गुनौर में भाजपा-कांग्रेस के पूर्व विधायकों ने की बगावत, पर किसी को नहीं मिला टिकट, भाजपा के राजेश, कांग्रेस के जीवन लाल में मुकाबला
दिनेश निगम ‘त्यागी’ की विशेष रिपोर्ट
बुंदेलखंड के पन्ना जिले की गुनौर है तो अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट, लेकिन इस समय अचानक चर्चा में आ गई है। खास यह कि यहां भाजपा में भी बगावत हुई है और कांग्रेस में भी। पहले भाजपा के पूर्व विधायक महेंद्र बागरी ने पार्टी से इस्तीफा देकर कांग्रेस ज्वाइन की थी। इसके बाद कांग्रेस के पूर्व विधायक फुंदर चौधरी ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। मजेेदार बात यह भी कि यहां न कांग्रेस ने भाजपा के बागी महेंद्र बागरी को टिकट दिया और न हीं भाजपा ने कांग्रेस से आए फुंदर चौधरी को। दोनों बागी पूर्व विधायकों की स्थिति ‘न घर के रहे, न घाट के’ जैसी हो गई।
भाजपा ने यहां पिछला चुनाव हारे राजेश वर्मा को प्रत्याशी बनाया है जबकि कांग्रेस ने बसपा से आए जीवन लाल सिद्धार्थ पर भरोसा किया है। राजेश और जीवन लाल के बीच गुनौर में कड़े मुकाबले के आसार हैं।
हर बार बदल जाते हैं प्रत्याशी
गुनौर का राजनीतिक मिजाज कुछ ऐसा है कि राजनीतिक दल लगभग हर बार अपना प्रत्याशी बदल देते हैं। 2008 के चुनाव में यहां भाजपा के राकेश वर्मा कांग्रेस के फुंदर चौधरी को साढ़े 4 हजार से ज्यादा वोटों से हरा कर चुनाव जीते थे लेकिन 2013 के चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काट कर महेंद्र बागरी को प्रत्याशी बना दिया। कांग्रेस ने भी फुंदर के स्थान पर शिव दयाल बागरी को अपना प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में महेश बागरी चुनाव जीते लेकिन 2018 में उनका टिकट कट गया। भाजपा ने इस बार राजेश वर्मा को टिकट दे दिया। राजेश कांग्रेस के शिवदयाल बागरी से चुनाव हार गए तो कांग्रेस ने इस बार अर्थात 2023 के चुनाव में शिवदयाल का टिकट काट कर बसपा से आए जीवनलाल सिद्धार्थ को प्रत्याशी बना दिया। हालांकि भाजपा ने पिछला चुनाव हारे राजेश को फिर प्रत्याशी बनाया है। टिकट कटने से नाराज भाजपा के पूर्व विधायक महेंद्र बागरी एवं कांग्रेस के पूर्व विधायक फुंदर चौधरी अपने दलों को छोड़ चुके हैं। भाजपा की अमिता बागरी भी टिकट न मिलने से नाराज हैं।
गुनौर में बसपा का भी अच्छा असर
गुनौर विधानसभा सीट में चूंकि दलित वोटों की बहुतायत है, इसलिए यहां बसपा प्रत्याशी को भी अच्छे वोट मिलते हैं। 2008 में बसपा ने यहां से जीवनलाल सिद्धार्थ को प्रत्याशी बनाया था। उन्हें 28 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। वे दूसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस के फुंदर चौधरी मात्र साढ़े 17 हजार वोट लेकर तीसरे नंबर पर थे। 2013 में बसपा ने यहां से जीवन लाल के स्थान पर देवीदीन को प्रत्याशी बनाया। उन्हें भी लगभग 27 हजार वोट मिले लेकिन वे तीसरे नंबर पर रहे। 2018 में बसपा ने फिर जीवन लाल को मौका दिया। इस बार वे साढ़े 32 हजार से ज्यादा वोट लेने में सफल रहे। जीवन लाल इसके बाद कांग्रेस में आ गए। इस बार कांग्रेस ने उन्हेंं अपना प्रत्याशी बना दिया। 2013 में चुनाव लड़ चुके देवीदीन इस बार फिर बसपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं।
कम रहता है हार-जीत का अंतर
गुनौर में हार-जीत का अंतर कभी बहुत ज्यादा नहीं रहता। 2008 में भाजपा के राकेश वर्मा लगभग साढ़े 4 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। 2013 में भाजपा के महेंद्र सिंह मात्र 13 सौ वोटों के अंतर से चुनाव जीत सके। 2018 में भी हार-जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहा। कांग्रेस के शिवदयाल बागरी लगभग 2 हजार वोटों के अंतर से ही चुनाव जीत सके थे। हार-जीत का अंतर कम होने के कारण ही संभवत: जीतने के बावजूद भाजपा और कांग्रेस अपना प्रत्याशी बदल देते हैं। कांग्रेस ने तो इस बार बसपा से आए सिद्धार्थ पर दांव लगा दिया।
कांग्रेस को सवर्ण वोटों का नुकसान संभव
अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित गुनौर सीट में ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद काफी ज्यादा है। हार-जीत में वे ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बसपा से आए जीवन लाल सिद्धार्थ की सवर्णों खासकर ब्राह्मणों की साथ पटरी नहीं बैठती। जीवन लाल बसपा में थे तो सवर्णों के खिलाफ जमकर जहर उगलते थे। उनके प्रत्याशी रहते कांग्रेस को ब्राह्मण और सवर्ण मतदाताओं का नुकसान उठाना पड़ सकता है। पूर्व विधायक फुंदर चौधरी पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं।
दोनों ओर अंतर्कलह के हालात
गुनौर में दो पूर्व विधायकों के पार्टी छोड़ने और दूसरे दलों को ज्वाइन करने के बाद भाजपा- कांग्रेस की अंतकर्लह पहले ही उजागर हो चुकी है। यह आगे भी थमती नहीं दिख रही। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक शिवदयाल बागरी का टिकट काटा है, इसलिए वे नाराज हैं। दूसरी ओर पिछला चुनाव हारे राजेश वर्मा को प्रत्याशी बनाए जाने से अमिता बागरी सहित भाजपा के अन्य दावेदारों में नाराजगी है। यह अंतर्कलहा दोनों को नुकसान पहुंचा सकती है। किसे कम किसे ज्यादा, यह बाद में पता चलेगा। अभी कई और नेता भी बगावत कर सकते हैं। पहले भी नगर पंचायत गुनौर के चुनाव में भाजपा के मंडल अध्यक्ष ने ही पार्टी द्वारा घोषित उम्मीदवार के खिलाफ अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाया और अध्यक्ष भी बनवा लिया था। पार्टी के बड़ा चेहरा रहे चंदन सपेरा भी पार्टी से नाराज होकर निर्दलीय निकाय चुनाव लड़े और उपाध्यक्ष बनें। अर्थात यहां पार्टियों में अंतर्कलह पहले से है।
विकास की नजर में गुनौर
गुनौर पर विकास की नजर से दृष्टि डालें तो बीते पांच साल में गुनौर में डिग्री कॉलेज, सीएम राइज स्कूल गुनौर, नगर परिषद गुनौर का गठन, ककरहटी सीएम राइज स्कूल आदि कार्य हुए हैं। इसके विपरीत रामपथ गमन मार्ग की योजना में शामिल आस्था का केन्द्र सिद्धनाथ आश्रम, अगस्त मुनि का आश्रम, पर्यटन एवं धार्मिक महत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान हैं। यहां तक पहुंच मार्ग एवं पुल बनाए जाने की मांग वर्षों से होती रही है, जिसकी घोषणा भी की गई, लेकिन काम आज तक नहीं हो सका। क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर चिकित्सालय भवन बनें हैं, लेकिन डाक्टरों के अभाव के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है। बेरोजगारी का आलम यह है कि सबसे अधिक पलायन गुनौर विधानसभा से ही रोजगार की तलाश में होता है। रोजगार के लिए जेके सीमेंट प्लांट से बेहद उम्मीदें थी, लेकिन स्थानीय लोगों को यहां रोजगार नहीं मिल सका। गुनौर के महेवा क्षेत्र में भी सीमेंट प्लांट स्थापित हो रहे हैं, लेकिन यहां भी लोगों को रोजगार की उम्मीद नहीं है। सीमेंट प्लांट में जमीन गवांने वाले किसान बेहद परेशान हैं।