मैं 30 नवंबर, 2011 को आज से ठीक 10 वर्ष या एक दशक पहले पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त हुआ था। सेवानिवृत्ति के समय मैं नई दिल्ली में डीजी, एनसीआरबी था। मेरे कुछ शुभचिंतकों ने इशारा किया था कि सेवानिवृत्ति के बाद जीवन एक बहुत ही नीरस और अवसादग्रस्त समय हो सकता है, परन्तु अगले ही दिन मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर के पक्षी को आकाश में छोड़ दिया गया है। आज मुझे ये दस वर्ष का समय ऐसा लग रहा है कि, बचपन और युवावस्था को छोड़कर, यह पिछला दशक मेरे जीवन का स्वर्णिम काल था।
सेवानिवृत्ति से पहले सेवा में मुझे दो एक्सटेंशन मिले। मेरा पहला एक्सटेंशन मेरी दिवंगत मां ने दिया था जब उन्होंने मेरी जन्मतिथि हाई स्कूल में लगभग एक वर्ष आगे बढ़वा दी थी। दूसरा छह महीने का एक्सटेंशन भारत सरकार ने बिना मेरे माँगे तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम के कहने पर दिया था।
उस समय मैं पुलिस में साइबर क्रांति लाने वाली 2000 करोड़ रुपये की प्रतिष्ठित सीसीटीएनएस परियोजना को लगभग पूर्ण करने वाला था। इस दूसरे एक्सटेंशन ने मुझे प्रतिष्ठित डीजी कांफ्रेंस में भाग लेने का अवसर प्रदान किया। प्रत्येक आईपीएस अधिकारी अपनी सेवा में इस कांफ्रेंस में शामिल होना चाहता है ताकि राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के साथ डिनर तथा प्रधानमंत्री आवास में उनके साथ हाई टी में भाग लेने का अवसर मिल सके।
मैं बिना किसी तथाकथित ज़िम्मेदारियों के सेवानिवृत्त हुआ। मेरी दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी, छोटी बेटी की शादी मेरी सेवानिवृत्ति से तीन साल पहले हो गई थी। मेरे पास चिंता करने के लिए कोई बेटा नहीं था। अब मैं चाहे जैसा जीवन जीना चाहूँ, उसके लिए मेरे पास पूरा समय था। मुझे सबसे बड़ी आज़ादी यह मिली थी कि छुट्टी माँगने की आवश्यकता नहीं थी; पुलिस विभाग में यदि कोई छुट्टी माँगता है तो वह अपने को दोषी व्यक्ति महसूस करता है।
बढ़ती उम्र की सबसे बड़ी चिंता मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य है। मानसिक सकारात्मकता की कृपा से (कुछ लोग भगवान की कृपा से कह सकते हैं) मैं अपना व्यायाम बहुत रुचि से कर रहा हूँ। बारबरा बुशमैन और उनकी विशेषज्ञों की टीम की लिखी किताब ‘ए कम्प्लीट गाइड टू फिटनेस एंड हेल्थ’ का मैं गीता के समान सम्मान करता हूँ। मेरे मित्र, फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टर विजय कौशिक ने भी मेरी सहायता की है।
मेरी ब्रिस्क वॉक/ट्रेडमिल/साइकिल और फ्लेक्सिबल स्ट्रेचिंग बहुत नियमित है। इसके अलावा सप्ताह में 6 दिन मैं बदल-बदल कर अन्य व्यायाम जैसे स्ट्रेचिंग, स्ट्रैंग्थ और बैलेंस करता हूं। 10 मिनट प्राणायाम नियमित है। हालाँकि मैं अक्सर पार्टियों में जाता हूँ, परन्तु घर पर बहुत ही सादा खाना खाता हूँ। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है लेकिन मुझे यह मानसिक रूप से बहुत सुखद लगता है।
मुझे बचपन से ही घूमने का शौक था। बचपन में मैं अपने माता-पिता के साथ यात्रा करता था। अपनी सेवा के दौरान, मुझे पूरे भारत की यात्रा करने का अवसर मिला। मैं अपनी सेवा के दौरान दो निजी और तीन शासकीय विदेश यात्राओं पर भी गया।
लेकिन रिटायरमेंट के बाद पिछले 10 साल में घरेलू यात्राओं के अतिरिक्त मैं 12 बार विदेश यात्राओं पर गया जिनमें सभी महाद्वीपों के अपनी पसंद के 22 देशों में जा चुका हूं। इनमें से अधिकतर गंतव्य वे थे जिनकी मैं लंबे समय से जाने की इच्छा कर रहा था। ये विदेश यात्राएं मेरी पत्नी लक्ष्मी के साथ काफ़ी चैन और सुकून की यात्राएं थीं।
सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त फंड में से कुछ का निवेश मैंने व्यवसाय में किया जिसमें घाटे का सामना करना पड़ा। मैं निराश नहीं हुआ, बल्कि मैंने इसे एक नये अनुभव के रूप में लिया। मई, 2016 में मैं मालावांचल मेडिकल यूनिवर्सिटी, इंदौर में कुलपति बन गया जहां मैं अभी भी कार्यरत हूं। यहाँ मुझे शिक्षा और विशेषकर चिकित्सा के क्षेत्र में भी एक नया अनुभव प्राप्त हुआ।
इससे मुझे कांफ्रेंसों में भाग लेने के साथ-साथ प्रोफ़ेसरों और युवा छात्रों के साथ बातचीत करने का सुनहरा अवसर मिला है। मैं जन परिषद नामक संगठन का अध्यक्ष हूं। इसके संयोजक श्री रामजी श्रीवास्तव और एक समर्पित टीम की मदद से हमने पर्यावरण पर आठ अंतरराष्ट्रीय कान्फ्रेंसों सहित कई गतिविधियों का आयोजन किया है। एमपी वुशु (मार्शल आर्ट) एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में, मैं खेल गतिविधियों से जुड़ा रहा हूं और इसके लिए यात्राएँ भी की है। कुछ वर्ष पूर्व तक मैं जीवाजी क्लब ग्वालियर का अध्यक्ष भी था।
मेरे सेवानिवृत्त जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू पढ़ने और लिखने की महान स्वतंत्रता है। मैं बड़ी संख्या में पुस्तकें पढ़ने में विश्वास नहीं करता हूँ, बल्कि प्रत्येक पुस्तक को धीमी गति से पूरी एकाग्रता के साथ पढ़ता हूं। मैं इतिहास, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, विज्ञान, अर्थशास्त्र और साहित्य आदि विषयों पर किताबें पढ़ता हूं। मुझे अंग्रेजी और हिंदी दोनों में लिखना पसंद है, खासकर सोशल मीडिया में। शीघ्र ही मेरी पहली पुस्तक अंग्रेज़ी में दिल्ली में प्रकाशित होगी।
पीछे मुड़कर देखने पर मुझे जीवन की सुंदरता के लिए संतुष्टि का अनुभव होता है। भविष्य के लिए, मैं नियति की परवाह किए बिना आने वाले समय के लिए शांत और सकारात्मक अपेक्षाओं के साथ तैयार हूं।