‘मीडियावाला’ के संपादक हेमंत पाल की त्वरित टिप्पणी
बीते दो दिनों में सीहोर में जो कुछ हुआ, वो अप्रत्याशित नहीं था। रुद्राक्ष महोत्सव में जिस तरह की भीड़ उमड़ी और बदइंतजामी हुई, वो होना ही था। क्योंकि, पिछले साल भी यही हुआ था। लेकिन, सीहोर के प्रशासन ने उससे कोई सबक नहीं सीखा। आश्चर्य की बात तो ये कि इस बार भी वही सब होने दिया। ये एक धार्मिक आयोजन था, जिसके लिए पुख्ता इंतजाम करना प्रशासन की जिम्मेदारी होता है। लेकिन, प्रशासन का दायित्व सिर्फ पंडित प्रदीप मिश्रा या उनके रुद्राक्ष महोत्सव तक ही सीमित नहीं था! आम लोगों को इस आयोजन से कोई परेशानी न हो, ये देखने का काम भी प्रशासन का ही है।
ये कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं थी। क्योंकि, पिछले साल भी इसी तरह रास्ता जाम हुआ, लोग परेशान हुए थे। उसके बाद रुद्राक्ष वितरण रोकना पड़ा था। इस बार भी वही अव्यवस्था हुई, बल्कि उससे कहीं ज्यादा हुई। लेकिन, लगता है पर प्रशासन ने पिछली घटना से कोई सबक नहीं सीखा और न ऐसे इंतजाम किए कि पिछले साल जैसी बदइंतजामी न हो! पर, ऐसा कोई कदम उठाया गया हो, ऐसा कुछ लगा नहीं!
प्रशासन ने इंदौर-भोपाल रास्ते को पहले से ही कई जगह से बदलने का फरमान जारी कर दिया था। इसी से लग गया था कि आगे क्या होने वाला है। किसी एक धार्मिक आयोजन के लिए उन हजारों लोगों को परेशान करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता, जिनका इस आयोजन से कोई वास्ता नहीं था। जिला प्रशासन रुद्राक्ष महोत्सव को रोकने की स्थिति में नहीं था, पर वो व्यवस्था करने में भी नाकाम रहा। 10 लाख लोगों के पहुंचने का अंदाजा प्रशासन को भले न हो! लेकिन, जितना भी अंदाजा लगाया गया था, व्यवस्थाएं उसके लिए भी नाकाफी ही लगी!
जब बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर भीड़ उमड़ रही थी, उसी से अंदाजा लगा लिया जाना था कि ये भीड़ जब आयोजन स्थल पहुंचेगी, स्थिति क्या होगी। प्रदीप मिश्रा रुद्राक्ष वितरण करने वाले हैं, यह उनका व्यक्तिगत धार्मिक आयोजन है। इसके लिए प्रशासन ने जिस तरह पलक पांवड़े बिछाए वो सही नहीं माना सकता! अब भले ही प्रशासन भीड़ की वजह से व्यवस्था भंग होने की आड़ लेकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहे, पर वो जो हुआ उस जिम्मेदारी से बच नहीं सकता!
भीड़ के कारण तीन हजार लोगों का बीमार होना, एक महिला की मौत हो जाना, हजारों लोगों का परेशान होना व्यवस्थागत खामी के अलावा और कुछ नहीं है। पंडित प्रदीप मिश्रा रुद्राक्ष बांटने वाले हैं और लोग उन्हें लेने आने वाले हैं, इसके लिए इंतजाम न होने का दोषी किसी और को नहीं ठहराया जा सकता! जबकि, इस आयोजन में मुख्यमंत्री के आने की भी जानकारी थी, फिर भी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई।
रुद्राक्ष वितरण भी भारी अव्यवस्था के बाद रोका गया, जिसे पहले ही रोका जाना था या उसे होने ही नहीं दिया जाना था। प्रशासन कि इसके पीछे क्या मंशा थी यह तो स्पष्ट नहीं है! लेकिन, प्रशासन या तो पंडित प्रदीप मिश्रा से डरा हुआ है या वह कोई ऐसा कदम नहीं उठा रहा, जिससे कोई नाराज हो! ये नाराजगी किसकी हो सकती है, इसे समझा जा सकता है। लेकिन, वहां न आने वाली और रुद्राक्ष की चाह न रखने वाली जनता को बेवजह परेशान क्यों किया गया।
पिछले साल जब सीहोर में शिव महापुराण की कथा हो रही थी, उस समय भी रुद्राक्ष उत्सव का आयोजन किया था। लेकिन, रुद्राक्ष वितरण का कार्यक्रम प्रशासन ने बीच में ही बंद कराया था। क्योंकि, लाखों की भीड़ में प्रदीप मिश्रा ने बाल्टी के पानी में से मुट्ठी भर रुद्राक्ष निकालकर भीड़ पर फेंक दिए। इसके बाद वहां भगदड़ जैसे हालात पैदा हो गए। माना कि पिछले साल हो सकता है पंडित प्रदीप मिश्रा को आने वालों की संख्या का अनुमान न हो! लेकिन, इस बार प्रशासन को भी जानकारी थी और पंडित प्रदीप मिश्रा को भी। लेकिन, जब बुधवार को भीड़ ज्यादा बढ़ने लगी तो रुद्राक्ष वितरण एक दिन पहले शुरू कर दिया गया। लेकिन, अगले दिन जब 10 लाख लोग इकट्ठा हो गए और हालात बेकाबू हो गए तो भी रुद्राक्ष वितरण रोका नहीं गया। जब तक कि एक महिला की मौत नहीं हो गई और 3 हजार लोग बीमार नहीं हो गए!
लगातार दूसरे साल प्रशासन व्यवस्था करने में नाकाम रहा है। अब आगे इन दो घटनाओं से सबक लेकर प्रशासन को सख्त फैसले लेने होंगे! क्योंकि, सभी लोग रुद्राक्ष की चाह रखने वाले नहीं होते! इंदौर-भोपाल के रास्ते से गुजरने वालों को उससे भी जरूरी बहुत से काम होते हैं! प्रशासन सिर्फ पंडित प्रदीप मिश्रा के रुद्राक्ष महोत्सव इंतजाम करने नहीं है, उससे आम लोगों तकलीफ को भी समझना होगा!