Father’s Day Special: बाप होना ,ख़ासकर अच्छा बाप होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम!

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Father’s Day Special: बाप होना ,ख़ासकर अच्छा बाप होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम!

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मुकेश नेमा की खास रिपोर्ट 

बाप होना ,ख़ासकर अच्छा बाप होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है।पता नही अब तक दुनिया मे किसी लड़के को अच्छा बाप मिला भी है या नही ,हाँलाकि हर बाप अपनी तरफ़ से अच्छा होने की कोशिश करता है पर मेरे ख़्याल से तो बाप जीते जी तो अच्छा बाप हो ही नही सकता।मर जाये बाप तो लड़का तेरहवीं वग़ैरा से फ़ुर्सत होने के बाद तसल्ली से सोच विचार कर उसमे कुछ अच्छाइयाँ तलाश करने की कोशिश करता है।जो लोग मिलने आते है ,उनसे बाप की तारीफ़े सुनता है ,सुनता है और हैरान होता है।उसे भी लगने लगता है कि हो ना हो वो अच्छे आदमी ही थे।बाप मे अच्छाइयाँ तलाश लेना बडा मुश्किल काम है। पर बाप के छोड़े मकान ,दुकान थोड़ी बहुत श्रद्धा तो जगा ही देते है बाप के प्रति ,लड़का थोड़ा भला हो तो बाप के कभी कभार मुस्कुराने को भी बाप के अच्छे दिल का प्रमाणपत्र मान लेता है।

 

जब तक आपके बाप मौजूद होते हैं ,आप सिटपिटाये और वो सन्नाये से रहते हैं ,और जब आपका बेटा आपके जूतों मे पाँव डाल देता है तो आपकी अपने बेटे से ठन जाती है ,आपके बाप ने आपको सुधारने के लिये जो जो नुस्ख़े आज़माये थे वे आप अपने बेटे पर आज़माना चाहते है ,वो सारी उम्मीदें लगा लेते हैं उससे ,जो आपके पिताजी ने आप से लगाई थी ,और उन्हें पूरा ना होते देख भुनभुनाते हुये मरे थे।जब ज़िंदगी की दुपहरी मे सोचते हैं आप तो पाते है कि आप अच्छे बेटे तो नही ही हो सके और अच्छा बाप होना भी आपके बस की बात नही थी।

 

उम्मीदें अकेला बाप ही नहीं लगाता।बेटा भी उम्मीदें लगाये रहता है।उसे लगता है कि उसका बाप उसकी दिक़्क़तों के हर ताले की चाबी है ।वो चाहता है कि बाप चाबी हो।पर बाप इंसान होता है ,बहुत बार बेटे के सामने पेश आ रही दिक़्क़तों के सामने घुटने टेक देता है और ऐसे में बेटा भी नाराज़ हो लेता है।नालायक औलाद नाराज़ होने के बाद अपने बाप को बाप होने से बेदख़ल कर देती है और बाप बिसूरता ज़िंदगी काटता है।

 

हर बेटा कुछ ना कुछ बन ही जाता है पर आमतौर पर वो नही बन पाता तो उसके बाप ने सोच रखा था।कई बार बेटा वाक़ई कुछ बन जाता है ऐसे में बाप का मन उसके बनने का क्रेडिट लेना चाहता है।बहुत बार जमाने के साथ साथ खुद लड़का इसके लिये राज़ी नहीं होता ,और फिर दोनों ही एक दूसरे से अनमने बने रहते है।

 

सुना है बाप और बेटे का रिश्ता तीर कमान सा होता है।बाप होता है कमान और बेटा होता है तीर।कमान की प्रत्यचां का तनाव सही हो तभी तीर सही निशाने पर लगता है।पर हम हिंदुस्तानियों का रोना तो ये है कि ना हमारे बाप तीरंदाज़ हो सके और ना ही हम इस काम मे पारागंत होकर दिखा सके।

 

ये सारा खेल बस उम्मीदों का है।हम बेटे से वो होने की उम्मीद करते है जो हम ख़ुद नही हो सके।बेटे की मंशा कभी पूछते ही नही हम।बेटे मे ख़ुद को देखते है और ये भी चाहते है वो हमारी सारी कमज़ोरियों से मुक्त हो।उसकी कोई भी कमज़ोरी आपको अपने फ़ेल होने ,चूक जाने का अहसास कराती है।आप उस पर नही ख़ुद पर नाराज़ होते हैं और उसी तरह नाराज़ बने रहते हैं जैसे आपके बाप हमेशा बने रहे थे।

 

आप भी ऐसे ही है ना।होगें ही।और कुछ हो भी नही सकता।इसे लेकर ज़्यादा हैरान भी ना हों , इस मामले में ना ही हमारे बाप कुछ कर सके थे ना ही हम कर सकेंगे।