

Earth Day 2025: इस कथा में हिरण्याक्ष आज भी ज़िंदा है!
भागवत कथा चल रही थी, व्यास-गद्दी पर विराजे स्वामी जी ने हिरण्याक्ष व हिरन्यकश्यप की कथा सुनानी शुरू की, उन्होंने दोनों भाइयों के अदम्य साहस, पराक्रम, आदि का विस्तार से वर्णन किया| कथा को आगे बढाते हुए उन्होंने बताया की अमरता का वरदान पाने के लिए हिरन्यकश्यप अपने छोटे भाई हिरण्याक्ष को राज- काज सौंप के स्वयं तपस्या में लीन हो गया|
इधर हिरण्याक्ष के अदम्य साहस के चलते कोई भी उससे युद्ध नहीं करता था, बल्कि पहले ही हार मान लेता था, जिसके कारण चारों तरफ उसके राज्य का विस्तार हो गया| हिरण्याक्ष की आतंरिक ऊर्जा उसे एक पल भी शांत नहीं बैठने देती थी, पर वो युद्ध करे, तो करे किससे| अपनी इसी आतंरिक ऊर्जा के समाधान के लिए वो समुद्र में खडा होकर उसकी लहरों पर अपने गदा से प्रहार करने लगा| समुद्र के पास भी कोई उपाय न था इससे बचने का| अपनी भयंकर तेज आवाज से वो वरुण देवता को युद्ध के लिए आमंत्रित करने लगा, परन्तु वरुण देवता हाथ जोड़ के उसके सामने खड़े हो गए और बोले की आपसे युद्ध करने का साहस मुझमें नहीं है|
हिरण्याक्ष ने कहा की “या तो तू मुझसे युद्ध कर या फिर मुझे बता की मैं किसके साथ युद्ध करूँ|” वरुण देवता ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए बड़े ही विनम्र भाव से कहा की “आपसे अगर कोई युद्ध कर सकता है तो वो है नारायण|”
“बता की कहाँ रहता है नारायण”, हिरण्याक्ष ने खुशी से पूछा|
वरुण देवता ने कहा की, “वो तो मुझे नहीं पता, परन्तु मुझे ये जरूर पता है की जब- जब धरती को असीम दुःख का सामना करना पडता है तो नारायण अवश्य ही उसकी रक्षा के लिए धरती पर अवतीर्ण होते है|” इतना सुनना था और हिरण्याक्ष ने एक बड़ी सी गेंद की तरह धरती को उठाया और सीधे रसातल में ले जाकर अपने सर के नीचे तकिये की तरह लगा के आराम से लेट गया|
अचानक कथावाचक शांत हो गए, सभी श्रौता भी शांत थे| स्वामी जी ने अचानक अपनी कथा को थोड़ा विराम देते हुए कहा की, थोड़ा रुक के बताउंगा की कैसे भगवान का वराह अवतार प्रगट हुआ ओर उसने धरती को बचाया, पर क्या आपको पता है की आज भी हिरण्याक्ष ज़िंदा है? सभागार में हलकी सी खुसफुसाहट हुई, और फिर सभी शांत|
स्वामी जी ने अपनी बात पर जोर देते हुए फिर से वही सवाल दुहराया, की क्या आपको पता है की आज भी हिरण्याक्ष ज़िंदा है? और फिर ज़रा ज्यादा जोर की आवाज में श्रौताओं की ओर उंगली घुमाते हुए बोले की आप सब के अंदर भी एक हिरण्याक्ष है|
खुसफुसाहट थोड़ा जोर पकडते हुए एक दो आवाजो के रूप में बदली और स्वामी जी की ओर प्रशन के रूप में फेंकी गई की, हममें…? वो कैसे?,
स्वामी जी गंभीर आवाज में बोले, अच्छा ये बताओ तुम में से कितने हो जिन्होंने पानी की रक्षा का भार अपने सर पर उठाया है? …..
.बड़े शर्म की बात है पर सच है की हममें से एक भी हाथ ऊपर नहीं उठा, बल्कि सरकार, समाज और सभी के सर पर गन्दगी आदि का दोषारोपण होने लगा| स्वामी जी ने अपनी बात को सत्यापित करते हुए कहा की “जब हम कुछ नहीं करते है तो दोषारोपण करते है, पर सच तो ये है की हमारी नदियाँ, तालाब, समुद्र सभी हमारे हिरण्याक्ष होने का प्रमाण है, आज हम क्यों नहीं अपनी माँ की तरह मानी जाने वाली इन नदियों की गोद में बैठ सकते? ….क्योंकि हमने इनके पानी को इतना विषैला बना डाला है की वो हमारे उपयोग के लायक ही नहीं रहा|”
सभी शांत थे, स्वामी जी ने आगे कहा “और धरती माँ के लिए क्या किया हमने? आज हम भी उसे सिर्फ अपनी जरूरत के हिसाब से देखते है, जहां किसानो के लिए वो दो वक्त की रोटी है वही बिल्डर्स के लिए प्लाट, बस हर किसी ने उससे पैसा कमाने का जरिया बना रखा है| क्या किसी ने कभी सोचा की अपनी धरती और नदियों को हम किस तरह प्रदूषित कर रहे है? हिरण्याक्ष की तरह वरुण देवता पर गन्दगी का गदा मत मारो, और न ही धरती माँ का अपमान करो| हाँ ये भी सच है की नारायण भी तुम्हीं में है, बस उसे पहचानो, उसे अवतरित होने दो, फिर देखो ये धरती आने वाले सालों में और भी कितनी खूबसूरत हो जायेगी|”
कथा में आगे क्या हुआ, पता नहीं,…….. हाँ अपने आप में जरूर हिरण्याक्ष को मारने की कोशिश मैने तो शुरू कर दी है, जानती हूँ की वो एक बहुत पराक्रमी दैत्य है उस पर विजय प्राप्त करना बहुत ही कठिन काम है, पर नारायण भी तो है मेरे पास| फिर किसी ने सच ही कहा है की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|
अपर्णा खरे,भोपाल
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