सपने सच होते हैं, भाजपा ने यह साबित किया है…

586
Pachmarhi
Election
अगर सच्ची निष्ठा हो और मंजिल तक पहुंचने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा की जाए, तो सपने भी सच हो जाते हैं। यह साबित किया है भारतीय जनता पार्टी ने। यदि 1980 में बने इस राजनैतिक दल के बारे में कोई उस समय भविष्यवाणी करने के लिए कहता, तो शायद ही कोई कहने की हिम्मत जुटा पाता कि जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक कवि ह्रदय, प्रखर वक्ता, पत्रकार और इरादों पर अटल ग्वालियर केे वाजपेयी 16 साल बाद ही देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करेंगे।
एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन-तीन बार प्रधानमंत्री बनकर गठबंधन सरकार की सफलता पर लगते रहे सवालिया निशान को धूमिल करेंगे। तब शायद ही कोई भविष्यवाणी कर पाता कि एक चाय वाला खुद को ब्रांड बनाकर और हिंदुत्ववाद का पर्याय बनकर न केवल एक राज्य का चार बार मुख्यमंत्री बनेगा, बल्कि कमल दल के गठन के 34 साल बाद अपने नेतृत्व में पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाकर एक बार नहीं, दूसरी बार फिर सीटों में इजाफा कर पहली बार लगातार दो बार गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनने का इतिहास रचेगा। जिसका नेतृत्व पूरी दुनिया को कायल कर देगा।
विश्व की महाशक्तियां भी जिसकी तरफ आंख उठाकर नहीं, बल्कि पूरे सम्मान के साथ बराबरी का बर्ताव करेंगीं और हर विश्वव्यापी समस्या के समाधान में जिसकी अहम भूमिका दुनिया स्वीकारेगी। भारत देश जिसके नेतृत्व में विश्व में अपनी धाक जमाएगा। यह दोनों ही वाकये 1980 में सपने ही थे और देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस के सतत राजनैतिक वर्चस्व के सामने किसी में इतना नैतिक साहस नहीं था कि यह कह सकता कि उसका स्थान इतना गौण हो जाएगा कि विपक्ष का दर्जा ही खत्म होने की नौबत आ जाएगी। भाजपा को यह सब किस्मत से नहीं मिला, बल्कि चरैवेति चरैवेति के मंत्र ने इसे साकार किया है।
विपरीत परिस्थितियों में भी आशा का दिया जलाए रखने के साहस ने कमल दल के सपनों को आकार दिया है। परिश्रम की पराकाष्ठा से अटल, आडवाणी से लेकर मोदी, शिवराज और विष्णुदत्त शर्मा तक पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं की सच्ची निष्ठा से ही भाजपा ने साबित किया है कि खुली आंख से देखे गए सपने सच जरूर होते हैं। जितना भी समय लगता है, वह परिश्रम करने वाले उन तपस्वियों की पूरी जिंदगी खपने के बराबर ही होता है। पर इसका फल बहुत ही सुखद और आश्चर्य से भरने वाला ही होता है।
नेक नीयत से किया गया बीसवीं सदी के बीस साल और उससे पहले जनसंघ के रूप में तीस साल का धैर्य के साथ किया गया परिश्रम इक्कीसवीं सदी में चारों तरफ अपनी खुशबू बिखेर रहा है। जम्मू-कश्मीर अब विशेष दर्जा नहीं, बल्कि देश के सभी राज्यों की बराबरी पर आ गया है। हिमाचल, गुजरात, हरियाणा, गोवा, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, असम, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों में केसरिया लहलहा रहा है, तो बिहार जैसा बड़ा राज्य भी केसरिया रंग में रंगा है। यह उपलब्धियां पूर्ण समर्पण के साथ तन, मन, धन से लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाने का प्रतिफल ही हैं।
भारतीय जनसंघ से शुरू सफर में भाजपा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के योगदान को अलग नहीं किया जा सकता। पर सपना भी दोनों ने मिलकर दो आंखें बनकर देखा और साकार करने के लिए परिश्रम भी एक और एक मिलकर दो की तरह नहीं बल्कि ग्यारह बनकर ही किया। यही वजह है कि हेडगेवार से भागवत तक संघ की साख भी बनी हुई है और पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर मोदी-नड्डा तक और शिवराज-विष्णुदत्त शर्मा सहित देश और ज्यादातर राज्यों में भाजपा का कमल खिला हुआ है। संघ और भाजपा ने मिलकर जो पौधा रोपा था, वह आज वट वृक्ष बनकर वृहद रूप ले चुका है। पर सत्ता के शिखर पर पहुंच चुकी भाजपा को उस आत्मचिंतन से कभी परहेज नहीं करना चाहिए, जिससे सपनों की वैचारिक पृष्ठभूमि की जड़ों के जमीन छोड़ने का खतरा पैदा न हो सके। ताकि कमल खिला रहे और पार्टी कार्यालयों की भव्यता रोशनी में सराबोर बनी रहे।