आदिवासी अंचल आलीराजपुर के पहले पायलट– कैप्टन अली असगर
आलीराजपुर से अनिल तंवर की रिपोर्ट
आलीराजपुर: आलीराजपुर जिला वैसे तो देश के पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर जिले के तौर पर जाना जाता है क्योंकि यहाँ पूर्व से ही शिक्षा , स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों का अभाव रहा है. पिछली जनसंख्या गणना के अनुसार जिले में 87% जनजाति, 4% अनुसूचित जाति और 9% अन्य रहवासी माने गए है. पिछड़ा जिला होने के बावजूद भी जिस आदिवासी और अन्य परिवार ने उन्नति करना चाही उन्हें तमाम बाधाओं और विपरीत परिस्थितियाँ भी नहीं रोक पाई . उदाहरण स्वरुप यहाँ से आदिवासी परिवारों के अनेक व्यक्ति आज बड़े पदों पर कार्यरत है. इंदौर संभाग के वर्तमान कमिश्नर श्री मालसिंह भयडिया भी ग्राम डाबड़ी, आलीराजपुर के निवासी है.
इसी कड़ी में आलीराजपुर के बोहरा समुदाय के प्रतिष्ठित किराना व्यवसायी इब्राहिम मर्चेंट के पौत्र और मुस्तन मर्चेंट के बेटे अली असगर ने जिले में एक नया इतिहास रचा है. ऐसे पिछड़े जिले से 21 वर्षीय अली असगर ने पायलट प्रशिक्षण प्राप्त कर जिले का नाम रोशन किया है .
आमतौर पर बोहरा समाज में शिक्षा को तो बहुत महत्त्व दिया गया है तथा पिछले कई वर्षों से शत प्रतिशत बच्चे साक्षर होकर उच्च शिक्षित है. यह समाज शिक्षित होने के उपरान्त भी व्यापार गतिविधियों को ही प्राथमिकता देता है. यदि किसी ने तकनीकी विशेषता भी प्राप्त की हो तो वह सम्बंधित विषय में अपना बिजनेस ही प्रारम्भ करता है. शासकीय या अन्य मल्टी नेशनल कंपनी में सेवा के लिए जाना कम पसंद करते है.
अली असगर इसका अपवाद है. इनके माता पिता की सोच थोड़ी अलग होकर समय के साथ चलने की है. अली असगर ने स्थानीय डान बास्को स्कूल से विद्यालयीन शिक्षा प्राप्त की . बाद में कारवर एविएशन बारामति, महाराष्ट्र (Carver Aviation Baramati,M.H.) से 18 माह का पायलट प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्होंने 200 घंटों की उड़ान भरी. यह उड़ान उन्होंने कर्नाटक के गुलबर्गा और विजयपुर तथा महाराष्ट्र के अकलकोट, सोलापुर, लातूर , कराड और औरंगाबाद में भरकर वांछित 200 घंटों की उड़ान पूरी की जो कमर्शियल पायलट लाइसेंस के लिए जरूरी होता है. इस लायसेंस का आवेदन भी उन्होंने डायरेक्टोरेट जनरल आफ़ सिविल एविएशन (DGCA)को कर दिया है.
आलीराजपुर जैसे पिछड़े आदिवासी बहुल जिले में अली असगर पहले व्यक्ति है जो पायलट बने है. ख़ास बात यह भी है कि वे बोहरा समाज के है. उन्होंने इस उपलब्धि का श्रेय अपने दादाजी इब्राहिम मर्चेंट, माताजी फातेमा मर्चेंट और पिता मुस्तन मर्चेंट को देते है जिन्होंने प्रोत्साहित कर इस मुकाम पर पहुंचाया .
आलीराजपुर से – अनिल तंवर