Flashback: पुलिस आंदोलन जब पुलिस सड़क पर उतरी!

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यूँ तो पुलिस में कार्य करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को अनेक अवसरों पर अकारण अपमानित होना पड़ता है, परंतु अप्रैल, 1979 के अंत में पंजाब के पटियाला में एक ट्रैफ़िक आरक्षक के साथ एक विधायक द्वारा उन्हें सैल्यूट न करने के लिए किया आ गया असभ्य व्यवहार बारूद के ढेर पर एक चिंगारी सिद्ध हुआ।इस घटना के विरोध में पंजाब में मई में छह दिनों तक पुलिस ने थानों का काम बंद कर दिया और सड़कों पर उतर कर वर्दी में जुलूस निकालकर नारेबाज़ी की।

BSF की सहायता से 20 पुलिसकर्मियों को गिरफ़्तार कर लिया गया और 50 बिना जाँच के बर्खास्त कर दिया गये। आर्मी ने पटियाला और जालंधर में पुलिस के हथियारों के भंडारगृहों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया।लेकिन पंजाब का आंदोलन शीघ्र ही हरियाणा, राजस्थान, उड़ीसा, बिहार, गुजरात आदि में फैल गया और केन्द्रीय पुलिस बल CRPF और CISF की कुछ इकाइयों ने बग़ावत कर दी। भारत के एक बड़े भूभाग में राज्यों की पुलिस और कुछ केंद्रीय बलों ने आंदोलन कर दिया जो लगभग बगावत जैसा था। इस आंदोलन को आर्मी तथा कुछ अन्य केन्द्रीय बलों की सहायता से दबाने के प्रयास में 70 लोग मारे गए।

मध्य प्रदेश में इस आंदोलन की सुगबुगाहट सर्वप्रथम भोपाल और इंदौर में हुई।20 मई,1979 को इस आंदोलन का श्रीगणेश इंदौर के थाना पलासिया से हुआ। इसके कुछ ही दिन पहले 1 मई को मेरी पदोन्नती इन्दौर में CSP परदेशीपुरा से एडिशनल SP इंदौर के पद पर हो गई थी। CSP के तौर पर थाना पलासिया मेरे क्षेत्र में आता था।20 मई को सुबह 9 बजे कंट्रोल रूम में थाना पलासिया से सूचना आयी कि थाना परिसर में निवासरत 24वीं बटालियन की F कंपनी वर्दी में एकत्र होकर नारेबाज़ी कर रही है।

सूचना मिलते ही मैं थाना पलासिया पहुँचा।वहाँ का दृश्य अकल्पनीय था।जिनके बल पर हम क़ानून व्यवस्था की स्थिति से निपटते थे वे ही सामने नारेबाज़ी कर रहे थे। मेरी उनसे बातचीत विफल रही। थोड़ी देर में ही वे एक जुलूस की शक्ल में मुख्य मार्ग MG रोड से होते हुए कोतवाली पहुँचे जहाँ 24वीं बटालियन की ही B कंपनी ने बाहर निकलकर इनका साथ दिया और फिर ये लोग इंदौर में स्थित प्रथम एवं पंद्रहवीं बटालियन के मुख्यालय की तरफ़ चल पड़े। कुछ ट्रैफ़िक और थानों की पुलिसकर्मी भी जुलूस में सम्मिलित होते गए।

मैं उस जुलूस के पीछे-पीछे अपनी जीप में चल रहा था। यद्यपि मैं पुलिस के इस व्यवहार से क्रोधित था, परंतु उनकी माँगों से मुझे सहानुभूति थी।यह पहली क़ानून व्यवस्था की स्थिति थी जिसमें मैं कुछ कर भी नहीं सकता था। आकार में बढ़ता हुआ जलूस जब 15 वीं बटालियन पहुँचा तो मैंने देखा कि इंदौर रेंज के DIG श्री शारदा प्रसाद मिश्रा वहाँ आ गए और उन्होंने जवानों को समझाते हुए डांटना शुरू किया।

इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, नारेबाज़ी चलती रही और उन्हें वापस जाना पड़ा। उग्र भाषण शुरू हो गये। अगले दिन से ही आंदोलन मध्य प्रदेश के अन्य ज़िलों में फैलना शुरू हो गया। 28 मई को अराजपत्रित कर्मचारी संघ बना लिया गया जिसमें इंदौर में कार्यरत 24वीं बटालियन की कंपनियों के प्रधान आरक्षक हित वल्लभ पांडे को मध्य प्रदेश का अध्यक्ष और आरक्षक राम नयन आज़ाद को 24 वीं बटालियन का अध्यक्ष चुना गया।

सरकारें हिल गईं। मध्य प्रदेश सरकार ने कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल को 50 रूपये और ASI- SI को 60 रूपये और इंस्पेक्टर को 70 रुपये प्रति माह अतिरिक्त देने की घोषणा की। वर्ष में एक माह का अतिरिक्त वेतन देने के आदेश जारी किए। पुलिस कर्मियों के क्वार्टर्स बनाने के लिए हाउसिंग कार्पोरेशन की घोषणा की गई तथा अराजपत्रित कर्मचारी संघ को मान्यता देने का आश्वासन दिया गया।

घबरायी हुई केंद्र सरकार ने 6 जून को सभी राज्यों के बेचैन मुख्यमंत्रियों का एक सम्मेलन बुलाया और फ़रवरी, 1979 की राष्ट्रीय पुलिस आयोग की अनुशंसाओं पर गंभीर विचार किया और अनेक अनुशंसाओं को लागू करने का भी निर्णय लिया। आंदोलन ठंडा पड़ गया।

जब पूरे देश में शांति हो गयी तब अचानक एक दिन 20 जून को इंदौर कमिश्नर कार्यालय के सामने प्रधान आरक्षक हित वल्लभ पांडे और आरक्षक राम नयन आज़ाद के नेतृत्व में 10 पुलिसकर्मी मंच लगाकर धरने पर बैठ गये। उनकी माँग थी कि अराजपत्रित कर्मचारी संघ की लंबित अधिसूचना तत्काल जारी की जाए। धरना कई दिनों तक चला। फिर से इस धरने से सरकार आश्चर्य चकित रह गई।सूत्रों से यह पक्की ख़बर मिली थी कि धरना स्थल के आस पास डंडों और ईटों से लैस सादी वर्दी में पुलिस वाले दिन रात निगरानी पर थे ताकि धरने पर बैठे लोगों की गिरफ़्तारी हिंसा करके रोक दी जाए।

भोपाल से आए एक वरिष्ठ अधिकारी की अध्यक्षता में बैठक हुई और हम मैदानी अधिकारियों को उलाहना दी गई कि आप डर के कारण धरने पर बैठे लोगों को गिरफ़्तार नहीं कर पा रहे हैं। मैं मीटिंग में खड़ा हो गया और यह कह कर कि मैं गिरफ़्तार करने जा रहा हूँ, मैं अकेला निकल पड़ा। CSP श्याम शुक्ला भी खड़े होकर मेरे साथ चल पड़े। उन्हें अपनी जीप में बैठाकर मैं जीप ख़ुद चलाकर ठीक मंच के पास जाकर रुका।

उतरते ही मैंने पांडे और आज़ाद से बात करना शुरू कर दिया तो अकेली जीप में हमें देखकर आस पास खड़े पुलिसकर्मी अपने डंडे पत्थर फेंक कर एकत्र हो गए। मैंने उन्हें ज़ोरदार तरीक़े से समझाया कि आप मेरे साथ जेल चले तो शीघ्र ही सरकार आपकी बात सुन लेगी। रिंग लीडर मेरी जीप में पीछे बैठ गये और मैंने स्वयं उन्हें सीआई जेल पहुँचा दिया। दो दिन बाद संघ की अधिसूचना जारी हो गयी।यह भारत का अंतिम पुलिस आंदोलन था।

इस घटना के तीन महीने बाद एक विचित्र न्याय में सरकार ने जहाँ मेरे सारे बैचमैटों को ज़िलों में पुलिस अधीक्षक बना दिया, वहीं मुझे ढाई वर्ष की इंदौर की सेवाओं के बाद इसी 24वीं बटालियन का कमांडेंट बना दिया।