Flashback: जब मुझे राजनीतिक हस्तियों की गिरफ्तारी का सुअवसर प्राप्त हुआ
राजनीतिक व्यक्तियों की गिरफ़्तारी करना पुलिस का एक विशेष कर्तव्य है।आन्दोलन के समय गिरफ़्तारी एक ऐसी प्रक्रिया है जो क़ानून एवं व्यवस्था के साथ-साथ पुलिस और गिरफ्तार किये गये नेताओं के लिए भी सुविधाजनक होती है।
नेताओं के लिए तो गिरफ़्तारी कभी- कभी वरदान सिद्ध होती है। 18 जनवरी, 1977 को आपातकाल हटने के बाद प्रजातंत्र की पूरी छटा श्रमिक, छात्र, राजनीतिक और सांप्रदायिक घटनाओं में दिखाई दे रही थी।वीरेंद्र कुमार सकलेचा जनता पार्टी के म प्र में मुख्यमंत्री थे तथा कांग्रेस केंद्र और राज्य दोनों स्थानों में विपक्ष में थी।
इंदौर में 1977-79 के समय जब मैं CSP ( नगर पुलिस अधीक्षक) था तब मुझे अनेक राजनीतिक लोगों को गिरफ़्तार करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
उस समय इंदौर में केवल तीन CSP हुआ करते थे। मेरे क्षेत्र में MG रोड, तुकोगंज, परदेशीपुरा और पलासिया थाने आते थे और इस क्षेत्र में दो बड़े कांग्रेसी नेता महेश जोशी और सुरेश सेठ रहा करते थे।
दोनों विधायक भी थे। MG रोड थाने के पास जेल रोड पर कांग्रेसी नेता और प्रसिद्ध वक़ील अशोक शुक्ला का कार्यालय था जहाँ शाम को महेश जोशी आकर बैठा करते थे।
उनके विपक्ष में होने के बावजूद मैं कभी कभी उस ऑफ़िस में चाय पीने के लिए चला जाता था।महेश जोशी के साथ एक सौहार्द स्थापित हो गया था और वे अपने जुझारूपन के अनेक क़िस्से रोचक ढंग से सुनाया करते थे।अक्तूबर 1978 में भारत सरकार के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी का इंदौर के दशहरा मैदान में नर्मदा सप्लाई लाइन का लोकार्पण करने का कार्यक्रम निर्धारित किया गया।
शहर कांग्रेस ने उन्हें काले झंडे दिखाने की घोषणा कर दी जबकि शासन के निर्देश पर जिला प्रशासन ने कांग्रेस की योजना को विफल करने का निर्णय ले लिया।
मैंने महेश जोशी जी से कहा कि काले झंडे दिखाने में कांग्रेस सफल नहीं हो पाएगी। उन्होंने कहा कि हम काले झंडे दिखा कर रहेंगे। अटल जी के आने के पहले मैंने उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए MG रोड थाने के दमदार टी आई (नगर निरीक्षक) के एल मिश्रा को नियुक्त किया।
उनके महेश जोशी से बहुत ही अच्छे संबंध थे परन्तु साथ ही वे विभाग के प्रति भी बहुत प्रतिबद्ध थे। कुछ ही घंटों के अंदर उन्होंने महेश जोशी को गिरफ़्तार करने की सूचना दे दी और उन्हें DRP लाइन भेज दिया।
सुरेश सेठ को गिरफ़्तार करने के लिए मैं स्वयं श्रीनगर एक्सटेंशन स्थित उनके घर देर रात को पहुँचा।घंटी बजाने पर वे स्वयं बाहर आये और मुस्कुरा कर बोले कि चाय पी लीजिए फिर मुझे ले चलिये।
अंदर बुलाकर मुझे प्रेम पूर्वक चाय पिलाई और फिर मैं उन्हें जीप में बैठाकर DRP लाइन ले गया। शहर के द्वितीय पंक्ति के अनेक कांग्रेसी नेताओं को भी गिरफ़्तार कर लिया गया। कार्यक्रम के समय बहुत कड़ी पुलिस व्यवस्था में अटल जी ने उद्घाटन किया।
कांग्रेसी काले झंडे तो नहीं दिखा पाए, परन्तु उन्होंने दूर से काले रंग के गैस के ढेरों ग़ुब्बारे आसमान में उड़ा दिए। मुझे याद है कि अटल जी ने अपनी शैली में चुटकी लेते हुए अपने भाषण में आपातकाल के बाद जनता पार्टी के निर्माण पर कहा था, “ अक़्ल आई – देर से आई – जेल में आई”।
इन्दिरा गांधी की लोकप्रियता और शक्ति उनकी 13 अगस्त 1977 को बेलछी नरसंहार के घटना स्थल पर हाथी से जाने पर बढ़ गई थी। 3 अक्टूबर, 1977 को चौधरी चरण सिंह द्वारा उन्हें गिरफ़्तार करने के असफल नाटक से इन्दिरा गाँधी और प्रभावशाली हुई और जनता पार्टी की बहुत जगहँसाई हुई।
आख़िरकार 20 दिसम्बर 1978 को उन्हें गिरफ़्तार करने का गोपनीय निर्णय लिया गया। उस दिन लोक सभा में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन और अवमानना पर जब सुनवाई चल रही थी तब पुलिस को आवश्यकता पड़ने पर चुपचाप कांग्रेसी नेताओं को गिरफ़्तार करने के लिए तैयार रहने को कहा गया।
मैं सुरेश सेठ का पीछा करते हुए पुलिस बल के साथ उनके इन्दौर समाचार प्रेस के बाहर सड़क पर खड़ा हो गया। दिल्ली में इंदिरा गाँधी को अवमानना और जीप कॉंड मे गिरफ़्तार कर लिया गया और हमें कॉंग्रेसी नेताओं को गिरफ़्तार करने का आदेश मिल गया। मैं सीधे प्रेस के गेट से अंदर घुसा तो देखा कि सुरेश सेठ लोगों के एक झुंड के साथ तेज़ी से बाहर निकल रहे हैं। स्पष्ट था कि वे टेली प्रिंटर पर इंदिरा गाँधी की गिरफ़्तारी का समाचार देख चुके थे।
मुझे देखकर वे क्रोध से भड़क उठे और बोले त्रिपाठी जी भूल जाइए गिरफ़्तारी करना। वहाँ अचानक उनके अनेक समर्थक इकट्ठा हो गए और सुरेश सेठ चकमा देकर लगभग दौड़ते हुए मालवा मिल चौराहे पहुँच गए। उस बड़े चौराहे पर एक तख़्त पर खड़े होकर लाउडस्पीकर से भाषण देने लगे। एक बड़ी भीड़ से पूरा चौराहा भर गया।
पुलिस अधीक्षक श्री आर एस एस यादव ने वायरलेस पर ग़ुस्से से कहा अभी तक सुरेश सेठ को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया। मैंने उन्हें स्थिति बतायी तो उन्होंने कहा भीड़ में जाकर गिरफ़्तार कीजिए। अब तक मेरी सहायता के लिए अपना काम निपटाकर श्री श्याम शुक्ला CSP सर्राफ़ा आ गए और हम लोग कुछ पुलिस बल के साथ भीड़ को चीरते हुए गये और माइक का तार खींचकर उसे बंद किया।
सुरेश सेठ को पकड़ने का प्रयास किया तो उनके कुछ साथियों और उन्होंने ख़ुद झूमा झटकी करना शुरू कर दिया।मैंने भीड़ को तुरंत तितर बितर होने के लिए कहा और भीड़ द्वारा बात न सुनने उसे खदेड़ने के लिए बल प्रयोग किया। भीड़ छँट गई लेकिन कई सड़कों से हम पर पथराव करने लगी और उसे दूर तक खदेड़ने के लिए पुलिस को उन्हें दौड़ाना पड़ा। कुछ पुलिस कर्मियों को चोटें भी आई।
सुरेश सेठ गिरफ़्तारी देने के लिए तैयार नहीं थे और सड़क पर लेट गए। एक सप्ताह पहले ही उन्होंने रेज़िडेंसी मे एक कार्यक्रम में मुझे अपना स्वास्थ्य ख़राब होना बताया और बहुत सूजा हुआ पैर दिखाया था।इसलिए मैं उन पर ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता था,परन्तु मेरे तमाम कहने पर भी वे सड़क से नहीं उठे तो चार पाँच लोगों से उन्हें बलपूर्वक उठवा कर जीप के पीछे रखवा दिया जिससे कारण उनका पायजामा और कुर्ता भी फट गया।
नगर निरीक्षक तुकोगंज आर के शर्मा उन्हें जीप से सी आई जेल ले गए।शहर में अनेक स्थानों पर सरकारी भवनों पर पथराव शुरू हो गया जिसके विरुद्ध हमें जगह जगह जाकर कार्रवाई करनी पड़ी।
अगले दिन सुबह मैं सी आयी जेल के अन्दर गिरफ़्तार कांग्रेसी नेताओं से मिलने गया। मुझे देखकर आश्चर्य हुआ कि जेल के अंदर एक बारात जैसी प्रसन्नता छोटे बड़े कांग्रेसियों में थी और ठहाके चल रहे थे।
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मैंने उनके साथ बैठकर चाय पी। सुरेश सेठ जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “ त्रिपाठी जी बुरा न माने, वो तो मेरा बेवकूफ़ फ़ोटोग्राफ़र नहीं आ पाया था इसलिए मुझे देर तक हुज्जत करनी पड़ी, लेकिन अफ़सोस कि फिर भी फ़ोटो नहीं खिंच पाई।”