धार्मिक आस्था और भारत की शक्ति के साथ सामाजिक लाभ देकर चुनावी परीक्षा

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धार्मिक आस्था और भारत की शक्ति के साथ सामाजिक लाभ देकर चुनावी परीक्षा

नव रात्रि शुरू होने से पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के पिथौरागढ़ से आगे कैलाश पर्वत और पार्वती पूजा पर कुछ लोगों को कष्ट हो रहा है । वे इसे आगामी विधान सभा चुनाव के लिए हिंदुत्व के मुद्दे से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं ।जबकि नरेंद्र मोदी राजनीति में आने से बहुत पहले भी इसी तरह हिमालय क्षेत्र में जाते रहते थे । हिंदुत्व और भारतीयता पर गौरव और उसके प्रचार प्रसार में वह स्वयं तथा भारतीय जनता पार्टी ने कभी छिपाया नहीं है ।दूसरी तरफ़ महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जहां पाकिस्तान चीन सीमा पर भारतीय सेना युद्धाभ्यास कर रही वहाँ पिथौरागढ़ के पास चीनी सीमा पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी शिव शक्ति की पूजा कर शांति सुख की कामना भी कर रहे हैं । भारत की एकता , सैन्य शक्ति और प्रजातंत्र का गौरवपूर्ण प्रदर्शन उचित ही है ।

चुनाव किसी भी क्षेत्र में हो स्थानीय क्षेत्रीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय व्यापक दूरगामी हितों पर जनता का ध्यान रहना लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है ।

चुनावों में गुजरात सहित देश के हर हिस्से में अपनी जन कल्याण के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के आधार पर सफलता की कोशिश कारगर साबित होती है । मध्यप्रदेश में इस आधार पर ही भाजपा को चुनावी चुनौती का सामना करना है । राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसे अपने राष्ट्रीय नेतृत्व की योजनाओं के लाभ गिनाने हैं और प्रदेशों के भविष्य के लिए जनता का विश्वास जीतना है ।प्रमुख प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी को अपने कामों का हिसाब देना है । मोदी जहां राजनीति , विकास , राष्ट्रीय गौरव और एकता पर जोड़ दे रहे , वहाँ राहुल गांधी की कांग्रेस वही घिसी पिटी जातिवाद और भ्रष्टाचार की आवाज़ बुलंद कर रही है । देश के करोड़ों लोग ख़ासकर युवा उन पुराने घावों से मुक्ति चाहते हैं ।

मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं और आदिवासियों के वोट निर्णायक साबित होने वाले हैं । मोदी और उनके प्रादेशिक क्षत्रप शिवराज या वसुंधरा या रमन सिंह धार्मिक आस्थाओं के साथ विकास और कल्याण की योजनाओं का भंडार लेकर जनता के बीच जा रहे हैं । पिछले वर्षों के दौरान महिलाओं की मूलभूत सुविधाओं – रहने के लिए मकान , खाने को अनाज , गैस , पानी , बिजली , बच्चों की मुफ़्त शिक्षा और आयुष्मान जैसी स्वास्थ्य योजनाओं से ग्रामीण , आदिवासी और छोटे शहरी क्षेत्रों में एक नया विश्वास पैदा हुआ है ।

मध्य प्रदेश में कमलनाथ या राजस्थान में अशोक गहलोत प्रदेश में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं । कमलनाथ दशकों तक केंद्र में रहे और राहुल मनमोहन राज में केंद्र में समुचित महत्व कम करके मध्य प्रदेश में सता के संघर्ष में उलझे हैं । अशोक गहलोत भी राहुल प्रियंका की शह पर पाँच साल से सचिन पायलट से लड़ने में लगे रहे । इस लड़ाई में दोनों का नुक़सान ही हुआ । दूसरी तरफ़ वसुंधरा राजे भी भाजपा आला कमान के संकेतों के बावजूद राजस्थान में डटी रहना चाहती हैं । पार्टियों की गुटबंदी का नुक़सान कार्यकर्ताओं के साथ जनता को भी भुगतना होता है ।छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री बघेल और दूसरे नेता सिंहदेव में पाँच साल तनाव टकराव चलता रहा । शराब घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों से कांग्रेस बेहद बदनाम हुई है , लेकिन भाजपा भी स्पष्ट दिशा और नेतृत्व की ढुलमुल स्थिति से उतनी प्रभावी नहीं हो पाई । नतीजा पार्टी प्रदेश में पूरी तरह मोदी के चमत्कार पर निर्भर है ।आदिवासी इलाक़ों में नक्सल हिंसा कुछ कम हुई और विकास की योजनाओं का लाभ मिलने से मतदाता जागरूक और सक्रिय हो रहे हैं । वहाँ स्थानीय नेताओं और संगठन की परीक्षा चुनावों में होगी ।

इस दृष्टि से भाजपा ने अनुभवी बड़े नेताओं के साथ नई टीम भी तैयार की है । जबकि कांग्रेस सता के पुराने लोगों और फ़ार्मूलों पर निर्भर है । यही नहीं गठबंधन के चक्कर में आम आदमी पार्टी से दूरी या साथ को लेकर कांग्रेस अधर में लटकी दिखती है । टिकटों के बँटवारे से असंतोष और विद्रोह दोनों पार्टियों के लिए सिरदर्द तो रहेगा ।

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।