पूर्वआयकर चीफ कमिश्नर और आयकर अधिकारी को रिश्वत लेने पर 4 साल की सजा, 10 साल बाद आया फैसला

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पूर्वआयकर चीफ कमिश्नर और आयकर अधिकारी को रिश्वत लेने पर 4 साल की सजा, 10 साल बाद आया फैसला

जोधपुर में भ्रष्टाचार के एक चर्चित मामले में शुक्रवार (26 सितंबर) को सीबीआई विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त पवन कुमार शर्मा और आयकर अधिकारी शैलेंद्र भंडारी को चार-चार साल की सजा सुनाई. दोनों अधिकारियों पर व्यापारी से लाखों रुपये की रिश्वत लेने का गंभीर आरोप साबित हुआ.

जोधपुरः विशेष न्यायालय (सीबीआई मामलों) ने आयकर विभाग के दो तत्कालीन अधिकारियों को 15 लाख रुपए की रिश्वत लेने के मामले में दोषी करार देते हुए चार साल की सजा सुनाई है. सीबीआई मामलात विशेष अदालत के विशिष्ट न्यायाधीश भूपेन्द्र सनाढ्य ने फैसला सुनाते हुए तत्कालीन आयकर चीफ कमिश्नर पवन कुमार शर्मा और आयकर अधिकारी शैलेंद्र भंडारी को चार साल की सजा और जुर्माना लगाया गया. वहीं, ज्वैलरी शोरूम मालिक चंद्रप्रकाश कट्टा को इस मामले में बरी कर दिया गया.

सीबीआई ने जांच में पाया कि पवन कुमार शर्मा पूरे रैकेट का संचालन कर रहे थे और विभागीय स्तर पर रिश्वतखोरी को बढ़ावा दे रहे थे. उस दौरान की गई छापेमारी और जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जिसने पूरे आयकर विभाग में सनसनी फैला दी थी.

सीबीआई अदालात में विशिष्ट लोक अभियोजक भगवान सिंह भंवरिया ने बताया कि 31 मार्च 2015 को सीबीआई ने कार्रवाई की थी. एक व्यवसायी का मामला आयकर विभाग में लंबित था. व्यवसायी ने पहले आयकर अधिकारी शैलेंद्र भंडारी से संपर्क किया. भंडारी ने यह मामला चीफ कमिश्नर पवन शर्मा तक पहुंचाया. आरोप है कि केस निपटाने के एवज में 25 लाख रुपए की रिश्वत मांगी गई थी.

सौदा 15 लाख रुपए में तय हुआ. व्यवसायी ने इसकी सूचना सीबीआई को दी. सीबीआई ने तीनों को रंगे हाथ 15 लाख की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया. अब 10 साल बाद, कोर्ट ने दो अधिकारियों को सजा सुनाई है, जबकि व्यवसायी के साथ जुड़े ज्वैलर चंद्रप्रकाश कट्टा को बरी कर दिया गया है. करीब दस साल बाद आखिरकार मामले मे सुनवाई पूरी होने के साथ ही दोनो अधिकारियों को चार-चार साल की सजा के आदेश दिए गए हैं.

इस फैसले ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि ऊंचे पद भी कानून से ऊपर नहीं हैं. अगर वे भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं तो उन्हें भी कठोर सजा भुगतनी होगी. इस फैसले के बाद से आमजन और व्यापारी वर्ग में चर्चा है कि आखिर जिन अधिकारियों पर कर व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जिम्मेदारी थी, वही रिश्वतखोरी के जाल में फंस गएयह फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.