“आदिपुरुष” का “अंतहीन” विरोध…

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“आदिपुरुष” का “अंतहीन” विरोध…

 जिस फिल्म में सैफ अली खान खलनायक की भूमिका में हों, उस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर, डॉयलॉग राइटर की यह जवाबदेही तय है कि खलनायक का कद कहीं कमजोर न पड़ने पाए। ऐसी फिल्मों में हीरो का चयन विलेन की तुलना में कमजोर चेहरे का ही किया जाता है। और आदिपुरुष फिल्म में भी यही किया गया। फिल्म बड़े बजट की बनाई गई और टेक्नोलॉजी पर फोकस किया गया। पर गलती एक ही हुई और वह यह कि फिल्म का विषय गलत चुना गया। हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र रामायण पर मनमाने तरीके से फिल्म बनाकर, तथ्यों से खिलवाड़ कर और सरल शब्दों की आड़ में फ़ूहड़ डॉयलागबाजी भरकर फिल्म की टीम ने “आदिपुरुष” के “अंतहीन” विरोध की पटकथा खुद ही लिख दी थी। और जैसा बोया था, अब काटना भी वैसा ही पड़ रहा है।
निर्माता-निर्देशक और राइटर यह भूल गए कि जिस फिल्म में राम हों, वहां रावण की भूमिका में सैफ अली खान हो या फिर कोई बेनाम अभिनेता…पर फिल्म तो नायक राम पर ही केन्द्रित रहेगी। राम से बड़ा चेहरा कोई और हो भी नहीं सकता। और फिर राम यानि आदर्श, मर्यादा और पूर्णता का संगम, उनसे बड़े नायक की कल्पना संभव ही नहीं है। वहां सरल नहीं मर्यादित शब्दों का प्रयोग ही अनिवार्य है। मनोज मुन्तसिर शुक्ला ने इस फिल्म में संवाद लेखन में फूहड़ प्रयोग कर यह साबित कर दिया है कि रामायण और धर्म जैसे विषय लायक गंभीरता उनमें कतई नहीं है। फिल्म में राम-जानकी का मुख्य किरदार निभाने वाले कलाकार प्रभास और कृति सेनन हैं।
इस फिल्म का अब चौतरफा विरोध हो रहा है। यदि किसी दूसरे धर्म-संप्रदाय के धार्मिक विषय से ऐसा खिलवाड़ किया जाता तो अब तक निर्माता-निर्देशक और लेखक का जीना दूभर हो जाता। यह हिंदू धर्म और उसके अनुयायी ही हैं जो विरोध के बीच भी फिल्म को कमाई करने का पूरा अवसर भी दे रहे हैं और फिल्म की टीम भूल-सुधार कर उसे दर्शकों को परोसने का आश्वासन देकर अहसान जता रही है। नेपाल में फिल्म को बैन कर दिया गया, लेकिन भारत में अंतहीन विरोध के बीच फिल्म सिनेमाघरों में कमाई के रिकॉर्ड बना रही है। जबकि राम, रामायण और हिंदू धर्म-संस्कृति का प्रमुख केंद्र तो भारत ही है।
एक नजर डालें तो फिल्म के एक सीन में, इंद्रजीत बजरंगबली की पूंछ में आग लगाने के बाद कहते हैं- ‘जली ना? अब और जलेगी… बेचारा जिसकी जलती है, वही जानता है।’ बजरंगबली की संज्ञान में यह डॉयलाग आया होगा, तो वह माथा पीट रहे होंगे कि हिंदू राष्ट्र बनाने की धुन में देवभूमि भारत में यह क्या बेहूदापन चल रहा है। तो बजरंगबली, इंद्रजीत से कहते हैं कि ‘कपड़ा तेरे बाप का, आग तेरे बाप की, तेल तेरे बाप का, जलेगी भी तेरे बाप की…।’ तो रावण का एक राक्षस सैनिक बजरंगबली को अशोक वाटिका में बात करते देखने के बाद कहता है- ‘तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने आ गया..।’ तो बजरंगबली का डॉयलॉग कि ‘जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे, उनकी लंका लगा देंगे…।’ एक और डॉयलाग लक्ष्मण पर वार करने के बाद इंद्रजीत कहता है- ‘मेरे एक सपोले ने तुम्हारे इस शेष नाग को लंबा कर दिया। अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है…।’ रामायण के नाम पर इस फूहड़ता से फिलहाल रामानंद सागर निर्मित रामायण सीरियल के कलाकार बेहद आक्रोशित हैं। दर्शक दुखी हैं और शर्मिंदा हैं, लेकिन फिल्म की टीम की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है वरना अभी तक सिनेमाघरों से फिल्म खुद उनके द्वारा ही उतार ली जाती। बात डॉयलॉग तक सीमित नहीं है, बल्कि फिल्मांकन और भूमिकाओं के साथ भी मनमानी की हद है।
ओम राउत के डायरेक्शन में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा के भारी-भरकम बजट में बनी ये फिल्म “आदिपुरुष” वाकई रामायण के मूल भावों के साथ खिलवाड़ है। इसे हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर यह संदेश दिया जाना चाहिए कि धार्मिक और आस्था के विषयों के साथ खिलवाड़ कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बड़े बजट‌ की फिल्म बनाकर पैसे कमाने के लिए ऐसे हजारों विषय बिखरे पड़े हैं, जिनके साथ निर्माता-निर्देशक और लेखक जितनी चाहे मनमानी करें। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब “आदिपुरुष” के “अंतहीन” विरोध के बीच राजनीति भी अलग-अलग खेमों में बंटी नजर आ रही है। ऐसे विषय पर तो एकमत और सर्वसम्मति से एकसाथ आगे आना ही चाहिए।
विरोध की वजह जानकर फिल्म रिलीज होने से पहले फिल्म देखने को उत्साहित बच्चे भी अब फिल्म देखने से तौबा कर रहे हैं, तो क्या देश के जिम्मेदार नागरिकों को यह बात समझ में नहीं आती कि फिल्म का सामूहिक तौर पर बहिष्कार कर यह संदेश दिया जाए कि हर जगह मनमानी नहीं चलेगी…। क्या सिनेमाघरों के सभी नहीं तो कम से कम हिंदू मालिकों का जमीर यह गवाही नहीं देता कि पैसा कमाने के लिए हम ऐसी फिल्म को अपने थिएटर के पर्दे पर कतई नहीं चलने देंगे। शायद देखना बस इतना ही बाकी है कि विरोध के बीच फिल्म की कमाई कितने रिकॉर्ड बनाती है…और फिर कल कोई दूसरा धार्मिक विषय और अधिक मनमाने ढंग से परोसकर यह अहसास कराया जाएगा कि दर्शकों की भावनाओं की कोई कद्र नहीं है, उन पर कुछ भी थोपा जा सकता है।