Drowned With Overconfidence : कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों को उनका अतिआत्मविश्वास ले डूबा!

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Drowned With Overconfidence : कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों को उनका अतिआत्मविश्वास ले डूबा!

हेमंत पाल

Indore : विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद स्पष्ट हो गया कि इंदौर में कांग्रेस संगठन के स्तर पर बेहद कमजोर रहा। भाजपा की तरह उसकी जमीनी पकड़ नहीं थी। सबसे बड़ी खामी एकजुटता की रही। इसके विपरीत भाजपा ने सभी सीटों पर एकजुट होकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस हर सीट पर अलग-अलग दिखाई देती रही। सामंजस्य का यही अभाव पार्टी को ले डूबा। पिछले चुनाव में जीती हुई तीन सीटें भी पार्टी नहीं बचा पाई। ख़ास बात ये रही कि पार्टी की कमजोरी के साथ उम्मीदवारों में अतिआत्मविश्वास भी नजर आया। प्रचार के दौरान पार्टी उम्मीदवारों में जीत को लेकर पूरा भरोसा दिखा। लेकिन, उनका यही आत्मविश्वास खोखला निकला।

विधानसभा क्षेत्र इंदौर-1 प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट में से एक थी। यहां से कांग्रेस के विधायक संजय शुक्ला के सामने भाजपा के भारी भरकम नेता कैलाश विजयवर्गीय ने चुनाव लड़ा। निश्चित रूप से मुकाबला कड़ा था। लेकिन, यही एक सीट थी जहां संजय शुक्ला ने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं आने दी। कांग्रेस उम्मीदवार ने जरा भी कमजोरी नहीं दिखाई। उन्होंने घर-घर दस्तक दी और प्रतिद्वंदी को कड़ी चुनौती दी। उनके क्षेत्र में भाजपा के कई बड़े नेताओं की सभाए हुईं, जबकि कांग्रेस की तरफ से सिर्फ प्रियंका गांधी का रोड शो हुआ। लेकिन, उन्हें जितने मुस्लिम वोट मिलने का भरोसा था, वो उन्हें नहीं मिले। इसलिए कहा जा सकता है कि यहां पार्टी ने संजय शुक्ला को अकेले चुनाव लड़ने पर मजबूर कर दिया था।

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जबकि, इंदौर-2 से कांग्रेस के उम्मीदवार चिंटू चौकसे का प्रचार और इलेक्शन मैनेजमेंट बेहद कमजोर रहा। वे ठीक से प्रचार तक नहीं कर सके। पार्टी का कमजोर संगठन, बूथ मैनेजमेंट की कमी और सामने भाजपा के दमदार उम्मीदवार रमेश मेंदोला के होने से उनकी जीत तो शुरू से ही संदिग्ध थी। इसके अलावा किसी बड़े नेताओं की सभा भी उनके क्षेत्र में नहीं हुई। इसी कमजोरी ने भाजपा उम्मीदवार को रिकॉर्ड वोटों से जीतने का मौका दिया। इंदौर-3 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार पिंटू जोशी को उनका जीत के प्रति अति आत्मविश्वास ले डूबा। उन्होंने इलाके को अपना पारिवारिक राजनीतिक क्षेत्र समझा और बूथ मैनेजमेंट पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। उन्हें ये भी लगा कि गोलू शुक्ला के लिए नया क्षेत्र है। पर, यही उनकी हार का बड़ा कारण भी बना। पिंटू जोशी को 6 वार्डों में अपेक्षा से भी कम वोट मिले।

शहर के पश्चिमी इलाके की अयोध्या कही जाने वाली इंदौर-4 सीट से मालिनी गौड़ लगातार विधायक हैं। इंदौर की क्षेत्र क्रमांक-2 के बाद यही एक सीट है जहां भाजपा के अलावा किसी और पार्टी के उम्मीदवार को तवज्जो नहीं मिलती। इस बार पार्टी ने अनजान से चेहरे राजा मांधवानी को टिकट दिया, जो बिल्कुल नया नाम था। उनके सामने पहचान का संकट होने के साथ ही चुनाव लड़ने का भी अनुभव नहीं था। संगठन की कमजोरी भी उनकी हार का कारण बनी। उनके वोटों का समीकरण सिर्फ सिंधी समाज तक सीमित रहा, जो गलत आकलन साबित हुआ।

शहर के पूर्वी इलाके की इंदौर-5 सीट से कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल लगातार दूसरी बार भाजपा के महेंद्र हार्डिया से हारे। वे सामाजिक और धार्मिक रूप से सक्रिय जरूर रहे, पर जनता से उनका सीधा संपर्क नहीं रहा और यही उनकी हार का बड़ा कारण बना। वे अपने धार्मिक आयोजनों में आने वाली भीड़ को वोटों में नहीं बदल सके। उनका प्रचार तो कमजोर रहा ही, उन्होंने अपनी जीत को आसान समझ लिया था। महेंद्र हार्डिया को लेकर पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने नाराजगी दिखाई, तो सत्यनारायण पटेल को लगा कि वे आसानी से चुनाव जीत जाएंगे। वे उन 30% मुस्लिम वोटों को नहीं साध पाए जो कांग्रेस की ताकत मानी जाती है।

राऊ सीट पर कांग्रेस के जीतू पटवारी की हार में उनका अति आत्मविश्वास सबसे ज्यादा भारी पड़ा। वे कांग्रेस के बड़बोले नेताओं में माने जाते हैं। महापौर चुनाव में जिस तरह उनके इलाके में भाजपा को उम्मीद से ज्यादा वोट मिले थे, उसी से लग गया था कि उनकी विधानसभा चुनाव की राह आसान नहीं है। पिछले चुनाव में उन्होंने जिस मधु वर्मा को हराया था, इस बार उसी मधु वर्मा ने जीतू को बड़े अंतर से मात दे दी। वे अपने ही वार्ड बिजलपुर में तक हार गए। इसी से लगता है कि वे लोगों की नाराजगी को नहीं भांप सके।

ग्रामीण सीटों पर सेबोटेज हुआ
ग्रामीण सीटों को देखा जाए तो महू सीट पर कांग्रेस के अंतर सिंह दरबार ने कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए और कांग्रेस उम्मीदवार रामकिशोर शुक्ला को तीसरे नंबर पर पटक दिया। प्रचार के दौरान ही पार्टी की यह कमजोरी सामने आ गई थी। भाजपा से तीन-चार महीने पहले कांग्रेस में आए रामकिशोर शुक्ला का प्रभाव कुछ गांवों तक ही सीमित था। अंतर सिंह दरबार की बगावत ने सबसे बड़ा नुकसान यह किया कि जिस उषा ठाकुर की हार को लगभग तय माना जा रहा था वो फिर जीत गई। जबकि, भाजपा में स्थानीय उम्मीदवार के दबाव को लेकर काफी गहमागहमी थी। लेकिन, फिर भी पार्टी ने हालात भांपकर फिर उषा ठाकुर को मौका दिया, जो सही साबित हुआ।

देपालपुर सीट पर पार्टी को अंदरूनी कलह से बड़ा नुकसान हुआ। भाजपा के बागी उम्मीदवार ने त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर विशाल पटेल को इतना नुकसान पहुंचाया कि वे अपनी सीट नहीं बचा पाए। उन्हें पार्टी का परंपरागत वोट बैंक भी नहीं मिला। सांवेर सीट पर प्रेमचंद गुड्डू की बेटी रीना सेतिया भी अतिआत्मविश्वास की शिकार हुई। पहले यही विवाद चला कि पार्टी प्रेमचंद गुड्डू को टिकट दे या उनकी बेटी को। जब रीना को टिकट देने की घोषणा हो गई, तो उन्होंने सक्रियता दिखाई लेकिन उस तरह वोट नहीं पा सकी। उनमें पहले चुनाव की अनुभवहीनता भी साफ़ नजर आई।