फिल्म समीक्षा : सम्राट पृथ्वीराज केसरिया झंडा लिए जुबां केसरी वाले ‘सम्राट पृथ्वीराज’

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फिल्म समीक्षा : सम्राट पृथ्वीराज केसरिया झंडा लिए जुबां केसरी वाले ‘सम्राट पृथ्वीराज’

सम्राट पृथ्वीराज में अक्षय कुमार सम्राट पृथ्वीराज के अलावा सबकुछ लगते हैं। राजेश खन्ना के दामाद, टि्वंकल खन्ना के पति, खिलाड़ी, छिछौरे हीरो की तरह। फिल्म में अक्षय कुमार से ज्यादा निर्देशक चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की झलक मिलती है। संजय दत्त इस फिल्म में पृथ्वीराज के काका के बजाय मुन्ना भाई ही लगे। 2017 की मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर ने फिल्म में अपनी छाप छोड़ी हैं। अक्षय कुमार अपनी बार-बार खिलाड़ी की छवि लेकर ही आते हैं। आमिर खान जैसा धीरज उनमें नहीं हैं।

सम्राट पृथ्वीराज रासो की कहानी कितनी सच है और कितनी काल्पनिक इस बारे में अलग-अलग मत हैं। यशराज फिल्म्स ने भी शुरू में ही साफ कर दिया कि यह फिल्म पृथ्वीराज चौहान के बारे में उपलब्ध साहित्य के आधार पर बनाई गई है। कोर्ट में दिए गए हलफनामे में यशराज ने कहा कि यह फिल्म केवल पृथ्वीराज पर केन्द्रित है, जबकि वास्तविकता यह है कि इसमें भी हिन्दुत्व का ही केसरिया फहराया गया है। इसीलिए कई राज्यों ने इसे मनोरंजन कर से मुक्त कर दिया है।

फिल्म का सबसे अच्छा पहलू उसके संवाद हैं, जिन्हें निर्देशक चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने ही लिखा है। जैसे–

–       सरहदें सम्राटों के लिए होती हैं, सौदागरों के लिए नहीं।

–       हुकूमत जज्बातों से नहीं, तलवारों से होती है।

–       चार हिन्दुस्तानी तभी साथ-साथ चलते हैं, जब पांचवां उनके कंधे पर हो।

–       धर्म को हमेशा स्त्री ने संभाला है और पुरूष ने तोड़ा है।

–       जुगनूओं को लगता है कि उन्होंने सूरज को कैद कर लिया है, पर जुगनूओं ने सूरज को देखा भी नहीं।

फिल्म को देखते समय लगता है कि झूठी आन-बान और शान के नाम पर राजपूत शूरवीरों ने किस तरह लड़ाइयां हारीं। हर लड़ाई को वे धर्मयुद्ध का नाम दे देते थे। फिल्म देखते हुए कई बार लगता है कि इतिहास के सबसे घृणित माने जाने वाले जयचंद शायद उतने घृणित नहीं थे। यहीं आकर फिल्म का उद्देश्य थोड़ा विफल हो जाता है। सोनू सूद ने पृथ्वीराज के खास चंद बरदाई की भूमिका निभाई है और शानदार तरीके से निर्वाह किया है।

फिल्म देखते वक्त लगता है कि अगर पृथ्वीराज की भूमिका में अक्षय कुमार की जगह संजय दत्त होते, तो फिल्म कुछ और एहसास कराती (संजय दत्त ने पृथ्वीराज के काका कान्हा का रोल किया है)। आशुतोष राणा ने जयचंद के रूप में अच्छी खलनायिकी की है और साक्षी तंवर उनकी पत्नी के रूप में कभी महारानी लगती हैं और कभी एक साधारण महिला। राजपूत महारानी वाला ठस्का वे फिल्म में नहीं दिखा पाई।

फिल्म समीक्षा : सम्राट पृथ्वीराज केसरिया झंडा लिए जुबां केसरी वाले ‘सम्राट पृथ्वीराज’

पृथ्वीराज और संयोगिता की कहानी यशराज की फिल्म के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। फिल्म में बहादुर राजकुमार हैं, विश्व सुंदरी राजकुमारी है, सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार आता है और राजकुमारी को उठाकर ले जाता है। राजा होते हुए भी राजकुमारी का पिता कुछ कर नहीं पाता। राजसूय यज्ञ के किस्से हैं। अर्जुन, कर्ण, श्रीकृष्ण, दशानंद आदि के चर्चे हैं और पृथ्वीराज की शर शैया है।


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फिल्म में दिखाने के लिए हाथी, घोड़े, शेर, ऊंट और लम्बी चौड़ी सेनाएं हैं, जिन्हें वीएफएक्स से तैयार किया गया। हिन्दी फिल्मों में बहादुरी का मतलब शेर का सामना करना ही होता है। इस फिल्म में हीरो 3 शेरों से सामना कर रहा है और मोहम्मद गौरी से भी। यशराज की फिल्म है, तो इसमें गाने तो होंगे ही। कई जगह गाने जबरदस्ती ठूंसे गए लगते हैं। निर्देशक का दावा है कि इस फिल्म के लिए उन्होंने 18 साल तक रिसर्च वर्क किया। फिल्म हिन्दी के अलावा तमिल और तेलुगु में भी बनी है। मजेदार बात यह है कि जिस राज्य के पृथ्वीराज कभी शासक थे। उस राज्य ने इस फिल्म को टैक्स फ्री नहीं किया।

यशराज की फिल्मों का एक दर्शक वर्ग है, उसे यह फिल्म पसंद आएगी। मानुषी छिल्लर के लिए भी यह फिल्म देखी जा सकती है। हाथी, घोड़े, शेर आदि बच्चों को पसंद आएंगे। इसलिए इस फिल्म को बच्चों के साथ भी देखा जा सकता है। कुल मिलाकर यह फिल्म चाशनी में डूबी हुई मंच्यूरियन की तरह है। पता नहीं चलता कि यह भारतीय मिठाई है या मिलावटी।