अद्वैत दर्शन से सरावोर करेगा एकात्म धाम…

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अद्वैत दर्शन से सरावोर करेगा एकात्म धाम…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

आद्य शंकराचार्य के प्रकटोत्सव पर ओंकारेश्वर और एकात्म धाम का दिव्य और आध्यात्मिक समागम का साक्षी बनना मध्यप्रदेश में ‘विरासत के साथ विकास’ की एक महत्वपूर्ण झलक है।ओंकार पर्वत पर स्थापित आदि गुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा व आदि गुरु शंकराचार्य की दीक्षा स्थली को प्रदेश सरकार एकात्म धाम के रूप में विकसित कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ओंकारेश्वर स्थित एकात्म धाम के चरणबद्ध तरीके से पूर्ण करने की बात कही। तो आद्य गुरु शंकराचार्य द्वारा उनके जीवन काल में अनेक महान कार्यों के किए जाने का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आदि गुरु शंकराचार्य की चेतना शास्त्र परंपरा से हमारा परिचय कराती है। भारत को शक्ति संपन्न बनने के लिए ज्ञान, आध्यात्म, शास्त्र एवं शस्त्र सभी विधाओं की आवश्यकता है। हमारे संतों एवं संन्यासियों ने धर्म की स्थापना के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। शस्त्र के साथ शास्त्र की परंपरा का अद्भुत तालमेल किया है। अध्यक्षीय प्रबोधन देते हुए स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदान्त द्वारा आत्मा और ब्रह्म की एकता का उद्घोष करते हुए उपनिषद, गीता और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य रचे तथा चार मठों की स्थापना से भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधा। उनका दर्शन व्यक्ति की मुक्ति और समाज की एकता का मार्ग प्रशस्त करता है। अद्वैत दर्शन ईश्वरीय दर्शन है, पूरे विश्व को शान्ति-समाधान और एकात्मकता प्रदान करने की सामर्थ्य अद्वैत दर्शन में है, जो सारे भेद, विभिन्नता का भंजन कर एकत्व प्रदान करता है। प्रो. वी. कुटुंब शास्त्री ने कहा, “मध्यप्रदेश शासन द्वारा अद्वैत वेदांत को जनमानस तक पहुँचाने का यह प्रयास अद्वितीय है। वर्ष 2017 में आरंभ हुई एकात्म यात्रा आज सशक्त आंदोलन बन चुकी है।” स्वामी प्रणव चैतन्य पुरी ने कहा, “आचार्य शंकर केवल ज्ञानी ही नहीं, परम भक्त भी थे। उन्होंने जगन्नाथ अष्टकम्, नर्मदा स्तोत्र, गंगा स्तोत्र जैसे स्तोत्रों की रचना कर भक्ति व उपासना को जीवंत रखा। एकात्मधाम प्रकल्प उनके चार मठों के तुल्य है।”

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अब यहां सामयिक चर्चा करें तो आद्य शंकराचार्य ने भारत की आध्यात्मिक विरासत को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा किया। जब भारत खुद को और अपनी शक्ति को विस्मृत कर रहा था, तब आद्य शंकराचार्य ने सनातनी भाव में नए प्राण भरे। इसीलिए आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण, अयोध्या ने कहा, “यह संसार हमसे अलग नहीं, हमारा ही विस्तार है। आचार्य शंकर का अवदान किसी मत तक सीमित नहीं। उन्होंने बिना भेद किए समस्त जनों का मार्गदर्शन किया, उनका आचार्यत्व मातृत्व के तुल्य है।” जूनापीठाधीश्वर आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज ने कहा कि पाखंडी और अज्ञानियों ने वेदों की प्रमाणिकता पर सवाल उठाए। जब देश वेद विमुख हो रहा था तो गुरू शंकराचार्य के रूप में भगवान स्वयं धरती पर आए। उनका आगमन न होता तो हम आज हिंदू, सनातनी और आर्य न होते। उन्होंने विविधता को तोड़ते हुए अद्वैत के माध्यम से एकत्व के सिद्धांत को प्रचारित किया। अद्वैत का मतलब यही है कि आत्मा और ब्रह्म एक हैं। सभी जीवों में एक ही चेतना का विस्तार है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बताया कि ओंकार पर्वत पर स्थापित आदिगुरु की 108 फीट ऊंची प्रतिमा व आदि गुरु शंकराचार्य की दीक्षा स्थली को राज्य सरकार एकात्म धाम के रूप में विकसित कर रही है, जो चरणबद्ध रूप से पूर्ण हो रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने जीवन काल में अनेक महान कार्य किए। गुरु शंकराचार्य की चेतना शास्त्र परंपरा से हमारा परिचय कराती है। भारत को शक्ति संपन्न बनने के लिए ज्ञान, आध्यात्म, शास्त्र एवं शस्त्र सभी विधाओं की आवश्यकता है। हमारे संतों एवं संन्यासियों ने धर्म की स्थापना के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। शस्त्र के साथ शास्त्र की परंपरा का अद्भुत समन्वय किया है।

एकात्म धाम के उन्न्यन का कार्य चार चरणों में किया जा रहा है। इसमें प्रथम चरण में आदि शंकराचार्य की मूर्ति की स्थापना की गई है, द्वितीय चरण में आचार्य शंकर के जीवन दर्शन पर आधारित संग्रहालय, अद्वैतलोक हेतु अतिशीघ्र निविदा जारी की जा रही है, जिसमें उनके जीवन दर्शन का विभिन्न तकनीकियों के माध्यम से आम जनता तक पहुँचाने का कार्य किया जाएगा। तृतीय चरण में अद्वैत वेदांत दर्शन के अध्ययन, शोध एवं विस्तार हेतु आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान की स्थापना की जाएगी, यह संस्थान अद्वैत वेदांत दर्शन का संदर्भ केन्द्र होगा। चौथे और अंतिम चरण में शंकर निलयम आवासीय परिसर का निर्माण किया जायेगा। यह धाम देश ही नहीं बल्कि विश्व को मार्गदर्शन देगा। तो निश्चित तौर पर मध्यप्रदेश अद्वैत दर्शन का एक प्रमुख केंद्र बनने जा रहा है। पर जब अद्वैत दर्शन और आद्य शंकराचार्य की बात हो, तब यह अपेक्षा भी स्वाभाविक हो जाती है कि आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों के प्रमुखों यानि शंकराचार्यों की उपस्थिति एकात्मधाम में हो और ज्ञान की अविरल धारा नर्मदा तट पर हिलोरें ले। क्योंकि जब तक आद्य शंकराचार्य की बात होगी, तब उनके द्वारा तय प्रक्रिया के मुताबिक मठों के प्रमुख की गद्दी पर विराजित चार शंकराचार्य की उपेक्षा नहीं की जा सकेगी…अपेक्षा यही है कि हिन्दू एकता की बात की जाती है तो संत एकता के दर्शन भी अपेक्षित हैं…मोहन यादव से यह उम्मीद की जा सकती है। तभी सही मायने में एकात्म धाम अद्वैत दर्शन से सराबोर कर सकेगा…।