Farmer’s Pain in Book : जहान को किसान का दर्द बताने में जुटा अग्रदूत गुरविंदर सिंह घुमन!

तीन भाषाओं में लिखी एक किताब 'किसान से जहान' यानी किसान है तो जहान है!

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Farmer’s Pain in Book : जहान को किसान का दर्द बताने में जुटा अग्रदूत गुरविंदर सिंह घुमन!

वरिष्ठ पत्रकार और समीक्षक कर्मयोगी का विश्लेषण

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Chandigarh : किसानों की समस्याओं के लिए दिन-रात एक करने वाले गुरविंदर सिंह घुमन ने किसानों की वास्तविक समस्याओं को अनुभव करते हुए तीन भाषाओं में एक किताब लिखी है ‘किसान से जहान’ यानी किसान है तो जहान है। जिस दिन हमें अन्न मिलना मुश्किल हो जाएगा हम विदेशों पर निर्भर हो जाएंगे। हमारी संप्रभुता पर आंच आएगी। गुरविंदर सिंह घुमन ने अपनी कई पीढ़ियों की जमींदारी के अनुभवों को इस पुस्तक में समेटा है।

यह हकीकत है कि आज देश में कृषि घाटे का खेती बन चुकी है। देश में लाखों किसान पिछले कुछ दशकों में जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं। हर रोज कई किसान खेती से मोहभंग के चलते अपना पुश्तैनी कारोबार छोड़ रहे है। तीन कृषि कानूनों के विरोध का आंदोलन नजरअंदाज कर भी दें तो भी आज हर जगह किसान आंदोलित नजर आते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि सरकार की तरफ से प्रयास नहीं किए गए। पिछले दिनों न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि भी की गई। लेकिन सवाल यह है कि कितने किसान इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। दरअसल, छोटी जोत के किसान तो आंसू की खेती ही कर रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी बंटवारे के बाद खेती की जोत छोटी होती जा रही है। जोत छोटी होने से लाभकारी खेती नहीं हो पाती। फिर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से फसलों की उत्पादकता में नकारात्मक असर पड़ रहा है। कृषि के तमाम संकट गहरा रहे हैं। जिसके बीच किसान पिस रहा है।

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ऐसे में एक जागरूक किसान व व्यवसायी गुरविंदर सिंह घुमन अकेले ही इस अंधियारे के खिलाफ मशाल लेकर चल पड़े हैं। वे तमाम मंचों व लेखों के जरिये मूक किसान को आवाज दे रहे हैं। वे सेमिनार कराते हैं, विचार गोष्ठियां कराते हैं। गरीब व बेसहारा लोगों की उदारता से मदद करते हैं। सोशल मीडिया के जरिये मुहिम चलाते हैं। उनका मानना है कि किसान को जिस दिन उपज का न्यायसंगत मूल्य मिलने लगेगा तो सही मायनों में उनके दुख दूर हो जाएंगे। उन्होंने अपने सुझाव प्रधानमंत्री व कृषि मंत्री को भेजे हैं। उनका मानना है कि बाजार की विसंगतियां व बिचौलियों का खेल किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने देता। मुद्रास्फीति और विपणन की नीतियों में बदलाव से किसान ठगा जा रहा है। वे बाजार की मार से लाचार किसान को राहत दिलाने के लिये लगातार मुहिम चला रहे हैं।

गुरविंदर सिंह घुमन का मानना है कि हमारा अपूर्ण बाजार किसान की सभी दिक्कतों की वजह है। किसानों की भंडारण क्षमता कम होने के कारण उन्हें फसल काटने के बाद तुरंत मंडियों की तरफ दौड़ना पड़ता है। उसे पिछले कर्जे चुकाने होते हैं जो उसने बीज, खाद व कीटनाशकों के लिये उठाये थे। उसे अपने घर के खर्चे व सामाजिक दायित्व भी निभाने होते हैं। उसकी इस मजबूरी का लाभ बिचौलिये और आढ़ती उठाते हैं। वे उसकी खून-पसीने की कमाई को औने-पौने दाम में खरीदते हैं। जिससे किसान को उसकी फसल का वाजिब दाम नहीं मिल पाता। दरअसल, किसान बाजार में अपनी लाचारी बेच रहा होता है। ये लाचारी ही उसे गरीब बनाए रखती है।

किसानों की समस्याओं के लिए दिन-रात एक करने वाले गुरविंदर सिंह घुमन ने किसानों की वास्तविक समस्याओं को अनुभव करते हुए एक किताब लिखी है ‘किसान से जहान’ यानी किसान है तो जहान है। जिस दिन हमें अन्न मिलना मुश्किल हो जाएगा हम विदेशों पर निर्भर हो जाएंगे। हमारी संप्रभुता पर आंच आएगी। गुरविंदर सिंह घुमन ने अपनी कई पीढ़ियों की जमींदारी के अनुभवों को इस पुस्तक में समेटा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पुस्तक न केवल हिंदी में आई है, बल्कि उसके पंजाबी व अंग्रेजी संस्करण भी आए हैं। जिससे इस पुस्तक की पहुंच बढ़ गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसानों के हितों के लिये जुनून के स्तर पर समर्पित गुरविंदर सिंह घुमन ने ये पुस्तक खुद के खर्चे में छपवायी है और लोगों को जागरूक करने निकल पड़े हैं।

निस्संदेह, ऐसे वक्त में जब लोग स्वांत: सुखाय के लिए किताबों की रचनाओं में रत हैं, गुरविंदर सिंह घुमन ने किसानों की गहरी टीस को महसूस करते हुए उसे किताब का रूप दिया है। निश्चय ही इस दर्द का शब्दाकंन एक ऋषि कर्म ही कहा जाएगा। आये दिन किसान सड़कों पर उतरते रहे हैं। किसानों की विभिन्न मांगों संग, सबसे बड़ा मुद्दा कृषि उपजों का न्यायसंगत मूल्य पाना होता है। घुमन किसानों के दर्द को गहराई तक महसूस करते हैं। वे किसान भी हैं, इसलिए कृषि के परिवेश की तमाम विद्रूपताओं को गहरे तक जानते हैं। उनके शब्दों किसान के दुख-दर्द के गहरे निहितार्थ हैं।

दरअसल, गुरविंदर सिंह घुमन वर्षों से विभिन्न मंचों से किसानों की समस्याओं को उठाते रहे हैं। वे शासन-प्रशासन का ध्यान उन विसंगतियों की ओर दिलाते रहे हैं, जिसके चलते किसान को उसकी खून-पसीने की उपज का न्यायसंगत मूल्य नहीं मिल पाता। ऐसे ही किसानों से जुड़े तमाम मुद्दों को रेखांकित करते हुए ही उन्होंने पुस्तक ‘किसान से जहान’ छपवायी है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यह पुस्तक अंग्रेजी में ‘सोअर ऑफ लाइफ’ और पंजाबी में ‘किसान नाल जहान’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इस प्रयास से पुस्तक के पाठकों का दायरा विस्तृत हुआ है।

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वे किसानों के मुख्य मुद्दों को हिंदी के साथ ही अंग्रेजी व पंजाबी के पाठकों तक पहुंचाने में सफल रहे हैं। दरअसल, खेती-किसानी व कारोबार से जुड़े गुरविंदर सिंह घुमन ने किसान के दर्द को करीब से महसूस किया है। उनका मानना है कि हमारी खरीद प्रणाली की विसंगतियां व बाजार की अपूर्णता से किसान को उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पाता है।

पुस्तक में बाजार की अपूर्णता से हलकान होते किसान, आंदोलन और समाधान, दोषपूर्ण बाजार से जीविका-जीवन के संकट, किसानों को सुनें फिर गुनें, दुखों की खेती करता है किसान, आय में गिरावट से बदहाली, उचित कीमत तय करने की चुनौती, घाटे के चलते किसानी से मोहभंग, जीने लायक तो हो आय, न्याय की कसौटी पर तो खरा उतरे मूल्य निर्धारण, न्यूनतम समर्थन मूल्य की हकीकत, बाजार अनियंत्रित फेल सब्सिडी का मंत्र, मौत को गले लगाता अन्नदाता, किसानों को राहत का स्थायी तंत्र, बाजार में सुधार से बढ़ेगी आय, कृषि के छिप-ढके बड़े संकट, स्तब्ध करने वाली हानि, किसान को सशक्त करने की दिशा में हो काम, बदहाली के बीज, हकीकत बने सिफारिशें, देश भी उठाये पराली निस्तारण का खर्च, छोटी जोत बने लाभकारी, सुधारों पर श्वेत-पत्र लाएं और समाधान सरकार के पास है आदि शीर्षकों से किसान के दर्द की जीवंत तस्वीर उकेरी गई है।