Ficus Benghalensis: कुछ ख़ास है कुछ पास है: बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा ” माखन कटोरी पेड़”

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अजब-गजब   Ficus benghalensis

Ficus Benghalensis: कुछ ख़ास है कुछ पास है: बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा ” माखन कटोरी पेड़”

महेश बंसल, इंदौर
लो कर लो बात .. अब यह नया शगूफा.. माखन कटोरी पेड़ .. लेकिन शगूफा समझना मेरी भी अज्ञानता ही होगी .. लेकिन आप भी तो आश्चर्यचकित हो गए ना … मुझे भी पहली बार मालूम हुआ तो लगा कि यह जानकारी फेक होगी, लेकिन गुगल महाशय की शरण में जाने पर अहसास हुआ कि ऐसा भी पेड़ होता है .माखन कटोरी पेड़ को वट वृक्ष की एक दुर्लभ प्रजाति माना जाता है. इसका बोटैनिकल नाम फ़िकस बेंगालेंसिस (Ficus benghalensis) है विलुप्त प्रजाति के इस वट वृक्ष के पेड़ भारत में अब भी कई स्थानों पर मौजूद है। इसके प्रसार हेतु प्रयास भी जारी है।
खोजबीन के दौरान मालूम हुआ कि उत्तराखंड, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश सहित और कुछ राज्यों में इसके पेड़ है। लेकिन कहावत है ना कि – “बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा” ऐसा ही कुछ हुआ। देश में लगे पेड़ों की जानकारी के बाद पता लगा कि मित्र के यहां ही नर्सरी पाट में ही यह पौधा लगा हुआ है, जिसे कटिंग से तैयार किया था। जिसे चित्र में देख सकते है।
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माखन कटोरी अथवा मक्खन कटोरी .. यह नाम वट वृक्ष की प्रजाति Ficus benghalensis (फिकस बेंघालेंसिस) को कैसे मिला ? इसकी पौराणिक कथा ग्रामीण अंचलों में बताईं जाती है। मक्खन सुनते ही कृष्ण का स्मरण आता है। भगवान कृष्ण को मक्खन बहुत प्रिय था, अतः अपने हेतु को प्राप्त करने के लिए किसी के भी घर से किसी भी तरह मक्खन लाकर अपनी क्षुधा को तृप्त कर लेते थे। इसीलिए उन्हें माखनचोर भी कहा गया है। अपना बेटा माखन की चोरी करें, भला माता यशोदा को कैसे मंजूर हो सकता था । अतः कृष्ण को यशोदा का कोप भाजन होना पड़ता था। मां यशोदा रंगे हाथ पकड़ न सके, इसके लिए कृष्ण चुराएं गए मक्खन को इसके वृक्ष में लटक रहे पत्तों में लपेट देते थे।
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ऐसा माना जाता है कि इस घटना के बाद पेड़ के पत्तों ने प्याले का आकार ले लिया और तब से यह उसी आकार में है जिस आकार में कृष्ण ने इसे लपेटा था। छोटे पत्ते जरूर चम्मच आकार के रहते है। एक बार रंगे हाथ पकड़े जाने पर जब माता यशोदा कृष्ण को डांट रही थीं, उस समय हाथ में रखा मक्खन पिघलकर जमीन पर बहने लगा। इसी तरह पत्ते को तोडा़ जाता है तो पत्ते के आधार से लेटेक्स – दूध के रंग का रस – निकलता है। यह पदार्थ बिल्कुल वैसे ही मक्खन की तरह दिखाई देता है । कृष्ण भक्त यह भी मानते हैं कि पत्तों को तोड़ने पर आज भी भगवान श्रीकृष्ण द्वारा छुपाया गया मक्खन निकलता है। इस वृक्ष को अनेक नामों से भी पुकारा जाता है, जैसे फिकस कृष्णा, कृष्णा अंजीर, कृष्णा बटर कप, कृष्णा इत्यादि.यह पेड़, अपेक्षाकृत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करता है और ऑक्सीजन छोड़ता है। मप्र के सागर में स्थित डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यायल के बॉटनीकल गार्डन में  कृष्णबट लगा है। विभाग के अधिकारियों के अनुसार करीब 6 दशक से अधिक समय से यह मौजूद है।यह वृक्ष 12 महीने हरा भरा रहता है।

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महेश बंसल, इंदौर
Scientific name: Ficus krishnae
Synonyms: Ficus benghalensis var. krishnae
(आपने जहां भी इस पेड़ को देखा हो , उस स्थान की जानकारीअवश्य देवें)