Flashback: आर्मी के साथ जुड़कर युद्धकला की शिक्षा

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Flashback: आर्मी के साथ जुड़कर युद्धकला की शिक्षा;

नवम्बर, 1975 में मेरे IPS बैंच की पासिंग आउट परेड सम्पन्न हुई जिसमें सेल्यूट लेने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी आयीं थीं।उनके साथ हम लोगों को लंच लेने का भी अवसर मिला। इसी के साथ हमारा हैदराबाद ( प्रथम दो माह माउंट आबू में) पुलिस एकेडमी का लगभग एक वर्ष का प्रशिक्षण समाप्त हुआ। एकेडमी से निकल कर हमें आर्मी अटैचमेंट के लिए रवाना होना था। हमारे बैच में 6 स्क्वॉड थे और प्रत्येक को देश की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर सेना के पास भिन्न भिन्न स्थानों पर जाना था। हम सभी को अकेडमी छोड़ने और अपने अनेक मित्रों से बिछड़ने का दुख था परन्तु साथ ही कठिन प्रशिक्षण काल समाप्त करने तथा अपने भावी जीवन में क़दम रखने का उत्साह भी था।

मेरे स्क्वाड नंबर तीन का गंतव्य स्थान नेफा ( वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) स्थित 5 माउंटेन डिविज़न था जो भूटान से लगे कामेंग ज़िले के बोम्दिला सेक्टर में था। हमारा स्क्वॉड हैदराबाद से ईस्ट कोस्ट एक्स्प्रेस से हावड़ा स्टेशन पहुँचा। हावड़ा से न्यू बोंगाईगांव की दूसरी ट्रेन के बीच में पाँच घंटे का समय था। मैं तीन साथियों के साथ कलकत्ता के कुछ दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए निकल पड़ा। लौटते समय हमारी टैक्सी हावड़ा ब्रिज के ट्रैफ़िक जाम में फँस गई। लंबी प्रतीक्षा के बाद भी जब जाम नहीं खुला तो हम लोगों ने टैक्सी से उतरकर पुल को पैदल पार किया और उस पार ऑटो रिक्शे से किसी प्रकार ठीक समय पर स्टेशन पहुँच गए। बोंगाईगांव पहुँच कर वहाँ से छोटी लाइन की ट्रेन से रंगिया पहुँचे और फिर वहाँ से दूसरी पैसेंजर ट्रेन द्वारा आर्मी ट्रांजिट कैंप मीसामारी पहुँचे।

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मीसामारी तेज़पुर के पास हिमालय की तलहटी मे बना आर्मी के 5 माउन्टेन डिविज़न का ट्रांजिट कैंप था जहाँ सेना के आने जाने वाले लोग रुकते थे।एक डिविज़न में तीन ब्रिगेड तथा एक ब्रिगेड में तीन इंफ़ेन्ट्री बटालियन होती हैं।डिवीजन के साथ अन्य सहायक विंग भी होते हैं। हम लोगों ने रात्रि विश्राम मीसामारी में किया और सुबह आर्मी ट्रक में बैठकर उत्तर दिशा में हिमालय की टैंगा वैली के लिए रवाना हो गए। वहाँ पहुँचकर हमें 5 माउन्टेन डिवीज़न में कार्यरत 9 महार बटालियन के साथ सम्बद्ध कर दिया गया।दोपहर बाद पहाड़ों की लंबी यात्रा के बाद जब हम लोग पहुँचे तो वहाँ चाय के बाद हमारे ट्रेनिंग के इंचार्ज मेजर दुबे ने हम लोगों को एकत्र कर हमारी आर्मी ट्रेनिंग की रूपरेखा बतायी। हम सभी को पृथक-पृथक टीन के बने बहुत छोटे कमरे,जिसके साथ छोटा बाथरूम था, दिए गए। इन्हें वहाँ बंकर कहा जाता था। 6500 फ़ीट की ऊँचाई पर जाड़े के मौसम में इन बंकरों में रात विकट ठंडी थी।

अगले दिन सुबह साढ़े पाँच बजे एक जवान चाय लेकर मेरे बंकर में आया। सुबह सवा छह बजे शॉर्ट्स निकर और जर्सी में हमारे स्क्वॉड को PT के लिए फ़ॉल-इन किया गया। PT के नाम पर हमें दौड़ने के लिए सड़क पर ले जाया गया और बहुत देर तक दौड़ाया गया। कड़कड़ाती ठंड में भी गर्मी लगने लगी। लौटकर अपने बंकर में PT ड्रेस उतार कर वर्दी पहनकर सब लोग मैस में ब्रेकफास्ट के लिए पहुँचे।यही हमारी सुबह की प्रतिदिन की दिनचर्या हो गई।प्रारंभ के दिनों में ब्रेकफास्ट के बाद खुली क्लास से हमें इन्फैंट्री बटालियन के हथियारों तथा युद्ध कला के बारे में बताया गया। इन्फैंट्री बटालियन सेना का मूल आधार स्तंभ है तथा इसकी विस्तृत जानकारी तथा उसका मैदानी अभ्यास बहुत आवश्यक है।हम में से प्रत्येक IPS अधिकारी को सेना की एक कंपनी देकर सड़क के किनारे या तो छिपते हुए एम्बुश लगाने या फिर दूसरी कम्पनी के साथ एम्बुश में फँसने पर निकल जाने का कार्य दिया गया।

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अभ्यास के बाद हमारे कार्यान्वयन की विस्तृत समीक्षा की गईं। इन्फैंट्री की जानकारी हो जाने के बाद हमें 5 माउंटेन डिविज़न के साथ अनेक संबद्ध सपोर्टिंग विंग्स की जानकारी एक-एक करके दी गई। प्रतिदिन एक सपोर्टिंग विंग की सैद्धांतिक जानकारी और फिर प्रदर्शन दिया जाता था। कोर ऑफ इन्जीनियर्स द्वारा नदी पर तत्काल पुल बनाने का प्रदर्शन किया गया। आर्टिलरी विंग द्वारा तोपों की जानकारी और तोपें चलाने का प्रदर्शन दिया गया। सिग्नल कोर द्वारा संचार व्यवस्था का प्रदर्शन किया गया। आर्मी सर्विस कोर और EME आदि के कार्यों से हम लोगों को अवगत कराया गया। ये सभी विंग युद्ध के समय इन्फैंट्री की किस प्रकार सहायता करते हैं, उसकी जानकारी दी गई। एक दिन दोपहर के बाद हम सब लोगों को नाइट पेट्रोलिंग पर जाने का आदेश दिया गया। मेजर दुबे ने स्पष्ट कहा कि यह साधारण गश्त नहीं है बल्कि इसमें सामने के पहाड़ पर पूरा चढ़ कर शत्रु का पता लगा कर वापस आना है।

अंधेरा प्रारंभ होने पर हमारा स्क्वॉड एक पंक्ति में पतली पगडण्डी से पहाड़ के ऊपर चढ़ने लगा। हमारे बीच- बीच में सेना के जवान भी थे। कुछ ही मिनटों में सीधी खड़ी चढ़ाई प्रारंभ हो गई है और अब चलना न केवल शारीरिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो गया बल्कि अंधेरे में बेहद ख़तरनाक भी था। ज़रा सा फिसलने पर सैकड़ों फ़ीट नीचे जा सकते थे। बहुत कठिनाई से हम लोग ऊपर पहुँचे। वहाँ से वापस उतारना चढ़ने से भी अधिक भयावह था। हमारे कुछ साथियों को तो सेना के जवानों ने स्वयं को ख़तरे मे डाल कर सहारा देकर नीचे उतारा। यह अनुभव हमें सेना की विषम परिस्थितियों से अवगत कराता है।बहुत रात में हम लोग लौटकर मैस पहुँचे।मैस हमारे सामाजिक जीवन का स्थान बन गया था जहाँ सेना के अधिकारियों के साथ हम लोग हँसी मज़ाक करते और सेना के क़िस्से सुना करते थे। कैप्टन काक सबके जाने के बाद भी बहुत दुखी देर तक मैस में बैठे रहते थे। पता चला कि तीन महीने पहले उनके घर से उनके पुत्र उत्पन्न होने का समाचार आया था परंतु ड्यूटी के कारण वे उसे देख नहीं पाए थे।

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इस पूरे सेक्टर से हमें अवगत कराने के लिए चीन की सीमा पर स्थित तवांग तक ले जाने का कार्यक्रम निर्धारित था। हम लोग टैंगा से उत्तर दिशा की ओर रवाना होकर पहले बोम्दिला पहुँचे।यह छोटा सा शहर कामेंग ज़िले का मुख्यालय है। यहाँ हम लोग बाज़ार गये और कुछ स्मृति चिन्ह ख़रीदें। वहाँ से हम लोग और आगे बढ़े और सेंज के पास 11 हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर एक सैन्य कैम्प में ऊँचे पहाड़ों पर कम ऑक्सीजन के अभ्यस्त होने के लिए रूक गये। सुबह हम लोगों को प्रसिद्ध सेला पास से गुज़रना था जो 14 हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर है। 1962 के चीन- भारत युद्ध में इस पूरे सेक्टर में ब्रिगेडियर दलवी के नेतृत्व में केवल एक ब्रिगेड थी।

चीन के साथ युद्ध में भारत की सबसे शर्मनाक हार यहीं हुई थी।पूरा आसाम चीन के लिए खुल गया था। सेला पास के चढ़ाई चढ़ने से पूर्व घना कोहरा छा गया और पूरी सड़क पर बर्फ़ थी। हमारी ट्रक के चालक ने उस ठंडक में खुले हाथों से टायर के ऊपर लोहे की ज़ंजीर चढ़ाई जिससे ट्रक न फिसले। ख़तरनाक यात्रा के बाद हम लोग तवांग पहुँचे जहाँ विश्व प्रसिद्ध बौद्ध मॉनेस्ट्री है। उसके दर्शन किये। दूरबीन से चीन की सीमा चौकी दिख रही थी। रात में तवांग में रुक कर अगले दिन संध्या सीधे वापस 9 महार बटालियन, टैंगा पहुँच गये।

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अंतिम दिन इस सेक्टर के कमांडर मेजर जनरल ने हम लोगों को संबोधित किया। उन्होंने इस क्षेत्र के सामरिक महत्व और संभावित युद्ध में रणनीति के संबंध में विलक्षण जानकारी दी।अंत में भावुक होकर उन्होंने कहा कि आपके पुलिस जीवन में जब कभी भी सेना का कोई जवान अपनी समस्या लेकर आए तो सीमा की कठिन स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसकी समस्या का सहानुभूति से निराकरण करें।

नेफ़ा से लौटकर अपने नये गंतव्य के मार्ग में स्थित अपने घर लखनऊ रुक गया। 18 दिसम्बर को मैं लखनऊ- बम्बई एक्सप्रेस ट्रेन में अपनी बड़ी लोहे की संदूक और होल्डाल के साथ मध्य प्रदेश के खंडवा नामक स्थान के लिए आपनी पुलिस सेवा के अज्ञात भविष्य में पहला क़दम रखने के लिए रवाना हो गया।