

Exploitation of Mango Farmers : अलीराजपुर कलेक्टर की नाराजगी ने आम उत्पादकों के दिन फेरे, 4 रु किलो का आम 45 रू में बिका!
Indore : ये घटना भले ही आदिवासी बहुल और आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा विपन्न जिले अलीराजपुर की हो, पर सोशल मीडिया ग्रुप पर वायरल हुए एक वीडियो ने इसे देशभर में चर्चित कर दिया। मामला 19 मई का है, जिस दिन अलीराजपुर में इस साल की आम मंडी की शुरुआत हुई। कलेक्टर डॉ अभय बेडेकर जिज्ञासावश आम की मंडी चले गए। लेकिन, वहां उन्होंने जो स्थिति देखी, उससे वे द्रवित भी हुए और नाराज भी। इसके बाद जो हुआ, उसने यहां के आम उत्पादक किसानों के दिन बदल दिए। जो आम व्यापारी 4-5 रूपए किलो में खरीदते थे, वो कई गुना बढ़ गए।
कलेक्टर ने बताया कि मंडी की शुरुआत के दिन ही दूर-दूर से आदिवासी किसान अपना आम बेचने मंडी में आए थे। चारों तरफ अधपके और कच्चे आम के बड़े ढेर लगे थे। मंडी में आम लाने वाले आदिवासी किसान थे और उन्हें खरीदने वाले व्यापारी भी। उन्होंने देखा कि यहां तौल कर आम बेचने की कोई व्यवस्था नहीं है। जो बड़े-बड़े ढेर लगे हैं, वे अंदाज से ही 4 और 5 रूपए किलो के हिसाब से बेचे जा रहे हैं। ये अंदाजा भी व्यापारी ही लगाते हैं। डॉ बेडेकर बताते हैं कि मुझे देखकर आश्चर्य हुआ कि आम उत्पादक किसानों के साथ ये तो एक तरह का जुल्म है, कि उनकी फसल को व्यापारी औने-पौने दाम पर खरीद रहे हैं।
मुझे दुःख हुआ कि गरीब आदिवासियों के साथ ये तो बहुत ज्यादती है। जो आम सामान्य तौर पर थोक में कम से कम 15 रूपए किलो में बिकना चाहिए, वो 4-5 किलो में बिना तौल के व्यापारी खरीद रहे हैं और किसान मज़बूरी में उसे बेच भी रहा है। जिस तरह से व्यापारी कीमत लगा रहे थे, उससे साफ़ लगा कि खरीददार व्यापारियों ने पहले से तय कर लिया था कि किसानों को 4 या 5 रूपए किलो से ज्यादा कीमत नहीं देना है। सभी व्यापारी जब एक ही भाव बताएंगे तो किसान के पास कोई चारा ही नहीं बचता। मुझे लगा कि इस ज्यादती को रोका जाना और किसान के साथ इंसाफ बहुत जरूरी है।
कलेक्टर ने बताया कि मैंने मंडी सचिव और संबंधित अधिकारी को वहीं मंडी में व्यापारियों और किसानों के सामने फटकार लगाई। वहां जो दृश्य देखा, उसके बाद मेरा सार्वजनिक रूप से नाराज होना स्वाभाविक भी था और जरूरी भी, ताकि मौजूद लोग वास्तविकता और प्रशासन की सख्ती से वाकिफ हो जाएं। डॉ बेडेकर बताते हैं कि मैंने अपने स्वभाव के विपरीत वहां नाराजगी जाहिर की।
इसके अलावा सम्बंधित अधिकारियों को ऑफिस में तलब कर इसका हल निकालने के लिए कहा। इसका असर ये हुआ कि दूसरे ही दिन आम की अधिकतम खरीद 45 रुपए किलो तक हुई। निश्चित रूप से आम के न्यूनतम भाव भी 15 रूपए किलो के आसपास रहे, जिससे आम उत्पादक किसानों को फ़ायदा हुआ। कुछ किसान ढेर में ही आम बेचना पसंद करते हैं, उन्हें समझाया गया कि तौल कांटा लगने से उन्हें ही फ़ायदा होगा। उन्हें अपनी फसल की पूरी कीमत भी मिलेगी।
नाराजगी वाले वायरल वीडियो का असर
इस पूरे घटनाक्रम की एक खास बात ये भी रही कि कलेक्टर डॉ अभय बेडेकर की मंडी में नाराजगी का वीडियो जबरदस्त वायरल हुआ। बताते हैं कि कुछ वायरल हुए कुछ वीडियो को 15 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा। टोटल व्यूज की बात की जाए तो एक सप्ताह में करीब 25 से 27 लाख व्यूज इस वायरल हुए वीडियो को मिले। सवाल उठता है कि क्या कलेक्टर की नाराजगी नई बात है, जो लोगों ने इस वीडियो को इतने बार देखा।
दरअसल, ऐसा कई बार होता है कि इस पद पर बैठे व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर करना पड़ती है। फिर इस वीडियो में ऐसा क्या था कि इसे लाखों लोगों ने देखा और अभी भी ये देखा जा रहा है। कलेक्टर ने बताया कि मेरे पास इस बारे प्रदेश के बाहर से भी फोन आए और उन्होंने सराहना की। दरअसल, ये गरीब किसानों के प्रति जनता की सहानुभूति उभरने का मामला है। जनता ऐसे व्यापार को कभी सही नहीं मानती, जो किसी का हक़ छीनकर किया जा रहा हो और अलीराजपुर मंडी में डॉ बेडेकर की नाराजगी को लोगों ने उसी तरह लिया।
अलीराजपुर में आम का कारोबार
आदिवासी जिला अलीराजपुर आम के मामले में बेहद समृद्ध है। यहां से सौ से ज्यादा किस्म के आम होते हैं। ज्यादातर आम की किस्में वे हैं जो देश में और कहीं नहीं उपजती। इन्हें दुर्लभ आम कहा जा सकता है। इस वजह से यहां का आम दिल्ली, मुंबई, इंदौर समेत देशभर में भेजा जाता है। कई बड़ी आम पल्प उत्पादक कंपनियां यहां आम के खरीददार व्यापारियों से पहले ही सौदा करके इनकी खरीद करती हैं। अनुमान है कि अलीराजपुर में हर साल करीब 25 करोड़ के आमों का कारोबार होता है। कुछ साल पहले तक यहां राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात के व्यापारी आम की खरीद करने आते थे। लेकिन, ऐसी अव्यवस्था के चलते उन्होंने आना छोड़ दिया।
न क्वालिटी सुधार न कोल्ड स्टोरेज
जानकारी के मुताबिक, अलिराजपुर जिले में लगभग साढ़े 3 लाख आम के फल देने वाले नए और पुराने पेड़ हैं। इनमें से फसल ख़राब होने की स्थिति में भी हर चौथे पेड़ पर आम जरूर आते हैं। यानी 80 हजार से 1 लाख पौधे हर साल आम देते हैं। न्यूनतम प्रति पेड़ पर 200 किलो आम आता है जिसकी औसत कीमत 2500 रूपए आंकी जा सकती है। सीधा सा गणित हुआ कि जिले में हर साल 25 करोड़ का आम होता है। जबकि, पके और कच्चे आम के बाजार मूल्य में 100% का अंतर देखा जाता है।
जहां तक सरकारी प्रयास की बात है, तो कृषि विभाग यहां के दुर्लभ किस्म के आमों की क्वालिटी में सुधार के कोई प्रयास नहीं करता। उद्यानिकी और कृषि विभाग की लापरवाही के चलते मॉनिटरिंग नहीं होती और इस उत्पाद से जुड़ी फूड प्रोसेसिंग की कोई यूनिट यहां नहीं है। जबकि, सरकार को यहां आमों की फसल को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज खोलना चाहिए, ताकि आम उत्पादक किसान अपनी फसल को कुछ दिन बचाकर उचित व्यापार कर सकें।