Election in MP: मप्र में कांग्रेस को कमजोर करने कांग्रेस ने कमर कसी !
बात थोड़ी अटपटी-सी है, लेकिन है कुछ ऐसा ही। हाल ही में कांग्रेस आलाकमान ने नवंबर 2023 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ समितियां बनाई हैं। इनमें जो मनोनयन किये गये हैं, वे कहने को गुटीय संतुलन कायम करने के लिहाज से हैं, किंतु हकीकतन तो ये एक-दूसरे को निपटाने की तैयारी जैसे हैं। किसी समिति के मुखिया प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के विरोधी हैं तो करीब डेढ़ दर्जन नाम तीन समितियों में घूम-फिर कर वही हैं। पांच नाम तो सभी समितियों में हैं। ऐसा तब है, जब कहने को दो माह पहले से कांग्रेस की ही ओर से सर्वे दल भी गांव-गांव,घर-घर घूम रहा है, ताकि लोकप्रियता के पैमानों पर संभावित प्रत्याशी को परख सके। जबकि स्थितियां तो ऐसी बन रही हैं कि टिकट वितरण हमेशा की कांग्रेसी परंपरा की तरह होगा-ये तेरा, वो मेरा की तर्ज पर। इस चक्रव्यूह में कोई बुरी तरह से घिरा हुआ अपने को पा रहा है तो वे हैं कमलनाथ, जो तीन साल(फरवरी 2020) से रात-दिन एक किये हुए हैं। वैसे तो वे 2017 से मध्यप्रदेश की राजनीति के होकर रह गये हैं।बहरहाल।
कांग्रेस ने एक अगस्त को दो समितियां घोषित कीं। एक अभियान समिति और दूसरी चुनाव समिति। अभियान समिति में 32 सीधे तौर पर सदस्य बनाये और मोर्चा प्रमुखों को भी शामिल किया। दूसरी चुनाव समिति में 19 सदस्य बनाये और प्रमुख संगठनों का प्रतिनिधित्व भी रखा। फिर 2 अगस्त को स्क्रिनिंग समिति घोषित की, जिसमें तीन प्रमुख सदस्य बनाये गये-भंवर जितेंद्र सिंह अध्यक्ष,अजय कुमार लल्लू व सत्पगिरी उल्का दोनों सदस्य। इसके अलावा इनकी सहायता के लिये सात स्थानीय नेताओं को सदस्य बनाया गया। हालांकि फैसला लेने का हक पहले तीन सदस्यों को ही रहेगा।
यह सब तो चल ही रहा था कि एक और घोषणा की गई कि राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सूरजेवाला सीनियर ऑब्जर्वर रहेंगे। बस यहीं से हो गया बंटाढार । याने पांच दर्जन कांग्रेसियों की विभिन्न समितियां बनाने के बाद भी कुछ कसर रह ही गई थी,जो सूरजेवाला भेज दिये गये। कांग्रेस आलाकमान की यह जानी-समझी रणनीति है। कोई प्रमुख नहीं । हम जब जैसा चाहेंगे, वैसा ही होगा। कांग्रेस जिस तरह से टिकट वितरण करती है, ,वैसे ही करेगी। समिति सदस्यों में तू-तू, मैं-मैं होगी,खींचतान होगी और बेनतीजा बैठकों का निर्णय दिल्ली से होगा। दिल्ली याने सोनिया-राहुल दरबार । मल्लिकाजुर्न खरगे हस्ताक्षर भर करेंगे।
जो अभियान और चुनाव समितियां हैं,उनमें 19 नाम दोनों समितियों में हैं। मसलन,कमलनाथ,गोविंद सिंह,दिग्विजय सिंह,सुरेश पचौरी,कांतिलाल भूरिया,अरुण यादव,अजय सिंह,विवेक तन्खा,राजमणि पटेल,नकुलनाथ, सज्जन सिंह वर्मा,विजय लक्ष्मी साधो,तरुण भनोत,ओमकार सिंह मरकाम,सुखदेव पानसे,बाला बच्चन,जीतू पटवारी,कमलेश्वर पटेल और आरिफ मसूद।
जो स्क्रिनिंग समिति बनाई गई है,उसके प्रमुख भंवर जितेंद्र सिंह राहुल गांधी के बाल सखा हैं, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं । यह समिति पैनल से नाम छांटकर अंतिम रूप देगी,जिसे तस्दीक करेगा आलाकमान। कोई विवाद भी रहा तो निराकरण दिल्ली से ही होगा। इसी तरह सीनियर ऑब्जर्वर बनाया गया है रणदीप सूरजेवाला को। इस नाम पर सर्वाधिक हैरत है और अंदरुनी विरोध भी। दरअसल,सूरजेवाला हरियाणा के हैं। वे 2018 का विधानसभा चुनाव वहां से लड़े थे और जमानत जब्त हो गई थी। इतना ही नहीं तो जब हरियाणा,राजस्थान,छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिये चुनाव हुआ तो सूरजेवाला को बजाय हरियाणा के राजस्थान से भेजा गया, क्योंकि हरियाणा के स्थानीय कांग्रेसियों का सख्त एतराज था कि जिस व्यक्ति की जमानत जब्त हो गई,उसे राज्यसभा में भेजने की क्या तुक ?
इस तरह से देखें तो कमलनथ के लिये राह में कांटों का पूरा खेत ही बिछा दिया गया है। वे करीब एक साल से जमकर मैदानी मेहनत कर रहे थे और टिकटार्थियों से कह रहे थे कि सर्वे में जिस व्यक्ति का बेहतर काम और नाम सामने आयेगा,उसे टिकट मिलेगा। जबकि,अब ऐसा होने के कोई आसार नहीं, क्योंकि इतने सारे दिग्गज समितियों में बैठकर कचोरी-समोसा-गुलाब जामुन खाकर तो चल नही देंगे।
एक और बात, जिसकी कांग्रेस के अंदरखाने चर्चा है कि भंवर जितेंद्र सिंह और सूरजेवाला दोनों ही कमलनाथ के विरोधी हैं। ये दोनों ही कमलनाथ से काफी कनिष्ठ हैं,बल्कि कहीं आसपास भी नहीं टिकते। फिर कमलनाथ ने मैदान में कभी-भी शिकस्त नहीं खाई। वे छिंदवाड़ा में अभी तक अजेय हैं।केंद्र में विभिन्न मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री रहे हैं। कांग्रेस के संजय गांधी युग से वे गांधी परिवार से जुड़े हैं और उनकी तीन पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं। फिर भी जितेंद्र सिंह और सूरजेवाला को उनके ऊपर बैठा देने से वे असहज तो रहेंगे ही, जिसका सीधा असर कांग्रेस की समूची रणनीति और कार्यकर्ताओं के उत्साह पर भी पड़ेगा ही। साथ ही जो कमलनाथ कल तक इस बात के लिये आश्वस्त थे कि कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने पर वे मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार होंगे, यह संभावना भी क्षीण हो गई।
अभी तो कहने वाले कह रहे हैं कि दो माह पहले तक जो कांग्रेस 150 सीटों के सपने देखते हुए भाजपा को 65 सीटों पर रोक रही थी, वह स्थिति पूरी तरह उलटी हुई नजर आ रही है। यह शायद कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि वह भस्मासुर बनकर खुद को तबाह करने के लिये अभिशप्त होती जा रही है।