VIP कल्चर के कारण आम श्रद्धालुओं से दूर होते जा रहे हैं बाबा महाकाल

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VIP कल्चर के कारण आम श्रद्धालुओं से दूर होते जा रहे हैं बाबा महाकाल

उज्जैन से मुकेश व्यास की खास रिपोर्ट

उज्जैन। उज्जैन में जब से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक का लोकार्पण किया तब से महाकाल दर्शन के लिए देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में बाबा महाकाल के दर्शन करना, भस्म आरती में भाग लेना एवं गर्भ गृह में जलाभिषेक करना अब किसी जंग जीतने से कम नहीं है।

इसके साथ ही श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। साथ ही सशुल्क दर्शन के नाम पर लगातार वृद्धि की जा रही है। आम श्रद्धालुओं की पहुंच से बाबा महाकाल दूर होते जा रहे हैं। आम श्रद्धालुओं के लिए भस्म आरती की अनुमति लेना असंभव सा होता जा रहा है।

अब उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर की सशुल्क एवं VIP दर्शन व्यवस्था पर लगातार प्रश्नचिन्ह भी लगते जा रहे हैं।

मंदिर में शुल्क दर्शन व्यवस्था को लेकर अब अलग-अलग मोर्चों पर भी विरोध शुरू हो गया है। जहां पिछले दिनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत श्री हरिगिरि जी महाराज ने शुल्क दर्शन व्यवस्था पर कड़ा एतराज जताते हुए इसे पूंजीवादी व्यवस्था बताया था, वही संत अवधेश पुरी महाराज ने महाकाल मंदिर की दर्शन व्यवस्था पर कड़ा एतराज जताते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि एक भी मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे में न तो कोई वीआईपी कल्चर है और ना ही दर्शन के नाम पर शुल्क लिया जाता है। इसके बावजूद महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के नाम पर श्रद्धालुओं से प्रतिदिन लाखों रुपए वसूल किया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्टो के अनुसार उन्होंने तो यहां तक कहा कि यह घोर विडंबना है कि हिंदूवादी सरकार के कार्यकाल में महाकाल के दरबार में नागरिकों के संवैधानिक मूल अधिकारों का हनन किया जा रहा है। दर्शन शुल्क और VIP कल्चर द्वारा गरीब और अमीर के बीच भेदभाव किया जा रहा है।

पूर्व में उज्जैन के भाजपा सांसद अनिल फिरोजिया ने भी महाकाल के दर्शन व्यवस्था पर नाराजगी व्यक्त की थी , वही कांग्रेस भी लगातार महाकाल की दर्शन व्यवस्था पर सवाल खड़े करती रही है। प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने महाकाल की शुल्क दर्शन व्यवस्था को लेकर राज्य और केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि पिछले चुनाव में उन्होंने राम को बेचा था और अब भगवान शंकर को बेचने निकले हैं। भाजपा सरकार को महाकाल मंदिर में श्रद्धालुओं की दर्शन व्यवस्था को सुलभ बनाने से कोई लेना देना नहीं है वह तो दर्शन के नाम पर भी रुपया कमाना चाहती है।

वहीं महाकाल मंदिर समिति आम श्रद्धालुओं के शीघ्र दर्शन करवाने का दावा कर रही है। बावजूद इसके अधिकतर श्रद्धालु दर्शन व्यवस्था से खुश नहीं दिखे। मुंबई से दर्शन के लिए सपत्नीक आये ऋषि ने कहा कि पिछले सिंहस्थ में जब वे दर्शन के लिए आए थे तो ज्यादा आसानी से उन्हें दर्शन हुए थे जबकि इस बार मंदिर में VIP व्यवस्था हावी है बाबा के दर्शन अब पहले जैसे आसान नहीं रहे हैं। लेकिन अपने वृद्ध माता-पिता के साथ आए सुनील ने समिति द्वारा दिव्यांगों एवं वृद्ध जनों के लिए की गई व्यवस्था की प्रशंसा भी की।

श्रद्धालुओं के साथ आए दिन ठगी के मामले सामने आ रहे हैं। कल भी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आए निखिल कश्यप का परिवार जलाभिषेक के नाम पर ठगी का शिकार हो गया। श्रद्धालुओं को ठगने वाले अब लगातार सक्रिय हैं। कभी भस्म आरती के नाम पर तो कभी दर्शन के नाम पर यहां तक की नकली बारकोड दे कर आए दिन श्रद्धालुओं से ठगी की जा रही है।

मंदिर समिति के अध्यक्ष एवं जिला कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने भी इस मामले में अब सख्त रुख अख्तियार किया है।
एक ओर जहां विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर के प्रांगण में महाकाल लोक के रूप में विभिन्न प्रकार की मूर्तियों की स्थापना के साथ ही महाकाल के ऐतिहासिक एवं पौराणिक गाथाओं को उल्लेखित और प्रतिबिंबित करती हुई मूर्तियों की यहां स्थापना की गई है, वह निश्चित रूप से मध्यप्रदेश को पूरे विश्व और भारतीय धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सार्थक हो रही है ऐसा लगता है। किंतु इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि विभिन्न प्रकार के लोगों से जब कई मीडिया पर्सन अथवा कोई जनप्रतिनिधि मिलते हैं तो उनके सामने बातें जरूर आती है कि जिस तरह की व्यावसायिकता महाकाल लोक के बाद महाकालेश्वर के दर्शन के प्रति बढ़ती जा रही है उससे लगता है कि कहीं न कहीं जो धर्म के प्रति आस्था वाला भाजपा व संघ का जो सोच रहा है और उस सोच के प्रति समर्पित लोगों ने काम किए हैं, ऐसे कई लोग भी यह मानने लगे हैं कि महाकाल मंदिर दर्शन के प्रति बढ़ते जा रहे व्यवसायिक दृष्टिकोण की वजह से निश्चित ही धर्म अनुकूल योजनाओं को आगे बढ़ाने का जो उद्देश्य शासन का रहा है उससे कहीं न कहीं इस तरह की व्यवसायिक दर्शन व्यवस्था भटकती हुई या भ्रमित होती हुई नजर आ रही है और इस दिशा में पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता श्रद्धालुओं द्वारा स्थानीय प्रशासन एवं शासन से महसूस की जा रही है।