संयुक्त राष्ट्र कॉमट्रेड डेटाबैस के अनुसार दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर अमेरिका है और उसके बाद रूस का नंबर आता है। ये दोनों देश मिलकर अधिकांश मुल्कों को हथियारों की सप्लाय करते हैं। रूस अकेला 45 से ज्यादा देशों को हथियार एक्सपोर्ट करता हैं। दुनिया में जितने भी हथियारों की खरीद-फरोख्त होती है, उसमें से केवल 20 प्रतिशत हिस्सा केवल रूस के खाते में है। रूस के हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार भारत है और भारत के बाद चीन का नंबर आता है। अल्जीरिया, एजीप्ट और वियतनाम का नंबर उसके बाद आता है।
रूस के हथियारों की ग्राहकी पुरानी है और भारत कई दशक से उसका ग्राहक हैं, लेकिन 2016 के बाद भारत रूस का सबसे बड़ा ग्राहक बन चुका है। संयोग की बात है कि चीन ने पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका से अपने हथियारों की खरीद थोड़ी कम कर दी है और वह भी रूस की तरफ आकर्षित हो रहा है।
रूस के हथियार बाजार में विविध तरह का सामान उपलब्ध है। उन्नत किस्म के लड़ाकू विमान, वायु रक्षा प्रणाली, राडार, मिसाइल, टैंक, बख्तरबंद वाहन, तोपखाने में काम आने वाले गोला बारूद मुख्य रूप से शामिल हैं। रूस की हथियार फैक्ट्रियां अपने हथियारों में समय-समय पर आर एंड डी करती रहती हैं। इसके अलावा रूस अपनी सेना को आधुनिक बनाने के लिए लगातार प्रयास करता रहता हैं। ये रक्षा सामग्री बनाने वाली कंपनियां रूस का एक सरकारी विभाग रोस्टेक के नियंत्रण में है। रूस ने हाल ही में कुछ प्राइवेट कंपनियों को भी यह काम दिया है, लेकिन उसकी निगरानी भी यही कंपनी करती है।
अपने माल को दुनियाभर में खपाने के साथ ही रूस ने अमेरिकी रक्षा उत्पादनों को महंगा और बदनाम करने के लिए सिलसिलेवार अभियान चला रखा है। रूस के हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक भारत अगर 20 प्रतिशत सामान मंगवाता है, तो चीन कुल कारोबार का लगभग 18 प्रतिशत मंगवाता है। जाहिर है ऐसे में रूस के लिए भारत बहुत महत्वपूर्ण है और चीन भी। यूक्रेन के युद्ध में अभी तक रूस ने अपने सबसे खतरनाक हथियार नहीं झोंके है, क्योंकि विश्व युद्ध का खतरा आसन्न है। रूस के पास इस वक्त अपने हथियारों को शोकेज करने का बहुत अच्छा अवसर हैं और युक्रेन युद्ध में वह ऐसा कोई अवसर गंवाना नहीं चाहता। सोवियत संघ के विघटन के बाद हाल के बरसों तक यूक्रेन भी रूस से ही बड़ी संख्या में हथियार आयात करता था।
चीन ने रूसी हथियारों की खरीददारी के साथ ही धीरे-धीरे उन हथियारों के डुप्लीकेट बनाना भी शुरू कर दिया। साथ ही रूसी आयात में भी कमी कर दी। इस कारण रूसी हथियारों पर चीन की निर्भरता काफी हद तक कम हो गई। रूस बार-बार चीन को सलाह देता रहा कि वह हथियार अपने यहां बनाने के बजाय रूस से मंगाए, लेकिन चीन इसके लिए तैयार नहीं हुआ। चीन हर बार रूस को यही कहता रहा कि सैन्य सहयोग तो बढ़ेगा, लेकिन हथियारों की खरीददारी उसने नहीं बढ़ाई। अभी चीन रूस से केवल वे ही हथियार मंगाता है, जिसके लिए वह खुद सक्षम नहीं है। चीन की दिलचस्पी हमेशा यह होती है कि वह हथियार बनाने वाली प्रौद्योगिकी पर कब्जा करें।
रूस पर दुनिया के कई देश लगातार आर्थिक प्रतिबंध लगाते जा रहे हैं। रूस इससे विचलित जरूर हुआ है, लेकिन यह बताने की कोशिश भी कर रहा है कि उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी तरफ अमेरिका है, जो रूस की सेना पर पुतिन की महत्वाकांक्षाओं को झटका देने के लिए तैयार बैठा है। बीते 25 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ने साफ-साफ कहा कि अमेरिका रूस पर और प्रतिबंध लगाने से पीछे नहीं हटेगा। हम रूस को संवेदनशील प्रौद्योगिकी एक्सपोर्ट नहीं करेंगे। खासकर के रक्षा उत्पादनों से संबंधित अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च आर्गेनाइजेशन के अनुसार भारत मुख्य रूप से रक्षा मामलों में रूस के हथियारों और प्रौद्योगिकी पर निर्भर है। 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत लगभग 58 प्रतिशत हथियार रूस से आयात करता है। भारतीय वायु सेना के लिए सरकार ने रूस से 5-एस-400 वायु रक्षा प्रणालियों की खरीद का अनुबंध किया था। लगभग 5.5 अरब डॉलर के इस अनुबंध पर अमेरिका को बड़ा ऐतराज था।
अमेरिका ने कहा कि यह बहुत ही संवेदनशील सौदा है और यह अमेरिका के स्थानिय कानून सीएएटीएसए (काउंटलिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेक्शंस एक्ट) के अंतर्गत आता है। इस कानून में अमेरिका उन देशों के खिलाफ प्रतिबंध लगा देता है, जो रूसी, ईरानी और उत्तर कोरियाई रक्षा सामग्री की खरीद से जुड़ा होता है। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति से जब एक पत्रकार ने सवाल किया कि भारत अमेरिका का प्रमुख रक्षा भागीदार है और वह रूस से तालमेल बैठा रहा है, इस पर आप क्या कहेंगे?
उस सवाल के जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति ने सवाल को दोबारा पूछा। फिर कहा कि हम इस मामले में अभी भारत से मशविरा कर रहे हैं। भारत ने रूस से क्रिवाक थ्री श्रेणी के युद्धपोतों की खरीद के लिए भी समझौता कर रखा है। यह खरीद 3 अरब डॉलर की है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यह सौदा भी प्रभावित हुआ है। भारत की योजना थी कि इस तरह के तीन युद्ध पोतों की खरीद की जाए और इसी तकनीक को आयात करके दो युद्धपोत गोवा शिपयार्ड में बनाए जाएं।
रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत के सामने एक और परेशानी यह है कि भारत के पास एंटोनो-32 किस्म के 100 से ज्यादा लड़ाकू विमान है। इन विमानों को अपग्रेड करने का अवसर सामने है, लेकिन युद्ध के कारण यह अपग्रेडेशन संभव नहीं है, क्योंकि एंटोनोव विमान कंपनी यूक्रेन में स्थित है। रूस और यूक्रेन की लड़ाई में भारत की दुविधा यहां भी स्पष्ट है। भारत रूस से तीन अरब डॉलर के एक समझौते के तहत 10 साल के लिए एक परमाणु हथियारों से लेस पंडुब्बी ही किराये पर लेना चाहता है। 2019 में यह समझौता हो चुका था। 2019 में ही भारत और रूस के बीच हुए समझौते के अनुसार भारत में एक कारखाना शुरू हुआ है, जिसका लक्ष्य साढ़े सात लाख एके-203 राइफलों का निर्माण करना है। एक अरब डॉलर की यह परियोजना भी कार्यरत हैं।
भारत के साथ परेशानी यह है कि उसकी वायुसेना में पुराने पड़ चुके मिग-21 विमान धीरे-धीरे अनुपयोगी साबित होते जा रहे हैं। भारतीय वायुसेना के लिए उनका अपग्रेडेशन जरूरी है। हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड वर्तमान में 18 सुखोई विमानों के निर्माण के लिए प्रयत्नरथ है, इस बारे में भी समझौता हो चुका हैं। इसके अलावा भारत 200 लड़ाकू हेलीकॉप्टर बनाने के लिए भी रूस के संपर्क में है। 2 अरब डॉलर की यह परियोजना भारतीय वायु सेना के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
रूस और यूक्रेन की लड़ाई की खबरें पूरी दुनिया को चेता रही हैं। भारत के बहुत से हित इस लड़ाई के पक्ष में नहीं है, क्योंकि भारत रूस और यूक्रेन दोनों की मदद रक्षा उत्पादनों में लेता है। अभी तक रूस ने अपने सबसे खतरनाक हथियारों का उपयोग यूक्रेन के खिलाफ नहीं किया है, लेकिन अगर उन हथियारों का उपयोग होता है, तो दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध होने से रोका नहीं जा सकेगा। साफ है कि रूस और यूक्रेन की लड़ाई कोई आतिशबाजी नहीं है।
इस लड़ाई से दोनों देशों का भविष्य तो अंधकारमय है ही। दुनिया के अनेक देशों के सामने भी परेशानियां पैदा करने वाला है। जब तक चीन रूस के बहुत करीब है, तब तक भारत भी रूस से दूरी बनाकर नहीं रख सकता, क्योंकि चीन और रूस का मिलना भारत की सुरक्षा के लिए अच्छा नहीं होगा। यूक्रेन में भारत के आर्थिक और रणनीतिक हित है, लेकिन उससे ज्यादा बड़े हित रूस के साथ जुड़े है। जाहिर है भारतीय कूटनीति इतनी कच्ची नहीं है कि किसी एक का पक्ष लेकर अपने हितों की बली चढ़ाए। कूटनीति में कोई नैतिकता और आदर्श काम नहीं आती, केवल अपना और अपना हित ही काम आता है।