EWS Reservation Intact : आर्थिक कमजोर वर्ग को 10% आरक्षण बरक़रार, SC का फैसला! 

कोर्ट ने कहा कि EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ!

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EWS Reservation Intact : आर्थिक कमजोर वर्ग को 10% आरक्षण बरक़रार, SC का फैसला! 

New Delhi : दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों को 10% आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में 10% आरक्षण को बरकरार रखा। EWS कोटा पर SC के 5 जजों में से दो ने आरक्षण को संवैधानिक ठहराया। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण बना रहेगा।

संविधान पीठ ने 2019 का संविधान में 103 वां संशोधन संवैधानिक और वैध करार दिया। अदालत ने कहा कि EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ। हालांकि, जस्टिस भट्ट ने आरक्षण को असंवैधानिक माना। उन्होंने बाकी जजों से असहमति जताई। संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने दिया बहुमत का फैसला। जबकि, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने असहमति जताते हुए इसे असंवैधानिक बताया। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है।

आरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी गई। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है, तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता। EWS नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है। उनके साथ असामान व्यवहार नहीं किया जा सकता। SEBC अलग श्रेणियां बनाता है। अनारक्षित श्रेणी के बराबर नहीं माना जा सकता। EWS के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता!

इसने सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को 25% सीटें बढ़ाने के लिए निर्देश दिया है। 4,315.15 करोड़ स्वीकृत रुपये की लागत से कुल 2.14 लाख अतिरिक्त सीटें तैयार की गई है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि इस संबंध में की गई गणना के अनुसार, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान करने के लिए, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आनुपातिक आरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना सामान्य के लिए सीट की उपलब्धता को कम नहीं किया गया।

प्रस्तुत किया गया है कि केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में 2,14,766 अतिरिक्त सीटें सृजित करने की मंजूरी दी गई थी। उच्च शिक्षण संस्थानों में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 4,315.15 करोड़ रुपए खर्च करने की मंजूरी दी गई। शीर्ष अदालत ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलील सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है! शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थी और EWS कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘पिछले दरवाजे से’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था।

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल थे। तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाडे ने EWS कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है।

दूसरी तरफ, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50% कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया। उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।