Flashback: आसाम -अप्रतिम और विचित्र यात्राएँ

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आसाम में मुझे अप्रैल 1980 से छह महीने बिना सामाजिक जीवन के बंजारों के समान रहते हुए हो गये थे। पहले जवानों के साथ बैरक में और फिर एक के बाद एक तरह-तरह के रेस्ट हाउस में रह रहा था। मेरे साथ आरक्षक घुंघरू चलता था। उग्र बटालियन के साथ ही आसाम आंदोलन की कठिन समस्या से निपटना पड़ता था।फिर भी मैं समभाव से इस परिस्थिति में भी पुस्तकों एवं स्वयं की कल्पनाओं में ही प्रसन्नचित्त था।

एक दिन अकस्मात् किसी शासकीय मीटिंग में आसाम के मेरे बैचमेट श्री बी पी राव मिल गये।मीटिंग के बाद हम लोग बड़ी गर्मजोशी से आपस में मिले और फिर मैं उन्हें अपने रेस्ट हाउस ले गया। उन्होंने मेरी गंभीर स्थिति देखते हुए अपनी काहिलीपाड़ा स्थित 4थी आसाम पुलिस बटालियन के गेस्ट हाउस में मुझे स्थायी रहने का प्रस्ताव दिया। अगले दिन मैं उनके साथ स्थल निरीक्षण के लिया गया।समतल गुवाहाटी शहर के बीच में काहिलीपाड़ा एक पहाड़ी पर था। इसी पहाड़ी पर उनकी बटालियन स्थित थी।मुख्य पहाड़ी से जुड़ी हुई परन्तु थोड़ा हटकर एक बड़ी टीलेनुमा पहाड़ी थी।पहाड़ी के बीच में एक बड़े चबूतरे पर आसाम शैली की एक बहुत बड़ी हट बनी हुई थी। उसका मध्य कमरा ड्राइंगरूम था, दाहिनी तरफ़ मेरा बड़ा बेडरूम और बायीं तरफ़ सुरक्षा गार्ड के लिए व्यवस्था थी।किचन और बाथरूम आदि संबद्ध थे। यह समस्त ढांचा सीमेंट फ़्लोर पर बल्लियों से खड़ा था। अंदर और बाहर की दीवारें बाँस की चटाई की बनी हुई थी।पूरे ढांचे की ढालू छतों पर धान का पुआल डाला गया था। सभी कमरे फर्निशड और बिजली युक्त थे। सामने अपनी बटालियन में उपलब्ध पैराशूट की बड़ी छतरी लगवा दी। घाटी के उस पार मेघालय की सुन्दर पहाड़ियाँ थी।

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उसी समय इंदौर की कोर्ट से एक प्रकरण में गवाही के लिए समन प्राप्त हुआ। इसी के लिए पृथक से IG ( पुलिस मुखिया) का पालनार्थ आदेश भी मिला। इंदौर का रेल मार्ग लखनऊ होकर था जहाँ पर उस समय घर पर मेरी पत्नी लक्ष्मी और ढाई वर्षीया पुत्री कंचन थीं।मैं लियो टॉल्स्टॉय की पुस्तक वॉर एण्ड पीस लेकर दो दिन और दो रात की यात्रा कर लखनऊ अपने घर पहुँचा। अम्मा ने बताया कि दो घंटे पूर्व ही लक्ष्मी को उनके भाई कार से रीवा ले गए हैं।उस समय मोबाइल नहीं थे और आसाम का टेलीफोन ठप था। बटालियन का वायरलेस केवल एमपी पुलिस से जुड़ा था।यह दो घंटे की देरी अप्रतिम घटनाक्रम का कारण बनी।

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अपनी अम्मा से विचार विमर्श कर मैं रीवा जाने के लिए हल्का सामान लेकर चारबाग़ टैक्सी स्टैंड निकल पड़ा। वहाँ जब कोई टैक्सी वाला जाने को तैयार नहीं हुआ तो मैं इलाहाबाद की बस पर बैठ गया।इलाहाबाद में सिविल लाइंस बस स्टैंड पर उतार कर रिक्शे से ज़ीरो रोड बस स्टैंड गया जहाँ से रीवा के लिए बस जाती थी। वहाँ रोडवेज़ की अंतिम बस कुछ देर पहले जा चुकी थी। रामबाग के पास प्राइवेट बस भी नहीं मिली। वहीं मुझे एक नवयुवक मिला जिसे रीवा के मार्ग में चाकघाट तक जाना था। उसने कहा कि नैनी पुल के पास आसानी से ट्रक मिल जाएगा जो रीवा पहुँचा देगा।बिना शंका संध्या के धुंधलके में मैं उसके साथ यमुना नदी पर बने पुल के इस छोर पर पहुँचा परन्तु बहुत प्रयास के बाद भी हमें ले जाने वाला ट्रक नहीं मिला। नवयुवक ने फिर कहा कि पुल पार चलते हैं उधर कोई ट्रक मिल जाएगा।अब तक हो चुकी रात के मद्धिम प्रकाश में बादलों की गड़गड़ाहट के बीच लगभग वीरान पड़े पुल को पैदल पार कर हम लोग उस पार पहुँचे।थोड़ा आगे जाकर एक ढाबे पर कुछ ट्रक खड़े दिखे।एक ट्रक वाला तैयार हुआ लेकिन बोला कि खाना खाकर चलूँगा। एक घंटे बाद किराया तय करके हम 130 किमी की यात्रा पर चल पड़े। कुछ देर चलने के बाद ट्रक सड़क पर लहरें लेता हुआ चलने लगा क्योंकि ड्राइवर शराब के नशे में धुत्त था।किसी प्रकार चाकघाट में टोंस नदी का पुल पार कर ढाबे पर बिना किराया लिए वह चारपाई पर गिर पड़ा। नवयुवक चला गया। आधी रात के बाद वहाँ खड़ा एक ट्रक वाला मुझे रीवा ले जाने के लिए तैयार हुआ।चलते ही मूसलाधार पानी बरसने लगा और ट्रक अस्पष्ट दिख रही सड़क पर रेंगता हुआ चल रहा था। किसी तरह सोहागी घाट की ख़तरनाक चढ़ाई चढ़कर ट्रक धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।रात लगभग दो बजे दूर सड़क पर बरसते पानी में बहुत सी लाल लाइटें चमकीं। पास जाकर ड्राइवर ट्रक रोक कर उतर गया। वर्षा में भीगते हुए ड्राइवर वापस आया और बोला कि आगे सड़क पर पानी बह रहा है। यह स्थान मनगवां से कुछ पहले था।ट्रक किनारे खड़ा करके ड्राइवर बोला कि मैं सोने जा रहा हूँ, रास्ता खुलने पर आप उतर के कोई दूसरा ट्रक पकड़ लीजिये। उसने भी पैसा नहीं लिया। पौ फटने के समय रास्ता खुल गया और मैं तीसरे ट्रक में बैठकर रीवा रवाना हुआ।पानी रूक चुका था। ड्राइवर तेज ट्रक चला रहा था। उसने मुझे रीवा बस स्टैंड के पास उतार दिया।वहाँ से मैं रिक्शे से उपरहटी स्थित अपनी ससुराल पहुँच गया।मैंने लक्ष्मी को साथ लेकर इंदौर और आसाम जाने का कार्यक्रम बताया।कुछ शर्मिंदगी के कारण मैंने अपनी इस दुस्साहसिक यात्रा के बारे में कोई चर्चा नहीं की।अकेले में मैंने लक्ष्मी को बता दिया और सौभाग्यवश उसने तुलसीदास की रत्नावली की तरह मुझे कोई उपदेश नहीं दिया।

 

चार-पाँच घंटे विश्राम और भोजन करके मैं लक्ष्मी और कंचन के साथ कार द्वारा कटनी के लिए प्रस्थान किया। कटनी से रात को बिलासपुर-इंदौर एक्सप्रेस ट्रेन से इंदौर रवाना हुए। इंदौर पहुँच कर अगले दिन जब मैं कोर्ट पेशी के लिए पहुँचा तो पता चला कि उस दिन वकीलों की हड़ताल हो गई है। जज साहब आसाम का सुनकर चौंके। बाबू ने अगली तारीख़ दे दी।अगले दिन इंदौर से अपनी बटालियन की जीप से अपने मुख्यालय , जावरा रवाना हुआ। उन दिनों वह सड़क बहुत ख़राब थी। अगले दिन मैंने मुख्यालय का निरीक्षण किया जो बटालियन के आसाम जाने से लगभग ख़ाली पड़ा था।फिर जाड़ों का कुछ आवश्यक सामान लेकर सीधे जीप से भोपाल गया जहाँ से बंबई लखनऊ एक्सप्रेस से लखनऊ पहुँच गया।मेरी अम्मा आसाम पोस्टिंग से बहुत चिंतित थीं।अगले दिन हम तीन अवध-तिरहुत एक्सप्रेस से गौहाटी की लम्बी यात्रा के लिए निकले। प्रथम श्रेणी की आधी बोगी लगी थी जिसमें एक परिवार और बैठा हुआ था। सुबह होने पर गाड़ी जब छपरा पहुँची तो टीटी आया और बोला अब बिहार आ गया है आप दरवाज़ा बंद कर लें और कोई कितनी भी ज़ोर ज़ोर से खटखटाए, दरवाज़ा मत खोलिए। दिन भर में कई बार और रात में भी दरवाज़ा खटखटाया गया लेकिन हम लोगों ने टीटी के मंत्र का पालन किया। अगली सुबह गाड़ी उत्तर बंगाल में चलते हुए अलीपुरद्वार पहुँची जहाँ से शाम तक ट्रेन ब्रह्मपुत्र पार कर गौहाटी पहुँची।

अपने नए निवास पर छोटे से परिवार के साथ मैं बहुत प्रसन्न था।मेरे बटालियन वालों ने मेरी सुरक्षा में लगी आसाम पुलिस की गार्ड हटाकर अपनी गार्ड लगा दी। मुझे पता चला कि बटालियन के लोग कुछ व्यंग्य और कुछ श्रद्धा से मेरे नये निवास को कैलाश पर्वत और मुझे भोलेनाथ कहने लगे थे।लक्ष्मी और कंचन के साथ कामाख्या के दर्शन किए। उन्हें लेकर दूरस्थ कंपनियों के मुख्यालय नलबाड़ी, कोकराझार,गोंसाईंगाँव और धुबरी आदि स्थानों पर जा कर रुकता था और अपने जवानों से मिलता था। हम लोग काजीरंगा नैशनल पार्क देखने गए और गेंडे देखे। यह हमारे जीवन का एक स्वर्णिम क्षण था। 4 अप्रैल, 1981 को मैं बटालियन के साथ स्पेशल ट्रेन से जावरा वापस रवाना होने वाला था तब उसके दो दिन पहले मैंने लक्ष्मी और कंचन को असिस्टेंट कमांडेंट श्री गुणानन्द के साथ जावरा भेज दिया था।