Film Review: बचकानेपन की इन्तेहाँ – थामा 

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Film Review: बचकानेपन की इन्तेहाँ – थामा 

 

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी 
थामा फिल्म गेलियेपने की हद है। बेतर्की, बेकहानी, बेवक़ूफियाने से भरी।  ईसा पूर्व 323 से शुरू होकर 2025 तक की कहानी। इसमें भूत, प्रेत, पिशाच, वैम्पायर सभी हैं। फिल्म में इन्हें बेताल बताया गया है।  कल्पना कीजिए कि नेशनल क्रश रही रश्मिका मंधाना के बड़े-बड़े, खेबड़े दांत हैं और वह जिन्दा जानवर खाती है, इंसानों का खून पीती है।  नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी उसका बड़ा वाला है, बेचारा आयुष्मान भूत नहीं है, इंसान है, टेपा टाइप का।   ये सब भूत लोग जातिवादी हैं।  कभी नहीं मरते।  ये मोहब्बत भी भूत जाति  में ही कर सकते हैं। यहीं पेंच है भिया !  
 
पेंच ये कि भूतनी रश्मिका को मानव जाति के भूतपूर्व विक्की डोनर यानी आयुष्मान से प्यार हो जाता है।  क्यों और कैसे, यह उसी भूत से पूछो। अब तक हमने हिंदी फ़िल्मी मोहब्बत में जाति और धर्म की दीवारें ही देखी  हैं। अब तो ये दीवार चीन की दीवार से भी  बड़ी है। पर भूतनी का प्रेम सच्चा है। वह अपने प्रेमी को भूत बना देती है। वह न केवल अपने प्रेमी से दम लगाके हईशा करती है, बल्कि नये वाले भूत राजा से लड़ती भी है। अंत में वही -शुभ मंगल सावधान होता है। 
इस पिच्चर में आयुष्मान खरना, रश्मिका मंधाना, परेश रावल, नवाजुद्दीन की प्रतिभा का दुरुपयोग किया गया है। फिल्म के गाने वाहियात है।  पार्श्व संगीत के नाम पर भड़भड़कूटा है। इस फिल्म को निर्माता ने रोमांटिक कॉमेडी बताया है। वास्तव में यह आपकी सब्र का इम्तिहान है। 
 
अझेलनीय !