
शावकों को ढूंढ उनकी मां से मिलाने की कोशिश जारी, 75 से अधिक वन कर्मी फौजियों की तरह कैंप कर,कर रहे खोज
बड़वानी : मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के राजपुर क्षेत्र में आतंक का पर्याय बन चुकी मादा तेंदुआ को पकड़ लिए जाने के बाद अब उसके दोनों शावकों को पकड़ कर उसके पास लाने की कोशिश की जा रही है. इसके तहत क्षेत्र में 75 से अधिक स्टाफ दिन रात वहीं फौजियों की तरह कैम्प कर उनकी खोज कर रहा है.
यह भी पाया गया है कि विलेन का टैग प्राप्त कर चुकी मादा तेंदुआ के दो केनाइंस दांत टूटे होने के चलते वह मानवों और जानवरों में विभेद ना करते हुए जो सामने मिल रहा था उसका शिकार कर ले रही थी। वन अधिकारियों का मानना है कि वह विलेन नहीं, दरअसल मजबूर थी।
अधिकारियों ने बताया कि राजपुर अनु विभाग के लिम्बई क्षेत्र से 23 सितंबर की रात्रि 4 वर्षीय मादा तेंदुआ को गिरफ्त में लेकर वन विहार भोपाल भेजा गया है. उन्होंने बताया कि मादा तेंदुआ के जाने के बाद उनके करीब 5 महीने आयु के दोनों शावकों को भोजन की दिक्कत हो रही है । मादा तेंदुआ के उनके बगैर आक्रामक होने की आशंका के चलते शावकों को उससे मिलाने के लिए पकड़ने की युद्ध स्तर पर कोशिश हो रही है।
ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे बड़वानी के डीएफओ आशीष बनसोड़ ने बताया कि इसके लिए पिंजरे, ट्रैप कैमरे ,सीसीटीवी कैमरे ,ड्रोन और थर्मल ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बिल्ली से थोड़े बड़े आकार के तेंदुए के शावक कई बार वन विभाग के अमले के पैरों के नीचे से निकल जाते हैं, तो कई बार घने खेतों में घूमते रहते हैं। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि वे दिनों दिन कमजोर होते जा रहे हैं। इसके अलावा छोटे होने के चलते उन पर दूसरे वन्य जीव भी हमला कर सकते हैं। कल रात भी चिन्हित हुए शावकों ने कम से कम 4 घंटे स्टाफ को छकाया। फ्लैश गन और टार्चों की बैटरी खत्म हो जाने के चलते ऑपरेशन को रोका गया है, जो आज फिर शुरू किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि इस बीच वरिष्ठ पशु चिकित्सकों ने तेंदुए की जांच कर बताया है कि किसी वजह से उसके एक तरफ के केनाइंस पूर्व से टूटे हुए हैं। इसके चलते उसे पूर्ण क्षमता से शिकार करने में दिक्कत जा रही थी । इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि उसने बच्चों पर क्यों हमला किया।

उन्होंने कहा कि इससे उसके विलेन होने का ‘टैग’ हट रहा है कि वह मानवों के ऊपर जान बूझ कर हमला नहीं कर रही थी। उन्होंने उसके मानवों के प्रति हिंसक होने की वजह बताई कि मादा तेंदुआ को खुद का भी पेट भरना था और बढ़ते बच्चों की आवश्यकता पूरी करने के लिये उन्हें भी भोजन उपलब्ध कराना था। इसलिए वह अपना नेचुरल हैबिटेट छोड़कर ग्रामीण इलाकों के पास आ कर जानवर और मानव में अंतर नही कर रही थी। और, जो उसे आसानी से उपलब्ध हो जा रहा था उसका शिकार कर रही थी। उन्होंने बताया कि वह शारीरिक रूप तो फिट थी लेकिन केनाइंस टूटे होने के चलते इजी टारगेट को ही अपना शिकार बना रही थी। शावक छोटे होने की वजह से बार-बार शिकार भी करना उसकी मजबूरी थी।
मादा तेंदुए को पकड़ने के लिए प्रदेश के विभिन्न स्थानों से टीम बुलाई गई थी। वह बार-बार पिंजरे के पास आ तो जा रही थी लेकिन स्मार्ट होने के चलते अंदर नहीं जा रही थी। दुर्गम रास्ते, तेज आवाज और फसलें होने के चलते उसे जेसीबी पर बैठकर ट्रेंकुलाइज करने के भी प्रयास सफल नहीं हो पा रहे थे।
इसलिये सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से तीन हाथी भी बुलाए गए थे। हाथियों में देखने, सूंघने, वाइल्डलाइफ को घेरने और कठिन रास्तों में चलने की महारथ है।
हालांकि उनके आने के पहले ही मादा तेंदुआ को हिकमत अमली से पकड़ लिया गया।
बहरहाल , अब शावकों को उसकी तेंदुआ माँ से मिलाने की कोशिश में 75 से अधिक अधिकारियों कर्मचारियों का अमला लगा हुआ है। हालांकि मानवों के दो बच्चे अपनी मांओं से हमेशा के लिए अलग हो चुके हैं।




