी में बनने जा रहे हैं। एक लाख सरकारी भर्तियां 2025 में करने का लक्ष्य है ग्लोबल इन्वेस्टर्स कान्क्लेव में लगभग 30 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। यदि यह सब यथार्थ के धरातल पर उतरता है तो कोई 20-25 लाख युवाओं को सीधे रोजगार के मौके मिलेंगे। इस वर्ष प्रदेश के बजट का आकार साढ़े तीन लाख करोड़ का है, अगले पांच वर्ष में इसे दोगुना करने का लक्ष्य है।
डा.मोहन यादव अपनी धुन पर, अपनी जिद, अपने जज्बे का साथ आगे बढ़ रहे हैं। मध्यप्रदेश के आठ करोड़ लोगों में उत्कर्ष की आकांक्षा को जाग्रत किया। यह यात्रा चलती रहे सतत्.. निरंतर।
(लेखक – मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार/ विश्लेषक व विचारक हैं)