अंततः नाथ को छोड़ कमल के हुए सरदार …

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अंततः नाथ को छोड़ कमल के हुए सरदार …

इंदौर में खालसा कालेज के कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के शामिल होने के बाद आई अपमान की सुनामी आखिरकार 17 दिन बाद शांत हो ही गई। अभी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा इंदौर नहीं पहुंच पाई थी और नाथ के खासमखास, मीडिया समन्वयक रहे सिख नेता नरेंद्र सिंह सलूजा कमल दल के हो गए। 25 नवंबर 2022 को सुबह-सुबह सीएम हाउस में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सलूजा को भाजपा की सदस्यता दिलाई, तो शाम को इंदौर में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा सलूजा के साथ मीडिया से मुखातिब हुए। इंदौर में जिस‌ सिख समाज ने नाथ पर निशाना साधा था, उसी सिख समाज ने सलूजा के भाजपा में आने की खुशी में वीडी शर्मा‌ का अभिनंदन किया।
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 दरअसल कांग्रेस में सलूजा के अच्छे दिन तब ही विदा हो गए थे , जब इंदौर के ही कद्दावर नेता केके मिश्रा को सम्मानजनक स्थान देते हुए कांग्रेस मीडिया विभाग का अध्यक्ष बनाया गया था। नए सिरे से कांग्रेस प्रवक्ताओं की जो सूची जारी हुई थी, उससे सलूजा को पहली बार अपमानित होने की दुर्गंध आई थी। इसका विरोध उन्होंने अपने तरीके से जताया था, तो अनुशासनात्मक कार्यवाही का शिकार हुए थे। पर कुछ अरसे बाद सलूजा को कांग्रेस में फिर स्थान मिल गया था। और उन्होंने कमलनाथ की हर गतिविधि की जानकारी पहले से ज्यादा आक्रामकता के साथ साझा कर सोशल मीडिया को नाथमय‌ कर दिया था। वहीं भाजपा सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्री तक पर निशाना साधने का सलूजा का अंदाज निराला और मारक था। जो आपा खोने को मजबूर करता था। हालांकि नेता आसानी से आपा नहीं खोते। पर हुआ वही, जिसे टालने की कोशिश सलूजा ने भी की थी और कमलनाथ के मन में भी शायद सलूजा के लिए जगह थी और उन्होंने सम्मान जताया था। पर इंदौर में कीर्तनकार कानपुरी ने जितने भद्दे‌ शब्दबाण से नाथ का अपमान किया, उसकी सजा ने पहले सलूजा को दूसरी बार अपमान का घूंट पीने को मजबूर किया और बाद में कांग्रेस को ठेंगा दिखाकर सरदार सलूजा नाथ को धता बताते हुए कमल के हो गए। 25 नवंबर 2022 को आखिरकार यह तय हो गया कि कमलनाथ के खिलाफ आगामी विधानसभा चुनाव में मंचों से सिख समाज को आहत करने के खिलाफ भाजपा का हमलावर चेहरा सरदार नरेंद्र सिंह सलूजा होंगे। और उनकी खड्ग अब शब्दबाण से ही सही, कांग्रेस के दिग्गजों को रक्तरंजित करने से बाज नहीं आएगी।
25 नवंबर के दो दृश्य देखिए कि जब ओंकारेश्वर में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ माँ नर्मदा का पूजन कर रहे थे…तब इंदौर में भाजपा कार्यालय में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा‌ के एक तरफ प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर और दूसरी तरफ नाथ को तिलांजलि देकर कमल के हुए नरेंद्र सिंह सलूजा उस पत्रकार वार्ता के साक्षी बने, जिसमें यह दावा किया जा रहा था कि 84 के दंगों पर भजन गायक की खरी-खोटी से खालसा कॉलेज के कार्यक्रम में जब आंखें खुलीं तो  धर्म-संस्कृति की खातिर सलूजा भाजपा के हुए हैं। यह बड़ा बदलाव है। कांग्रेस ने भी 25 नवंबर को 13 नवंबर का वह पत्र जारी किया है जिसमें सलूजा को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित करने की जानकारी है। सवाल वही कि इस पत्र को पहले जारी क्यों नहीं किया गया। हो सकता है कि नाथ के मन में सलूजा के प्रति कोमल कोना रहा हो और कुछ उम्मीद भी बची हो। वैसे देखने की बात‌ यह भी है कि कांग्रेस में रहते हुए सलूजा और भाजपा नेता लोकेंद्र पाराशर की दोस्ती के खूब चर्चे रहे हैं, अब भाजपा में नरेंद्र-लोकेंद्र की दोस्ती क्या गुल खिलाती है…।
सलूजा ने भाजपा में आने के बाद जो दर्द बयां किया, वह यह है कि इंदौर खालसा कॉलेज में हुए घटनाक्रम के बाद 84 दंगो का सच जो सामने आया, उसके बाद मेरा मन व्यथित हुआ। मैं जिस धर्म में आस्था रखता हूं, उस धर्म के मेरे लोगों की हत्या के आरोपियों के सच ने मेरी आँखें खोल दीं। मैं ऐसे संगठन के साथ कार्य नहीं कर सकता। खालसा कॉलेज घटनाक्रम के बाद मैंने कांग्रेस की कोई पोस्ट नहीं की। न राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुआ। मैं एक कार्यकर्ता के रूप में बीजेपी में शामिल हुआ हूं। बीजेपी जो जिम्मेदारी देगी उसे जी-जान से निभाऊंगा।
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तो कांग्रेस ने पलटवार किया कि कुछ मीडिया संस्थानों में इस तरह की खबर चल रही है कि नरेंद्र सलूजा ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर अन्य पार्टी जॉइन कर ली है। तथ्यात्मक स्थिति यह है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण नरेंद्र सलूजा को 13 नवंबर 2022 को ही पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। नरेंद्र सलूजा लगातार दूसरी पार्टी के संपर्क में थे और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। उनकी इन गतिविधियों की सूचना प्राप्त होने के बाद उन्हें 13 नवंबर को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था। कांग्रेस पार्टी स्पष्ट करना चाहती है कि पार्टी में प्रतिबद्ध और अनुशासित कार्यकर्ताओं का पूरा सम्मान है, लेकिन अनुशासनहीनता और गद्दारी करने वाले व्यक्तियों के लिए कांग्रेस पार्टी में कोई जगह नहीं है। पार्टी से निकाले गए गद्दार वहां जा सकते हैं? जहां जाने के बाद सार्वजनिक मंच से उन्हें विभीषण कहा जाता है।
बात यही है कि विभीषण की रामभक्ति भाजपा को रास है, तो क्या कांग्रेस ने यह मान लिया है कि अपनों को मनाने की जगह पार्टी से बाहर जाने देने का विकल्प देना ज्यादा बेहतर है। आखिर विभीषण जब लंका को छोड़कर जाता है, तब लंका के लोग आयुहीन, यशविहीन हो जाते हैं। कांग्रेस भी सत्ता खोकर एक बार यह भोग चुकी है, उसके बाद भी विभीषण कह-कहकर कितने और अपनों को खोने का हर्ष मनाएगी…।