किसान सरसों फसल लगाकर अधिक लाभ प्राप्त करें

338

किसान सरसों फसल लगाकर अधिक लाभ प्राप्त करें

अजेंद्र त्रिवेदी की रिपोर्ट

शासन द्वारा रबी मौसम में सरसों फसल का रकबा एवं उत्पादन बढाने हेतु विशेष अभियान चलाया जा रहा है। सरसों की फसल किसानों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा रही है, क्योकि इसमें कम सिंचाई एवं लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है।

संरक्षित तकनीकी के अंतर्गत, फसल चक्र अपनाना, जीरो टिलेज, सूक्ष्म सिंचाई, जरूरत के अनुसार भूमि का समतलीकरण, फसल अवशेष प्रबंधन को बढ़ावा आदि प्रक्रिया सम्मिलित है, इन सभी तकनीक के उपयोग से वातारण में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के साथ खाद्य सुरक्षा के लिए भी सरंक्षित खेती अपनानी चाहिए। जवाहर सरसों-2, जवाहर सरसों-3, राज विजय सरसों-2, नवगोल्ड, एन.आर.सी.एच.बी. 101, आर्शिवाद, माया, पुसा जय किसान आदि सरसों की उन्नत शील किस्मों को लगाकर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

सरसों की फसल को बीजजनित बीमारियों से बचाने के लिए बीज उपचार करना अति आवश्यक है। श्वेत कीट एवं मृदुरोमिल आसिता से बचाव हेतु मेटालेक्जिल (एप्रॉन एस.डी.-35) 6 ग्राम तथा तना गलन रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज के साथ उपचारित करें।

सरसों की फसल के लिए 8-10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को बुवाई के कम से कम तीन से चार सप्ताह पूर्व खेत में अच्छी प्रकार से मिला दें। इसके पश्चात मिट्टी की जांच के अनुसार रासायनिक खाद का प्रयाग करें। सामान्यतः 60 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फासफोरस, 30 कि.ग्रा. पोटास एवं 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उर्वरकों का उपयोग करें।

सरसों की बोवनी बिना पलेवा दिये की गई तो पहली सिंचाई 30-35 दिन पर करें। इसके पश्चात अगर मौसम शुष्क रहे तथा वर्षा नहीं हो तो ऐसी स्थिति में 60-70 दिन की अवस्था में जिस समय फल्ली का विकास एवं फलली में दाना भर रहा हो तब करें।

सरसों की बुवाई उचित समय अर्थात 1 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक अवश्य करें। बीज बुवाई के पूर्व मेटालेगाजिल (एप्रॉन 35 एस.डी.) 6 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से बीज उपचार करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर रिडोमिल (एम.जेड़ 72 डब्ल्यू.पी.) अथवा मेनकोजेब 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल में प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। सामान्य सरसों का चेपा दिसम्बर में आता है एवं जनवरी-फरवरी में इसका प्रकोप ज्यादा दिखाई देता है। चेपा सामान्यत: उसकी विभिन्न अवस्था जैसे नवजात एवं वयस्क पौधो के विभिन्न भाग से मधुस्त्राव निकालते है जिससे काले कवक का आक्रमण होता है और उपज कम होती है। प्रभावित शाखाओं को 2-3 बार तोड़कर नष्ट करे देना चाहिए जिससे चेपा को रोका जा सकता है। नीम की खली का 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। कीट का अधिक प्रकोप होने की अवस्था में ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. की 500 उस मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सरसों की फसल लगभग 120-150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है जैसे पौधे की पत्तियां एवं फलियों का रंग पीला पड़ने लगे उस अवस्था में कटाई कर लेना चाहिए। सरसों की उपज मुख्य रूप से फसल प्रबंधन पर निर्भर करती है। यदि अनुशंसित विधि से सरसों की खेती की जाती है तो सामान्यतः सरसों- 20-25 क्विंटल/हेक्टेयर तथा रेप सीड- 14-20 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।