तप और संयम से सब कुछ पाया जा सकता है…

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तप और संयम से सब कुछ पाया जा सकता है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। ब्रह्मचारिणी का मतलब है तप का आचरण करने वाली। भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए हिमालय और मैना की पुत्री पार्वती ने हजारों साल का कठोर तप किया था। तपस्या की यह पराकाष्ठा देखकर खुद ब्रह्मा पार्वती के सामने प्रकट हुए और उन्हें शिव को पति के रूप में पाने का आशीर्वाद दिया। इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि यदि हम ठान लें और त्याग, संयम, एकाग्रता से प्रयास करें तो मनचाही मंजिल प्राप्त कर सकते हैं। विद्यार्थी अपने करियर में मनचाहा लक्ष्य पा सकते हैं। गृहस्थ अपने जीवन में सफलता की किसी भी सीमा तक पहुंच सकते हैं। वानप्रस्थ आश्रम में तप के द्वारा साध्य की प्राप्ति संभव है। और सन्यास आश्रम में ईश्वर की शरण पाई जा सकती है।
आओ हम जानते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी का तप किस तरह का था।‌ पौराणिक कथा के अनुसार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने जब यह संकल्प लिया कि वे भगवान शिव को ही पति रूप में प्राप्त करेंगी। तब नारद मुनि की सलाह पर उन्होंने कठोर तपस्या आरंभ की। उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल-फूल और बाद में केवल बिल्व पत्र खाकर तप किया। बाद में उन्होंने बिल्व पत्र भी खाना छोड़ दिया और उस खुले आसमान के नीचे हर कठोर मौसम को सहते हुए उन्होंने बिना भोजन और जल के भी कठोर तप साधना जारी रखी। पत्तों को छोड़ देने के कारण उन्हें अपर्णा नाम से भी जाना गया। उनके इस तप से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया और सभी देवता उनके इस संकल्प और शक्ति से प्रभावित हुए। कई वर्षों की तपस्या के बाद भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि ‘हे देवी! आपकी तपस्या सफल हुई है। भगवान शिव अवश्य ही आपके पति बनेंगे’। उनकी इस कठिन साधना और अटूट संकल्प के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी देवी कहा गया। उनका यह स्वरूप दर्शाता है कि अगर कठोर हालत में भी साधक का मन विचलित नहीं होता है, तो वह भी ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है।
इन्हीं ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। माँ ब्रह्मचारिणी संयम, साधना और आत्मबल की मूर्ति मानी जाती हैं। उनका ध्यान साधक को तप की अग्नि में शुद्ध करता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
ब्रह्मचारिणी के जीवन से यही संदेश मिलता है कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थितियां आ जाएं, लेकिन हमारा मन हमारे लक्ष्य से विचलित नहीं होना चाहिए। उनका यह स्वरूप हमें सिखाता है कि तप और संयम से ईश्वर को भी पाया जा सकता है। ऐसे में अगर व्यक्ति चाहे ले तो सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति सहज ही संभव है। उनका यह रूप बेहद सौम्य है। कोई भक्त जब मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करता है, तो उसके भीतर आंतरिक स्थिरता और मानसिक दृढ़ता जागृत होती है। माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करने से चंचलता और अस्थिरता का निवारण होता है। साधना, जप और योग में स्थिरता आती है और आंतरिक उग्रता का शमन होता है। मां ब्रह्मचारिणी वह शक्ति हैं, जो यह सिखाती हैं कि आत्मज्ञान का मार्ग केवल साधना और तप से ही संभव है। ज्योतिष शास्त्र में मां ब्रह्मचारिणी को मंगल ग्रह का नियंत्रक माना गया है। उनकी आराधना से मंगल दोष दूर होता है और साधक को ऊर्जा, स्वास्थ्य व सफलता मिलती है।
तो वास्तव में देवी के नौ रूपों में पूजा का पर्व नवरात्रि हमें जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के प्रति ऊर्जा से सराबोर करता है। उनके स्वरूप को हृदय में विराजित करने से हम यह अनुभूति कर सकते हैं कि एकाग्रता और लक्ष्य के प्रति समर्पण जीवन में हर सफलता की कुंजी है। लौकिक और परलौकिक सभी सिद्धियां तप के आचरण से तपस्वी का वरण करने को बाध्य हो जाती हैं… तो आइए मां ब्रह्मचारिणी को अपने मन मस्तिष्क में बिठाकर हम सभी अपने-अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।
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