Flashback : आकाशवाणी ने प्रसारित किया मेरी हत्या का समाचार!

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3 नवंबर 1984, समय शाम के 7:00 बजे!
यह आकाशवाणी है, अब आप हिन्दी मे मुख्य समाचार सुनिए … पुलिस अधीक्षक दमोह नरेंद्र कुमार त्रिपाठी की आज एक सिख परिवार को बचाते समय आक्रामक भीड़ ने गोली मार कर हत्या कर दी है।

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    जी हाँ, यह मेरी ही हत्या का समाचार था, जो 1984 के दंगों के समय आकाशवाणी से प्रसारित हुआ। मैं उस समय दमोह में पुलिस अधीक्षक था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दमोह में भी सिख विरोधी दंगे भड़क गए और उग्र भीड़ द्वारा सिखों की दुकानों में लूटपाट और आगजनी कर दी।

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असामाजिक तत्वों के अतिरिक्त कुछ राजनीतिक लोग भी लूटपाट को बढ़ावा दे रहे थे। इसे प्रभावी ढंग से रोकने के लिए दमोह नगर में कर्फ्यू लगा दिया गया था। 3 नवंबर की दोपहर को कर्फ्यू में ढील दिए जाने के समय शहर मे ये खबर फैल गई कि एक सिख युवक ने गोली चला दी!

उस सिख युवक ने अपने कुछ ग़ैर सिख साथियों के साथ शहर के मुख्य चौराहे घंटाघर के पास शराब पीकर कट्टे से गोली चला दी। तत्कालीन हिंसक माहौल में भीड़ ने उसका पीछा किया तो वह उसी चौराहे से लगे हुए एकमात्र सिख समुदाय के दो मंजिला घर में जान बचाने के लिए घुस गया।

धीरे-धीरे भारी भीड़ सिख घर के समक्ष एकत्र हो गई और घर पर पथराव करने लगी। मैं तत्काल घटना स्थल पर अपने उप पुलिस अधीक्षक यक्षराज सिंह के साथ पहुँचा और दोनों जीपों को उस घर के सामने लगा दिया। कुछ लोगों ने हमारे सामने ही पूरे बन्द घर को जला देने के लिए पेट्रोल में भीगा जलता कपड़ा दरवाज़े पर रख दिया, जिसे हम लोगों ने हटा दिया। मेरे ड्राइवर राम प्रसाद के पास सौभाग्यवश राइफल थी। मैंने दोनों ड्राइवरों की मदद से भीड़ को नियंत्रित कर उस घर से दूर किया।

थोड़ी देर के बाद कलेक्टर श्री एन के वैद्य एक होमगार्ड के साथ मेरे समीप आ गए। भीड़ की ओर से हथगोले फेंके जाने लगे। इसी बीच सिख ने घर से आत्मरक्षा के लिए एक गोली चला दी, जो सड़क पर मेरे और कलेक्टर के बीच में आकर लगी। सड़क के कुछ टुकड़े उछलकर हम लोगों के पैर पर आकर लगे।कलेक्टर श्री एन के वैद्य की स्थिति देखकर मैंने उन्हें कोतवाली भेज दिया। मेरे ज़ोर से चेतावनी देने पर ऊपर खिड़की से फिर गोली नहीं चली।

सिख परिवार द्वारा चली गोली से भीड़ पूरी तरह अनियंत्रित हो गई और आगजनी के लिए कुछ मशालें जलने लगी। स्थिति संभालने के लिए मैंने चिल्लाकर लोगों से कहा कि मैं गोली चलाने वाले सिख युवक को घर के अंदर गिरफ्तार करने जा रहा हूँ। बहुत मुश्किल से दरवाजा खुलवा कर मैं घर के अंदर घुसा। भीड़ ने भी घर में कुछ मशालों सहित घुसने का प्रयास किया। ड्राइवर राम प्रसाद ने उन्हें राइफल से फायरिंग का भय दिखाकर पीछे कर तत्काल अंदर से दरवाजा बंद किया। परंतु भीड़ हथगोले चलाती रही। कुछ लोग पास के घरों की छतों से भी सिख परिवार के घर के ऊपर फायरिंग करने लगे।

 

यह तनावपूर्ण घटना लंबे समय तक जारी रही। इसी बीच कुछ रिजर्व बल वहां पहुंचा। इसी दौरान कुछ लोगों ने जानबूझ कर जनता में यह अफवाह फैला दी कि सिख लोगों ने घर के अंदर पुलिस अधीक्षक की हत्या कर दी है। एक हिंदू पुलिस अधीक्षक की हत्या बताकर जनता को और आक्रोशित करने का यह एक कुत्सित प्रयास था। इस अफ़वाह के आधार पर शाम को ऑल इंडिया रेडियो ने मेरी हत्या का समाचार भी प्रसारित कर दिया।

मेरे मरने की अफवाह इसलिए भी फैलाई गई थी, ताकि स्थानीय पुलिस में भी सिखों के विरुद्ध भावनाएं भड़क उठे। पुलिस बल के आ जाने के बाद मैं घर के बाहर निकला और जीप के बोनट पर खड़े होकर मैंने लाउड स्पीकर से घोषणा की कि मैंने अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया है और मैं जीवित हूँ। कुछ लोगों ने कहा कि आप घायल है अपना बदन दिखाइये। इस पर मैंने तत्काल बिना किसी मजिस्ट्रेट के आदेश के घोषणा की कि कर्फ्यू लगाया जाता है और आप लोग तुरंत तितर-बितर हो जाएं।

कुछ स्थानों पर लाठीचार्ज के बाद बड़ी कठिनाई से शहर में कर्फ्यू लागू किया गया। फुटेरा वार्ड में पथराव से मेरे पैर में एक हल्की चोट भी आई। हर्ष की बात थी कि पुलिस की कार्रवाई से उस घर के 19 सिख व्यक्तियों को पूर्णतः सुरक्षित बचा लिया गया। पूरे दमोह  शहर में पुलिस पिकेट लगाकर मैंने बहुत सख्त कर्फ्यू लागू किया।

घंटों पूरे शहर का जीप और पैदल गश्त करने के बाद रात को कोतवाली में आकर वहां मौजूद कलेक्टर के साथ पुलिस मुख्यालय और शासन को पूरे दिन के घटनाक्रम का एक संयुक्त वायरलेस बनाकर प्रेषित किया। इसके बाद अगले दिन की पूरी व्यवस्था का लिखित आदेश भी जारी किया।

काफ़ी रात गये जब मैं अपने बंगले पहुंचा तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि पत्नी ने मुझसे सामान्य रूप से भोजन करने के लिए कहा। स्पष्ट था कि सौभाग्यवश उसने  रेडियो पर कोई समाचार नहीं सुना था।

इस घटना के तीन दिन बाद राज्य शासन के सहृदय वरिष्ठ मंत्री विट्ठल भाई पटेल ने सार्वजनिक घोषणा की कि मुझे वीरता पदक दिलवाया जाएगा। ऐसा कोई पदक मुझे नहीं मिला।वर्षों बाद एहसास हुआ कि तत्कालीन केंद्र सरकार से, जिसके अनेक नेताओं पर सिख  विरोधी दंगे भड़काने का आरोप था, ऐसे किसी पदक की आशा करना व्यर्थ था।