Election Fever : Mhow (Ambedkar Nagar):पैराशूट उम्मीदवारों का लंबा इतिहास, पर कोई जातीय समीकरण नहीं!
इंदौर की इस विधानसभा सीट को ग्रामीण कहा जाता है, पर ये ग्रामीण इलाका है नहीं! चुनाव आयोग के रिकॉर्ड इसे डॉ अम्बेडकर नगर सीट कहा जाता है। क्योंकि, ये संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली है। इस कारण 2003 में महू का नाम बदलकर डॉ अम्बेडकर नगर कर दिया गया। इसे पैराशूट उम्मीदवारों की सीट इसलिए कहा जाता है कि ज्यादातर उम्मीदवार महू के बाहर वाले ही रहे। इस बार यहां का चुनाव बेहद रोचक हो गया। भाजपा ने पिछला चुनाव जीतने वाली उषा ठाकुर को फिर उम्मीदवार बनाया, तो कांग्रेस ने भाजपा से आए रामकिशोर शुक्ला को टिकट दिया। इससे नाराज अंतरसिंह दरबार निर्दलीय खड़े हो गए, जिससे कांग्रेस की हवा बिगड़ गई। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा कि कांग्रेस के वोटों बंटवारा भाजपा को फ़ायदा देगा।
जहां तक महू की अपनी अलग पहचान की बात है, तो अंग्रेजों के समय यह सैन्य छावनी हुआ करती थी। महू में आज भी थल सेना की छावनी है। यहां सेना का इन्फैंट्री स्कूल, संचार प्रौद्योगिकी महाविद्यालय और थल सेना का युद्ध महाविद्यालय भी हैं। इसके साथ ही विश्व प्रसिद्ध डॉ भीमराव अम्बेडकर राष्ट्रीय सामाजिक शोध संस्थान भी यहीं है। बेहतर साक्षरता दर और अंग्रेजी बोलने वालों की ज्यादा तादाद के बावजूद महू के लोगों की तासीर ग्रामीण चेहरे की रही है। महू विधानसभा की साक्षरता दर प्रदेश की औसत 69.32% के मुकाबले करीब 72% है। वहीं सैन्य पृष्ठभूमि के चलते अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या भी यहां काफी ज्यादा है।
महू (आंबेडकर नगर) विधानसभा सीट की राजनीतिक तासीर अलग ही रही। यह विधानसभा इंदौर जिले में आती है, जबकि लोकसभा की दृष्टि से संसदीय क्षेत्र के रूप में यह धार लोकसभा में आती है। इस कारण धार लोकसभा के तहत इसका विकास होता है, लेकिन इंदौर जिला होने के कारण विधानसभा चुनाव में यह इंदौर जिले में गिनी जाती है। पर, पिछले तीन विधानसभा चुनाव से भाजपा का कब्जा है। भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय ने 2008 और 2013 में इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस के अंतरसिंह दरबार को हराकर जीत दर्ज की थी।
2018 में यहाँ से भाजपा ने उम्मीदवारों में बदलाव करते हुए अपने बयानों से हमेशा चर्चा में रहने वाली फायर ब्रांड उषा ठाकुर को अपना उम्मीदवार घोषित किया। इसका कारण था कि कैलाश विजयवर्गीय अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय को इंदौर की सीट-3 से उम्मीदवार बनाना चाहते थे, इसलिए उषा ठाकुर को हटाकर महू भेजा गया। कांग्रेस ने महू सीट से फिर अंतरसिंह दरबार को मैदान में उतारा था। 2008 में हुए परिसीमन से पहले अंतर सिंह दरबार 1998 और 2003 में महू से विधायक रहे हैं। इस विधानसभा में 12 हजार से ज्यादा ठाकुरों के वोट हैं, जो निर्णायक साबित होते हैं।
जहां तक विधायक का प्रभाव और क्षेत्र का विकास का सवाल है, तो कैलाश विजयवर्गीय ने अपने दो कार्यकाल में यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थितियों में बहुत सुधार किया। सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं में काफी हद तक यहां विकास नजर आया। लेकिन, महू शहर में यातायात के हालात, गंदगी और अधूरे विकास कार्य अभी भी चुनौती हैं। कांग्रेस के कार्यकाल में यहाँ कोई कामकाज नहीं होने के आरोप लगते रहे हैं।
यहां किसी जाति का दबाव नहीं
महू को उन विधानसभा सीटों में गिना जा सकता है, जहां कोई जातिगत समीकरण नहीं चलता। यहां हमेशा ऐसे समीकरणों से ऊपर उठकर चुनाव होता रहा है। इस नजरिए से कहा जा सकता है कि इस सीट के मतदाताओं की तासीर कुछ अलग है। 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में यहां से कांग्रेस जीती थी। जबकि, 1985 में जब राजीव गांधी की लहर चली, तब यहां के मतदाताओं ने भाजपा को जिता दिया। इन बातों से अलग भी जनता ने यहां ज्यादातर बार ग्रामीण चेहरों को ही चुना। भाजपा के दिवंगत नेता भेरूलाल पाटीदार जहां महू से चार बार विधायक रहे, तो कांग्रेस के घनश्याम पाटीदार और अंतर सिंह दरबार दो-दो बार विधायक रहे।
ये रहा महू का राजनीतिक इतिहास
महू विधानसभा के पहले चुनाव में यहां से उस समय के जाने-माने उद्योगपति आरसी जाल विधायक बने थे। वे 1972 तक विधायक रहे। उसके बाद महू का कोई स्थानीय व्यक्ति कभी विधायक नहीं बन सका। इस दौरान ग्रामीण नेताओं ने अपना खासा दम दिखाया और 8 बार चुनाव जीते। इस सफर में जो शहरी लोग महू के विधायक बने, उनमें तीन नाम शामिल हैं, लेकिन इनका महू से नाता नहीं था। 1972 में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने जहां महू से चुनाव लड़कर जीता। 36 साल बाद 2008 में इंदौर के कैलाश विजयवर्गीय ऐसा करने वाले दूसरे नेता बने और 2013 में भी यहां से चुने गए।
इत्तफाक है कि महू से लड़ने और जीतने वाले इन दोनों बाहरी नेताओं का केंद्र और राज्य की राजनीति में खासा दबदबा रहा। लेकिन, 2018 में यहां से उषा ठाकुर जीती, वे भी इंदौर की ही रहने वाली है। उज्जैन के रहने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने उज्जैन और महू से सीट का पर्चा भरा। वे दोनों जगह से जीते, लेकिन बाद में उन्होंने महू से इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव में प्रकाश चंद्र सेठी ने महू के गोकुलगंज के रहने वाले रामेश्वर सोनी को अपना उत्तराधिकारी चुना। लेकिन, गवली पलासिया के रहने वाले भेरूलाल पाटीदार जनसंघ से चुनाव जीत गए।
1977 में घनश्याम पाटीदार ने यहां से चुनाव जीता। 1980 में एक बार फिर चुनाव हुए और इस बार भी घनश्याम पाटीदार विजयी हुए। देश में जब राजीव लहर चल रही थी, तब 1985 के चुनाव में महू की जनता ने भेरूलाल पाटीदार को जिताया। वे 1990 में फिर विधायक बने और 1993 के बाद 1998 में वे नांदेड़ गांव के रहने वाले कांग्रेस प्रत्याशी अंतरसिंह दरबार से हार गए। 2003 के विधानसभा चुनाव में भी अंतरसिंह दरबार चुनाव जीते। लेकिन, इसके बाद 2008 में उन्हें इंदौर से महू आए कैलाश विजयवर्गीय ने हरा दिया। दरबार 2013 का दूसरा चुनाव भी वे कैलाश विजयवर्गीय से हार गए। 2018 में यहां से भाजपा ने उषा ठाकुर को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत दर्ज की।