Fasting Festivals Only For Women: महिलाओं के व्रत- ग़ैर बराबरी का दायित्व                                    

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Fasting Festivals Only For Women: महिलाओं के व्रत- ग़ैर बराबरी का दायित्व 

                                

बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एवं यहाँ के रहने वाले लोग जो अन्य क्षेत्रों में बसे हैं, उनके द्वारा छठ का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह त्योहार पूरे परिवार की सुख शांति और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए मनाया जाता है। 36 घंटे का यह निर्जल व्रत अत्यंत कठिन व्रत है। यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। पांडवों के दुर्दिनों में श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। मुख्य बात है कि यह व्रत महिलाओं के लिए अनिवार्य है, परन्तु पुरूषों के लिए वैकल्पिक है।

अभी कुछ ही दिनों पहले भारत में करवा चौथ का व्रत था। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और मंगल की कामना के लिए रखा जाता है। प्रात: से चंद्र दर्शन तक यह व्रत रखा जाता है। महिलाओं के लिए यह व्रत रखना अनिवार्य है।

इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा अपने पति के लिये और भी प्रकार के व्रत अथवा पूजा की जाती हैं। पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए मार्कण्डेय पूजा करने से लाभ होता है। मार्कण्डेय भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त ऋषि थे और उनका जन्म ही भगवान शिव के वरदान के रूप में हुआ था। पति के उत्तम स्वास्थ्य और जीवन के लिए भगवान अयूर की भी पूजा की जाती है। पति की उन्नति के लिए पत्नी माता पार्वती की पूजा भी करती हैं। इससे वैवाहिक जीवन में प्रसन्नता आती है। उत्तर भारत में वट सावित्री ( बरगद अमावस्या )का व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसमें बरगद की पूजा की जाती है और उस पर सूत का धागा लपेटा जाता है।

अविवाहित महिलाओं के लिए अच्छा पति प्राप्त करने के लिए भी अनेक उपाय बताए गए हैं। अच्छा पति प्राप्त करने के लिए अविवाहित महिलाएँ सोमवार को उपवास रखती हैं।

भारत में पति और परिवार की सुख एवं समृद्धि के लिये ये अनेक परम्परागत धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इन समस्त उपायों को करने का उत्तरदायित्व केवल महिलाओं पर है। विश्व की सभी संस्कृतियों की तरह भारत में भी परंपरागत रूप से महिलाओं को सामाजिक समानता नहीं दी गई है। उनकी सामाजिक भूमिका को स्वीकार नहीं किया गया है तथा वे केवल परिवार की सुविधा के लिए है। महिलाओं के अनेक प्रकार के व्रत और रीति रिवाज़ केवल पति और परिवार की सुख समृद्धि के लिए हैं। उनका अपना कोई विशेष अस्तित्व नहीं है। महिलाओं के इन उपक्रमों के हितग्राही पुरुष तथा परिवार के अन्य सदस्य होते हैं। महिलाओं की सुख- समृद्धि के लिये संभवतः कोई विचार नहीं किया गया है। सभी धर्मों की तरह ही हिंदू धर्म भी पितृसत्तात्मक समाज की स्थापना करना चाहता है और इसमें वह सफल भी रहा है। हिंदू धर्म में महिलाओं का सम्मान तो किया गया है, परंतु उन्हें बराबरी की श्रेणी नहीं दी गई है। यह स्थिति हमारे व्यावहारिक जीवन के हर पहलू में स्पष्ट दृष्टिगत होती है।

आधुनिक शिक्षा के प्रसार तथा समान अवसर प्राप्त होने के कारण कुछ महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ है। महिलाओं को समानता के अधिकार प्राप्त करने में अपने घर से लेकर भारत की संसद तक सभी स्थानों पर अवरोधों का सामना करना पड़ता है। फिर भी हर्ष का विषय है कि अनेक महिलाएँ अपने व्यक्तित्व की उन्नति के लिए अब अग्रसर हो रही हैं।