चंडीगढ़ से कर्मयोगी की विशेष रिपोर्ट
भूकंप जब भी आता है, उसका प्रभाव भयंकर होता है। लेकिन, इसके अंतराल में लंबा समय होने के कारण लोग जो एक भूकंप में सीखते हैं, दूसरे तक भूल जाते हैं। बेहतर तो यही है कि इसके लिए हर क्षण तैयार रहना चाहिए। यह कहना है आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर योगेंद्र सिंह का। वे तुर्की-सीरिया में आए भूकंप को सचेतक मानते हुए कहते हैं कि भूकंप ऐसा संकट है जो कभी-कभी आता है।
भूकंप के स्वरूप के अध्ययन का आकलन है कि एक भूकंप ढाई हजार साल में औसतन एक स्थान पर रिपीट होता है। वहीं चक्रवात व बाढ़ जैसी आपदाओं की पुनरावृत्ति जल्दी-जल्दी होती है। हालांकि, दुनिया भर में भूकंप को लेकर शोध और अनुसंधान चलता रहता है। यद्यपि तुर्की ने भूकंप के मामले में काफी प्रगति की है। भवन निर्माण के तमाम कोड विकसित किए हैं। प्रो योगेंद्र सिंह का मानना है कि जहां तक भारत की बात है तो हम हर चीज को नॉन सीरियसली लेते हैं। जब तक हमारे सिर पर न आ जाए चीजों को हम गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन, जब भूकंप आएगा तो इतना भयंकर प्रभाव होगा कि हम देख नहीं पाएंगे। यूं तो भूकंप की भविष्यवाणी करना दुनिया में संभव नहीं है लेकिन औसत पीरियड अनुमानित है। रेंडम फिनोमिना है। भविष्यवाणी करना व सीक्वेंस बनाना आसान नहीं है। हमें यह भी नहीं पता कि पिछले भूकंप का ढाई हजारवां साल कौन सा है। अत: हर क्षण इसके लिए तैयारी रखी जाए।
वे मानते हैं कि निश्चय ही कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से मकानों की गुणवत्ता नहीं बन पाती। लेकिन आम आदमी के मकान की छत के लिये कई शोध के बाद काफी समाधान मौजूद हैं। सामान्य व्यक्ति लोकल मटेरियल से घर बनाने या छत डालने के लिए संसाधन जुटा सकता है। कैसे घर को भूकंपरोधी बनाएं इसके लिए ‘आईएस 4326’ कोड विकसित किए गए हैं। जो बताता है कि अब चाहे चिनाई वाले मकान हो, ईंटों से दीवार बनाएं या स्लैब डालकर मकान बनाएं तो कौन सी सावधानी बरती जाए। कम लागत पर भी भूकंपरोधी घर बनाया जा सकता है। इससे भूकंप में मकान कुछ डैमेज तो होगा, लेकिन धराशायी नहीं होगा। जानमाल की क्षति कम होगी। अब पहाड़ों में भी जैसे मकान बन रहे हैं, उसके लिए आईएस कोड बने हुए हैं। आम आदमी के वे मकान जो लोग खुद बनाते हैं, जिनमें इंजीनियर की जरूरत नहीं होती, सामान्य ढंग से बनाये जा सकते हैं।
आज 21वीं सदी में भूकंप के क्षेत्र में व्यापक शोध से ऐसी तकनीक विकसित कर ली गई हैं, हम जैसा चाहें वैसा स्ट्रक्चर बना सकते हैं। दरअसल, भूकंप की वजह से मकानों पर ज्यादा फोर्स लगती है। आर्थिक रूप से ऐसे मकान बनाना आम लोगों के लिए संभव नहीं है। ज्यादा खर्चे से बचने के लिए हम ऐसा डिजाइन बनाते हैं जिससे कुछ नुकसान तो होगा, पर मानवीय क्षति नहीं होगी। हमें सार्वजनिक स्थलों मसलन अस्पताल को फुल प्रूफ बनाना है। क्योंकि, वहां भूकंप आपदा से घायलों का उपचार होना होता है। दरअसल, तकनीक व भूकंपरोधी ज्ञान तो है लेकिन लागू करना सरकार व सिस्टम की जवाबदेही है।
पूरी दुनिया के वैज्ञानिक मान रहे हैं कि तुर्की में भूकंप से ज्यादा तबाही हुई है। निस्संदेह, तुर्की भूकंप की फॉल्ट लाइन पर स्थित है। हकीकत अध्ययन के बाद सामने आएगी। लेकिन, वहां भूकंप उथला था, उसकी वजह से त्वरण ज्यादा पैदा हुआ था। जिस तीव्रता के भूकंप के लिए बिल्डिंग डिजाइन की गई थी और जो भूकंप की वास्तविक तीव्रता थी, उसका अंतर अध्ययन से पता चलेगा।
अनुभव के आधार यही कहा जा सकता है कि भूकंप में बचाव का एकमात्र उपाय यही है कि जहां भी रहें अब चाहे बिल्डिंग छोटी, बड़ी या मल्टी स्टोरी हो, उसे भूकंपरोधी बनाया जाए। हो सकता है भूकंप के आने पर आप सो रहे हों। निकलकर भाग सकेंगे कि नहीं। मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में बचना संभव नहीं। इसका समय तीस सेकंड से दो मिनट तक का हो सकता है। यह अतार्किक है कि यहां-वहां खड़े हो जाएं तो बचाव होगा। टर्की में एक स्लैब पर दूसरा स्लैब गिरा। भूकंपरोधी निर्माण ही एक उपाय है। अब चाहे सरकार या संगठन डिजाइन व निर्माण कर रहे हों या फिर व्यक्तिगत घर का निर्माण हो।
दरअसल, मकान जितना हल्का होगा भूकंप का बल उतना कम लगेगा। वो गिरेगा भी तो चोट कम लगेगी। इस बीच में कंक्रीट को लेकर भ्रम पैदा हो गया कि उससे घर मजबूत होगा। दरअसल, मकान अच्छे डिजाइन से सुरक्षित होता है। लोकल मटेरियल और परंपरागत ज्ञान से मजबूत भूकंप रोधी मकान बन सकते हैं। पहाड़ों में पुराने स्लेट की हल्की छत सुरक्षित होती थी। अब कुछ परिवर्तन करके भूकंप में नुकसान से बचा सकते हैं। निर्धारित कोड में इसके बारे में प्रावधान हैं। वहीं कंक्रीट की भारी छत व गलत डिजाइन से जान-माल का नुकसान ज्यादा होगा।
किसी भी व्यक्ति के लिए भूकंप के बाबत तीन चीजें अहम हैं। पहली, शोध के आधार पर स्थानीय निर्माण सामग्री का प्रयोग करके भूकंपरोधी मकान बनाए जाएं। दूसरी शिक्षा, इंजीनियर लोगों को फील्ड में बताएं कि मकान कैसे बनें। हम राज मिस्त्रियों के लिये कोर्स तैयार करते हैं। जूनियर इंजीनियरों के लिए कोर्स हैं। सामान्य जनता के लिए कोर्स हैं। डीएम व प्रशासन के अन्य अधिकारियों के लिए भी कोर्स हैं। वहीं सरकारों को अनिवार्य रूप से देखना होगा कि बिल्डर ने बहुमंजिली इमारत में भूकंपरोधी तकनीक का उपयोग किया है या नहीं। पहाड़ों की समस्या अलग है। वहां ढलान के चलते मकान खिसक जाता है। जमीन खिसकेगी तो मकान गिर जाएगा। आम आदमी के लिए जियोलॉजी की स्टडी संभव नहीं है। सरकार मास्टर प्लान बनाकर चिन्हित करे कि कौन से इलाके में भूमि अस्थिर है।
दरअसल, हमारे यहां निगरानी तंत्र की कमी है। एक सामाजिक समस्या है कि निगरानी में पारदर्शिता का अभाव है। मैन पावर की भी कमी है। पहाड़ी राज्यों में ढलान के कारण अतिरिक्त समस्या है। अब तक सारे कोड मैदानों के लिए बने हैं। कहा जाता है कि ढलान पर मकान न बनाएं। दरअसल, भूकंप की तरंग पहाड़ की चोटी पर फोकस हो जाती है। पहाड़ के शिखर पर बेस के मुकाबले 60 से 70 प्रतिशत तीव्रता बढ़ सकती है। भूस्खलन की समस्या है। स्लोप हिलता है तो सुरक्षित निर्माण भी हिल जाएगा। भूस्खलन बरसात के कारण भी होता है। अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ों की कटिंग समस्या बढ़ाती है।
उखीमठ में भूकंप आया तो लेंडस्लाइड बहुत बढ़ा। पहाड़ में मकान टिकाने के लिए अलग स्तर पर बनाए गए कालमों से मकान असंतुलित हो जाते हैं । भूकंप के दौरान कालम हिलते हैं तो मकानों में मैदान के मुकाबले क्षति ज्यादा होती है। दरअसल, सभी तरीके से भूकंपरोधी मकान बनाए जा सकते हैं। जरूरी तकनीक के साथ लोकल मटेरियल का प्रयोग किया जाए। अब चाहे मकान पत्थरों के हों या ईंट के। आरसीसी के मकान बने तो उसमें कहीं ज्यादा सावधानी जरूरी है। लोग समझते हैं कि कंक्रीट का बना दिया तो ईंटों से ज्यादा सुरक्षित है। लेकिन वह सामान्य तौर पर बने मकान से भी खतरनाक होगा।