यूक्रेन-हमला या द्रौपदी का चीर

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हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारतीय जज दलवीर भंडारी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने यूक्रेन के मामले में उन 13 जजों का साथ दिया है, जिन्होंने रूस से मांग की है कि वह यूक्रेन पर चल रहे युद्ध को तुरंत रोके। भारत सरकार ने स्पष्ट शब्दों में ऐसी मांग नहीं की है लेकिन वह भी यही चाहती है। भंडारी के वोट को रूस-विरोधी इसलिए कहा जा सकता है कि वह उन राष्ट्रों के जजों के साथ मिलकर दिया गया है, जो रूस-विरोधी हैं। लेकिन सारी दुनिया में रूस और पूतिन की निंदा हो रही है। पूतिन का कुछ पता नहीं, वे इस हमले को कब रोकेंगे? यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत के कई दौर चले हैं लेकिन अभी तक वे किसी अंजाम पर नहीं पहुंचे हैं। यह हमला द्रौपदी का चीर बन गया है। मुझे ऐसा लगता है कि रूस इस मुख्य मुद्दे पर तो संतुष्ट हो गया है कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा लेकिन जिस मुद्दे पर बात अभी तक लटकी हुई है, वह यह है कि रूस ने दोनात्स्क और लुहांस्क नामक जो दो नए स्वतंत्र राष्ट्रों की घोषणा कर दी है उस पर यूक्रेन राजी नहीं हो रहा है। यूक्रेन को पता है, इन दोनों क्षेत्रों में रूसी मूल के लोग बहुसंख्यक हैं और वे यूक्रेनी सत्ता से स्वायत्त होकर पहले से ही रह रहे हैं। यदि वे यूक्रेन के साथ जुड़े रहे तो वे सिरदर्द ही सिद्ध होंगे। या तो उन्हें वह रूस को सौंपकर चिंतामुक्त हो जाए या फिर कोई ऐसा व्यवस्था बनवा ले कि पूरे दोनबास क्षेत्र से यूक्रेन और रूस के एक समान संबंध बन जाएं। यह युद्ध तुरंत बंद होना चाहिए वरना यूक्रेन का भयंकर नुकसान तो होगा ही, विश्व राजनीति भी हिचकोले खाए बिना नहीं रहेगी। देखिए, यूक्रेन ने अमेरिका और चीन तथा भारत और चीन को एक ही जाजम पर ला खड़ा किया है। अब बाइडन और शी चिन फिंग में सीधा संवाद चलेगा और चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी भारत आ रहे हैं। भारत और चीन दोनों ने यूक्रेन के सवाल पर जैसी तटस्थता और एकरुपता दिखाई है, वह अविश्वसनीय है। अब भारत ने रूसी तेल के लाखों बैरल भी खरीदने शुरु कर दिए हैं। यह पहल रूस को तो पश्चिमी दबाव सहने की ताकत प्रदान करेगी ही, साथ ही भारत को सस्ता तेल भी मिलेगा। यूरोपीय देशों की पूरी कोशिश है कि यह युद्ध बंद हो जाए, क्योंकि देर-सबेर उनकी रूसी तेल की सप्लाय रूक सकती है। भारत की आलोचना करनेवाले अमेरिकी सीनेटरों से मैं पूछता हूं कि आपको भारत का रूस से तेल लेना इतना आपत्तिजनक क्यों लग रहा है, जबकि यूरोपीय राष्ट्रों को उसके तेल की सप्लाय में ज़रा भी रूकावट नहीं आई है? यूरोपीय राष्ट्रों और अमेरिका के सांसदों को झेलेंस्की बराबर संबोधित कर रहे हैं। इन संबोधनों में वे ऐसी बातें भी कह देते हैं, जो पूतिन को चिढ़ाए बिना नहीं रह सकतीं। यदि यह मामला हल हो रहा हो तो भी ऐसी बातें उसमें बाधा बन जाती हैं। इसमें शक नहीं कि यूक्रेन की फौज और जनता ने रूस का मुकाबला काफी डटकर किया है लेकिन इस नाजुक मौके पर झेलेंस्की को भी दूरदर्शितापूर्वक व्यवहार करना चाहिए। उन्हें अमेरिका और नाटो पर जरुरत से ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन अब पूतिन को ‘युद्ध-अपराधी’ कहने लगे हैं। यह ऐसा ही है, जैसे 100 चूहे मारकर कोई बिल्ली हज करने चली हो।