भाजपा और कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के नेतृत्व का दूरगामी प्रभाव
आलोक मेहता
मध्य प्रदेश में मोहन यादव और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनाए जाने से एक बार फिर यह साबित हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय और प्रदेशों में दूसरी पंक्ति के नेत्तृव को दूरगामी राजनैतिक लाभ को अच्छी तरह समझती और तैयारी करती है | इसी तरह प्रदेशों में एक बार नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री का पद दिए जाने के बाद उसके कार्यकाल में पूरा समर्थन देकर मजबूत करने का प्रयास करती है | उसके विरुद्ध पार्टी के अन्य नेताओं की शिकायतों को सुनती और मतभेद निपटाने की कोशिश करती है | राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तरों पर नेतृत्व मजबूत होने से प्रदेशों और देश में भी सामाजिक आर्थिक विकास का लाभ मिल पाता है | दूसरी तरफ दूसरी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस में केंद्र या राज्य में दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को अधिक बढ़ने देना तो दूर उन्हें कमजोर करने का प्रयास होता है | सचिन पायलट , मनीष तिवारी , पृथ्वीराज चव्हाण , अशोक गेहलोत , भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं को राहुल गाँधी और उनके सलाहकारों ने पिछले दस वर्षों में ऐसी ही नीति अपनाई ,, जिससे पार्टी कमजोर होती गई |
लोक सभा और उसके बाद हुए विभिन्न राज्यों के परिणाम इस बात के प्रमाण हैं कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दूरगामी रणनीति सफल हो रही है | कुछ आलोचकों की यह धारणा गलत है कि अटल अडवाणी युग की तरह दूसरी पंक्ति के नेता नहीं तैयार हुए हैं | अटल काल में यदि आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी , सुषमा स्वराज , नितिन गडकरी , कल्याण सिंह , राजनाथ सिंह को आगे बढ़ाने के अवसर मिले , तो मोदी के सत्ता काल में अमित शाह , जे पी नड्डा , आदित्यनाथ , शिवराज सिंह चौहान , मनोहर लाल खट्टर , रमन सिंह , देवेंद्र फडणवीस , मोहन यादव , भजनलाल शर्मा , विष्णुदेव साय , नायब सिंह सैनी जैसे नेताओं को राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर अधिकाधिक महत्व देकर भाजपा की जमीन तैयार की है | नायब सिंह सैनी को खट्टर ने , विष्णुदेव को रमन सिंह ने ही तैयार किया | मोहन यादव ने शिवराज सरकार और संगठन में काम के आधार पर जगह बनाई | अब अमित शाह के अलावा राजनाथ सिंह , नितिन गडकरी , शिवराज सिंह , मोहन यादव जमीनी नेता प्रखर वक्ता के रुप में सफल हो रहे हैं और प्रशासन पर भी उनकी अच्छी पकड़ है | उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ संगठन के नेता नहीं रहे , मुख्यमंत्री के रुप में कानून व्यवस्था पर कड़ा नियंत्रण और महंत के नाते धार्मिक मुद्दों पर समाज में उनकी पहचान बनी है | वे अयोध्या , काशी , मथुरा , प्रयाग कुम्भ आदि क्षेत्रों की ओर अधिकाधिक ध्यान देते हैं | असम में हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस से आकर मुख्यमंत्री बने हैं , लेकिन उन्होंने भाजपा की विचारधारा और मोदी शाह के बताए विकास के रास्तों से पूर्वोत्तर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की है |
दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी में पिछले बीस वर्षों के दौरान केवल गाँधी परिवार पर निर्भरता को बढाने के प्रयास अधिक होते रहे | केंद्र में मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री अवश्य थे , लेकिन उनकी जन नेता जैसी न तो छवि रही और न ही चुनावी विजेता की | वह लोका सभा का एक चुनाव लड़कर पराजित हुए तो फिर केवल राज्य सभा में आए | उनको संगठन में कोई रुचि नहीं रही | गाँधी परिवार ने अर्जुन सिंह , दिग्विजय सिंह , कमलनाथ , माधवराव सिंधिया – ज्योतिरादित्य , अशोक गहलोत , राजेश सचिन पायलट , भूपेंद्र सिंह हुड्डा , वीरेंद्र सिंह , शैलजा आदि की आपसी प्रतिद्वंदिता को प्रोत्साहित किया , ताकि उनकी जड़ें मजबूत न हों | तीस वर्षों से उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस अपनी सरकार नहीं बना पाई और संगठन भी कमजोर होता चला गया | पार्टी की हार पर रिपोर्ट देने वाले पुराने ईमानदार नेता ए के एंटनी निराशा में पार्टी छोड़ गए | कर्णाटक में सीतारमैया और शिव कुमार के बीच टकराव आला कमान को लाभ देता है | मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष पद पर हैं , लेकिन फैसले केवल राहुल गांधी और उनके करीबी वेणुगोपाल और जयराम रमेश जैसे नेता लेते हैं | अब प्रियंका गाँधी भी अपनी टीम को अधिक महत्व दिलवाएंगी | बिहार झारखण्ड में लालू यादव और शिबू हेमंत सोरेन के कन्धों का सहारा लेकर सत्ता का कुछ लाभ अवश्य उठा सके | राहुल गाँधी की पीढ़ी के मिलिंद देवड़ा , आर पी एन सिंह , ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता अपनी अनदेखी से निराश होकर भाजपा में चले गए | शशि थरुर , मनीष तिवारी , सचिन पायलट को एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाता है | विभिन्न प्रदेशों की क्षेत्रीय पार्टियों में तो शीर्ष नेता ही सब कुछ है | पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी , बिहार में राष्ट्रीय जनता दल लालू तेजस्वी यादव परिवार , उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव या लोकदल के जयंत चौधरी या बहुजन समाज पार्टी मायावती , तमिलनाडु में द्रमुक के स्टालिन , आंध्र में तेलगु देशम के चंद्रबाबू नायडू , तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति चंद्रशेखर राव परिवार , कर्णाटक में जनता दल सेकुलर एच डी देवेगौड़ा कुमारस्वामी परिवार , हरियाणा में लोकदल चौटाला परिवार , पंजाब में अकाली दल बादल परिवार पर निर्भर है | कम्युनिस्ट पार्टियां तो अंतिम साँसें ले रही हैं | इस दृष्टि से लोकतंत्र में राष्ट्रीय स्तर के एक वैकल्पिक दल का संकट फ़िलहाल खत्म होता नहीं दिखाई देता है |