Eyewitness of Terrorist Attack : पहलगाम हमले में निहत्थे आर्मी ऑफिसर ने कैसे 35-40 लोगों की जान बचाई, लोगों को बाहर निकाला!

आर्मी ऑफिसर ने सेना की लोकल यूनिट को अलर्ट किया, तब 40 मिनिट बाद आर्मी पहुंची!

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Eyewitness of Terrorist Attack : पहलगाम हमले में निहत्थे आर्मी ऑफिसर ने कैसे 35-40 लोगों की जान बचाई, लोगों को बाहर निकाला!

Srinagar : घटना वाले दिन जब आतंकियों ने M4 असॉल्ट राइफल और AK-47 से गोली चलाना शुरू किया तो वहां मौजूद लोग एंट्री गेट की ओर भागे। तभी वहां पर्यटकों में मौजूद कर्नाटक के आर्मी अधिकारी भी अपने परिवार से साथ घूमने आए थे, उन्होंने लोगों को एग्जिट गेट की तरफ जाने से रोका। हमले के बाद उन्होंने समझदारी से 35-40 लोगों की जान बचा ली। रणनीतिक तौर से उन्हें अंदाजा हो गया कि आतंकी ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने के लिए एग्जिट पॉइंट को टारगेट कर सकते हैं। आतंकी पहलगाम के बैसरन घाटी को लहूलुहान करने के इरादे से आए थे। 20-25 मिनट तक आतंकवादियों ने धर्म पूछकर लोगों को बेरहमी से गोरी मारी। वहां मौजूद कई लोग खुशकिस्मत रहे, जो किसी तरह गोलियों का शिकार नहीं बने।

आतंकी हमले के बाद कई चश्मदीद सामने आए और 22 अप्रैल के हमले और आतंकियों के बारे में बताया। इनमें से अधिकतर लोगों ने अपने परिजनों को इस हमले में खोया है। उनकी आंखों देखी रूह कंपाने वाली है। इस हमले में बाल-बाल बचे लोगों ने भी हमले की कहानी बयां की। गोलीबारी के दौरान बैसरन में कुछ ऐसे लोग भी थे, जिनकी सूझबूझ से कई लोगों की जान बच गई। कर्नाटक के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रसन्ना कुमार भट्ट ने एक्स पर अपनी कहानी बताई। उनके आर्मी ऑफिसर भाई ने न सिर्फ परिवार को बचाया, बल्कि 35-40 लोगों के लिए वह ढाल बन गए।

परिवार के साथ आए थे आर्मी ऑफिसर

सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रसन्न कुमार भट्ट भी हमले के दौरान अपनी पत्नी, आर्मी ऑफिसर भाई और भाभी के साथ पहलगाम के बैसरन घाटी में थे। उन्होंने बताया कि साढ़े 12 बजे बैसरन घाटी में टट्टू की सवारी की। एक कैफे में चाय और कहवा पीने के बाद वे दोपहर 2 बजे टहलने निकले। प्रसन्ना का परिवार एंट्री गेट से दूर चला गया था। करीब 20 मिनट बाद अचानक दो गोलियों की आवाज ने माहौल बदल दिया। लोगों को समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है? अधिकतर लोगों ने पहली बार AK-47 से चलाई गई गोली की तेज और डरावनी आवाज सुनी थी।

इमरजेंसी एग्जिट की तलाश की

प्रसन्न कुमार भट्ट और उनका परिवार अन्य पर्यटकों के साथ एंट्री गेट से लगभग 400 मीटर दूर एक मोबाइल टॉयलेट के पीछे छिप गया। प्रसन्न कुमार भट्ट के भाई ने भांप लिया कि गोलियां AK-47 से चल रही हैं और आतंकी हमला हो चुका है। बैसरन में तड़ातड़ गोलियां चल रही थीं। मैदान में भागने के लिए ज्यादा जगह नहीं थी। क्योंकि, वह चारों तरफ से घिरा हुआ था। लोग जान बचाने के लिए घाटी से एग्जिट गेट की ओर दौड़ रहे थे। तब आर्मी ऑफिसर अपना कर्तव्य जागा। उन्होंने एंट्री गेट की ओर दौड़ रहे लोगों को झुंड के बजाए बिखरकर उल्टी दिशा में जाने को कहा। उन्होंने घाटी से बाहर निकलने का इमरर्जेंसी रास्ते की तलाश की।

 

बाड़ में एक छेद से परिवार और लोगों को निकाला

सौभाग्य से उन्हें एक नाले के कारण बाड़ में एक छेद मिला। आर्मी ऑफिसर भाई ने परिवार समेत अन्य लोगों को बाड़ से बाहर निकाला। उन्होंने लोगों को उस जगह से दूर भागने के लिए कहा, जहां गोलीबारी हो रही थी। वहां एक ढलान था, पानी की धारा बह रही थी। मिट्टी के ढलान पर दौड़ना बहुत मुश्किल था, लेकिन कई लोग फिसल गए। फिर भी वे अपनी जान बचाने में कामयाब रहे। खराब मोबाइल नेटवर्क के बावजूद, भट्ट के भाई ने पहलगाम में स्थानीय आर्मी यूनिट और श्रीनगर में आर्मी हेडक्वार्टर को हमले के बारे में जानकारी दी। परिवार एक गड्ढे में छिप गया और दोपहर 3 बजे तक गोलियों की आवाज सुनता रहा।

सेना ने शाम 4 बजे सबको बचाया 

लगभग 40 मिनट बाद हेलीकॉप्टरों की आवाज सुनकर उनकी उम्मीद जगी। शाम 4 बजे तक स्पेशल फोर्सेज के जवानों ने उन्हें ढूंढ लिया और डरे हुए पर्यटकों को पहाड़ी से नीचे ले गए। प्रसन्न ने बताया कि उन्होंने खून से लथपथ लोगों को देखा और उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि पिछले दो घंटों में क्या हुआ है? गोलियों की आवाज अभी भी हमारे कानों में गूंज रही है।